Saturday, 16 April 2011

नीलाम हो गए सपने

ये आज का अख़बार है
  अदालत  की
गलियों में
घूम रहे   तथ्य  ,        
हँस दे जो नोट
तो बदल जाये  कथ्य ;
        तराजू के पलड़े में
        निर्धन हुआ लाचार है
        ये आज का अख़बार है
सच्चाई की अर्थी
 आँसू बहाये कौन
 हवाओं में गाँठ लगी
 चौखट है मौन
शब्दों की  बोली लगती
बिके यहाँ समाचार है
ये आज का अख़बार है
मुर्दा भावनाओं पर
गिद्धों  का पहरा
लगा दिया  अँगूठा
 अनपढ़ जो ठहरा
 नीलाम  हो गए  सपने
 भावना का  व्यापार है ?
 ये आज का अख़बार है 

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