पहनी
मोची से सिलवाई चप्पल
कि दे सके
तेरे पैरों को जूते का आराम
फटी कमीज़ तो चकती लगा ली
ताकि शर्ट तुम्हारी सिल सके
पंचर जुड़ी साइकिल पर चलता रहा
टूटी गद्दी पर
बाँध कपड़ा काम चलाता रहा
ताकि खरीद सके
वो पुरानी मोटर साइकिल तुम्हारे लिए
तागी थी जिस धागे से रजाई
उनकी उम्र पूरी हुई
रुई भी खिसककर किनारे हुई
ठंडी रजाई में सिकुड़ता रहा
कि गर्मी तुझ तक पहुँचती रहे
जब भी जला चूल्हा
तेरी ही ख्वाहिशें पकीं
उसने खाया तो बस जीने के लिए
जीवन भर की जमा पूँजी
और कमाई नेकनीयती
अर्पित कर
तुझ को समाज में एक जगह दिलाई
पंख लगे और तू उड़ने लगा
ऊँचा उठा तो
ये न देखा
कि तेरे पैर उनके कन्धों पर हैं
उनके चाल की सीवन उधड गई
तेरी रफ़्तार बढती रही
सहारे को हाथ बढाया
तुमने लाठी पकड़ा दी
उनकी धुँधली आँखों से
ओझल हो गया
वो घोली खटिया पर लेटे
धागे से बँधी ऐनक सँभालते
तेरे लौटने की राह देखते रहे
अंतिम यात्रा तक
आँखों में अटका था
बस एक ही सपना
साबुत चप्पल, नई कमीज़ और एक साइकिल।
मोची से सिलवाई चप्पल
कि दे सके
तेरे पैरों को जूते का आराम
फटी कमीज़ तो चकती लगा ली
ताकि शर्ट तुम्हारी सिल सके
पंचर जुड़ी साइकिल पर चलता रहा
टूटी गद्दी पर
बाँध कपड़ा काम चलाता रहा
ताकि खरीद सके
वो पुरानी मोटर साइकिल तुम्हारे लिए
तागी थी जिस धागे से रजाई
उनकी उम्र पूरी हुई
रुई भी खिसककर किनारे हुई
ठंडी रजाई में सिकुड़ता रहा
कि गर्मी तुझ तक पहुँचती रहे
जब भी जला चूल्हा
तेरी ही ख्वाहिशें पकीं
उसने खाया तो बस जीने के लिए
जीवन भर की जमा पूँजी
और कमाई नेकनीयती
अर्पित कर
तुझ को समाज में एक जगह दिलाई
पंख लगे और तू उड़ने लगा
ऊँचा उठा तो
ये न देखा
कि तेरे पैर उनके कन्धों पर हैं
उनके चाल की सीवन उधड गई
तेरी रफ़्तार बढती रही
सहारे को हाथ बढाया
तुमने लाठी पकड़ा दी
उनकी धुँधली आँखों से
ओझल हो गया
वो घोली खटिया पर लेटे
धागे से बँधी ऐनक सँभालते
तेरे लौटने की राह देखते रहे
अंतिम यात्रा तक
आँखों में अटका था
बस एक ही सपना
साबुत चप्पल, नई कमीज़ और एक साइकिल।
जब भी जला चूल्हा
ReplyDeleteतेरी ही ख्वाहिशें पकीं
तू उड़ने लगा
ऊँचा उठा तो
ये न देखा
कि तेरे पैर उनके कन्धों पर हैं
अंतिम यात्रा तक
आँखों में अटका था
बस एक ही सपना
साबुत चप्पल, नई कमीज़ और एक साइकिल।
रचना जी पता नहीं कितनी आँखों में ऐसे सपने अटके रह जाते हैं और ज़िंदगी भर बच्चों के सपनों की परवाज़ को पंख देने के लिए ना जाने कितने लोगों के ऐसे जमीनी सपने भी अधूरे रह जाते हैं... अंतिम यात्रा तक /आँखों में अटका था /बस एक ही सपना/साबुत चप्पल, नई कमीज़ और एक साइकिल। ... इस लाइन ने तो आँखों में आँसू ही ला दिए..
सुंदर और मार्मिक चित्रण ..................जिंदगी की हकीकत |
ReplyDeleteबस एक दो वर्तनी की अशुद्धियों नजर आई कृपया सम्पंदन करें |
Sundar our behatar.
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