नव वर्ष की पंखुड़ी पर
लिखें गीत सुनहरा
दिशाएँ मुखरित हो बोले
लगा न हो पहरा
आँखों की खिड़की से
आशा झाँके
हर चादर में हो
खुशियों के धागे
पत्तों की हरी किताब पर
लिखें सपना गहरा
अक्षर के मोती सजें
उन मासूम हाथों में
सच के तारे टके हो
सब की बातों में
प्यार की रागिनी बहे
छँटे घृणा का कोहरा
चूल्हे में गर्माहट हो
हाथों को काम
पनघट पर गोरी हँसे
चौपाल में शाम
न कोई पैदल न वजीर
बराबर हो हर मोहरा
-0-
No comments:
Post a Comment