Saturday 16 April 2011

नव वर्ष की पंखुड़ी पर

नव वर्ष की पंखुड़ी पर
लिखें गीत सुनहरा

दिशाएँ मुखरित हो बोले
लगा न हो पहरा
आँखों की खिड़की से
आशा झाँके
हर चादर में हो
खुशियों के धागे
पत्तों की हरी किताब पर
लिखें सपना गहरा

अक्षर के मोती सजें
उन मासूम हाथों में
सच के तारे टके हो
सब की बातों में
प्यार की रागिनी बहे
छँटे घृणा का कोहरा

चूल्हे में गर्माहट हो
हाथों को काम
पनघट पर गोरी हँसे
चौपाल में शाम
न कोई पैदल न वजीर
बराबर हो हर मोहरा
-0-

No comments:

Post a Comment