Tuesday 25 September 2012


आप मुझे गाना सिखाइए , मै आपको अभिनय सिखाती हूँ  :-पद्मिनी कोल्हापुरे 

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पद्मिनी कोल्हापुरे ,शक्ति कपूर और नवीन बावा अपने नाटक 'आसमान से गिरे खजूर में अटके 'को ले कर  इन दिनों अमेरिका के दौरे पर हैं
ये नाटक सुर इंटरटेनमेंट के बैनर तले  प्रस्तुत किया जा रहा है .
सुर इंटरटेनमेंट  की अमृता जी ने  बताया की अभी तक जितने भी शो हुये हैं हॉउस फुल रहें हैं और लोगों ने इस नाटक को बहुत पसन्द किया है. इसी दौरान मुझे पद्मिनी कोल्हापुरे जी से  बात करने का मौका मिला प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश

पद्मिनी जी नमस्ते अमेरिका में आपका स्वागत है l
बहुत बहुत धन्यवाद रचना जी l
आपको यादों में थोडा पीछे ले चलती हूँ आपने  अपनी बहन तेजस्वनी के साथ बचपन से ही गाना शुरू कर दिया था उस समय आपको जो पैसे मिलते थे आप उनका क्या करती थी ?
प्यारा प्रश्न है रचना जी .हमारे पैसे हमारी माँ के पास होते थे वो सारे पैसे रखती थी और हमें जेबखर्च के लिए देती . .यदि हमको सारे पैसे मिल जाते तो हम तो पूरा ही खर्च कर डालते वहां से ही हमने पैसे का महत्त्व सीखा था जो बच्चों के लिए बहुत ही जरुरी होता है l
आप संगीत को अपना कैरियर बनाना चाहती थी .फिर अभिनय की  दुनिया में कैसे आ गईं ?
ये सब इतफाक से हो गया .आशा जी जो की  हमारी आंटी हैं उन्होंने देवानंद जी को मेरा नाम बताया था lउन्होंने अपनी फिल्म इश्क इश्क  इश्क में बतौर बाल कलाकार   मुझे ले लिया   ,बस इसी तरह से मै फिल्मों में आगई .
आपने जब पहली बार कैमरे का सामना किया था तो  आपको  डर लगा था .झिझक हुई थी क्या महसूस हुआ था ?
बच्चों को कोई काम करने में डर नहीं लगता ,उनको इस बात की चिंता नहीं  रहती की कोई क्या कहेगा वो तो बस काम करता है .मेरे  साथ भी बस ऐसा ही हुआ था .कोई शर्म या झिझक नहीं थी
बाल कलाकार के रूम में कोई याद है तो  कृपया  हमें बताइए l
कभी मम्मी और कभी पापा मुझे शूटिंग के लिए ले कर जाते थे .शूटिंग पर सभी मेरा बहुत ध्यान रखते हैं एक बार बर्फ में शूटिंग करते हुए मुझे बहुत ठण्ड लग गई थी तो देव अंकल ने मेरा बहुत ध्यान रखा था.
आपने किशोर कुमार जी के साथ भी गाना गया है .उनके बारे में कुछ बताइए l
उनके साथ मैने एक बाल गायिका  के रूप में और कोरस में भी गया है और  बड़े हो कर भी मैने गया है lवो बहुत ही मजाकिया मजेदार किस्म के इन्सान थे  गायकी में और उनके जैसी आवाज का आज भी कोई तोड़ नहीं है lउनका सेन्स ऑफ हीयूमर बहुत अच्छा था lवो अलग अलग आवाजें निकलते थे सभी को हँसाते  थेl  लता जी के साथ उनकी रिकोर्डिंग होते हुए मैने अपनी आँखों से देखा है वो बहुत हँसा रहे थे हँसते हँसते लता जी के गले में खारिश हो जाती थी तो उन्होंने कहा की प्लीस   किशोर दा बस कीजिये वर्ना फिर मै गा नहीं पाऊँगीl  किशोर दा और लता जी के साथ मैने  कॉन्सर्ट भी किया है अमेरिका भी आई हूँ  तो उस वख्त भी उनका अंदाज मैने देखा है हँसते हँसते  वो अपना रुख  बदलते थे और बहुत ही गंभीर किस्म का गाना गा देते थे ऐसा लगता नहीं था की ये वही इन्सान है जो अभी कुछ समय पहले इतना हँस   रहा था ,मस्ती कर रहा था l
आपने राज कपूर जी के साथ फिल्मों  में काम किया है उनके साथ काम करने का अनुभव बताइए l
मैने राज कपूर जी के साथ सत्यम शिवम् सुन्दरम में काम किया थाl अतः प्रेम  रोग तक मुझे ये पता था की उनको किस तरह का काम चाहिए उस वख्त मुझे कोई डर नहीं थी की राज कपूर जी सामने  हैं मै  कर पाऊँगी या नहीं .क्योंकी वो जिस तरह का काम चाहते थे मै करती जाती थी .राज कपूर जी सब काम एकदम सही तरीके से चाहते थे अतः वो बार बार शूट करते थे जब तक की वो स्वयं उस सीन  से संतुस्ट न हो जाएँ
  "वो सात दिन "में आपने अनिल कपूर जी के साथ  काम किया  है lअनिल जी एक नए  कलाकार थे lजबकि जल्दी कोई नए कलाकार के साथ काम नहीं करना चाहता आपने किया l
अनिल कपूर का परिवार हमारे परिवक के बहुत करीब था ,जब 'वो साथ दिन' मेरे पास आई तो मुझे कुछ ऐसा नहीं लगा की नए लोगों के साथ काम करना है या नहीं करना है ,मैने  तो नए निर्देशकों के साथ काम किया है और कर भी  रही हूँ  और करना भी पसंद करुँगी .उस वख्त ऐसा नहीं था की अनिल नए हैं तो वो कर पाएंगे या नहीं .प्रोड़कशन बहुत अच्छा था और बापू जी निर्देशक थे .तो मैने कर ली ये फिल्म .गोविंदा ,कुनाल कपूर ,राजीव कपूर सभी के साथ काम किया
आपने चुलबुला अभिनय किया है साथ में आपने संजीदा रोल भी किया है .आप स्वयं किस तरह का अभिनय करना पसंद करती ?
मै दोनों तरह का अभिनय करना पसंद करती हूँ l एक कलाकार  को चुनौतियों भरा अभिनय करना चाहिए l मै हर तरह का अभिनय सहजता से कर पाती हूँ मेरी एक फिल्म थी ' दो दिलों की दास्ताँ 'उसमे एक अंधी का किरदार था .मेरी एक फिल्म थी बेवफाई जिसमे  एक लड़की का किरदार मैने किया है जिसको सदमा लगा था और वो पागल हो जाती है मै हास्य अभिनय को  ज्यादा चुनौती भरा मानती हूँ मैने दुखी भरा अभिनय किया है ,भावप्रधान भूमिका की है वो भी एक अददत बन गई है हास्य अभिनय करना शायद मुझे चुनौती भरा लगता है l
 आपके अभिनय सिखाने के कुछ स्कूल भी है कृपया उनके बारे में कुछ बताइए l
लन्दन में मेरा स्कूल लगातार चलता था पर समय की कमी के कारण मैने सिर्फ वर्कशॉप तक सिमित कर दिया .इसके आलावा दिल्ली और नोर्थ में बहुत से स्कूल हैं .
अमेरिका में तो कोई विद्यालय नहीं है ?
हाँ नहीं है पर अभी वही बात चल रही थी   शायद यहाँ एक वर्कशॉप  करुँगी .क्योंकी लोग इसके बारे में बहुत पूछते हैं .तो देखिये कैसे होता है पर वर्कशौप करने का विचार तो है
आपकी फिल्म आने वाली है "माई "इसके बारे में बताइए l
माई का अर्थ है माँ ,इसमें मै आशा भोसले जी के साथ काम कर रही हूँ lआशा जी इसमें मेरी माँ का अभिनय कर रही हैं ये एक पारिवारिक फिल्म है जो हिन्दी में बन रही है .ये फिल्म नवम्बर में रिलीस होने जा रही है . आशा जी की ये पहली फिल्म है आशा जी की वजह से ही मै फिल्मे में आई और आज आशा जी की पहली फिल्म है और इसमें मै उनके साथ हूँ ये एक इत्तफ़ाक की बात है .
आशा जी के साथ काम करके बहुत ही अच्छा लगा .वो ८० साल की हो गई हैं इस उम्र में भी वो बहुत  उर्जा और उत्साह के साथ  काम करती हैं .शायद पुराने जो लोग हैं उनको ऊपर वाले की ये कुछ अलग सी देन हैं सेट पर वो मुझे कहती  थी की तुम मुझे अभिनय सिखाओ तो में कहती थी की आप मुझे गाना सिखाइए  मै आपको अभिनय सिखाती हूँ l
आपकी एक और फिल्म है "फटा  पोस्टर निकला हीरो "
 इस फिल्म की शूटिंग अभी दिसम्बर में शुरू होनी है .इसमें मै शाहिद कपूर की माँ का रोल कर रही हूँ .इस फिल्म की कहानी पूरी माँ बेटे पर आधारित  है इस फिल्म के निर्देशक है राजकुमार सन्तोषी जी
आपकी ज्यादातर  फिल्मे अच्छी कहानी पर आधारित होती है तो क्या आप कहानी देख कर फिल्मों का चुनाव करती हैं ?
ऐसा है की स्टोरी बेस फिल्मे मेरी पास आती  हैं .और किरदार बहुत अच्छे होते हैं तो फिल्म साइन करने के लिए मै बाध्य होजाती हूँ कभी कभार ऐसी भी फिल्मे आती हैं की आप अपने रिश्तों की वजह से कर लेते हैं .पर सही कहा आपने मै बहुत भाग्यशाली हूँ की मुझे अच्छी कहानियों  वाली फिल्मे मिली है जैसे माई है इसमें बहुत ही अच्छा रोल है और फटा पोस्टर निकला हीरो पूरी तरह से व्यावसायिक फिल्म है पर मेरा किरदार बहुत ही अच्छा है .
 नाटक आसमान से गिरे खजूर में अटके के बारे में कुछ बताइए
इसमें हास्य  है, इमोशन  है, डांस भी है lये मनोरंजन से भरा एक पैकेट है lहास्य -अभिनय मंच पर करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकी सम्वाद बोलने का समय एकदम ठीक होना चाहिए और मै भाग्यशालिनी हूँ की मेरे साथ शक्ति कपूर और नवीन बावा जैसे दो अभिनेता है  जिनकी  सम्वाद अदायगी एकदम  समय  पर होती है और हास्य अभिनय के महारथी है llएक अभिनेता  के  लिए सामने वाला अभिनेता कितना अच्छा है उस पर भी निर्भर करता है lइस नाटक में एक सीन है जिसमे बहुत हास्य है ,पहले लगता था की कैसे कर पाऊँगी पर जैसे जैसे  निर्देशक समझाते गये मै अभ्यास करती गई तो सब हो गया और मुझे करने में आनंद आने लगा l नाटक में रिटेक भी नहीं होते अतः ये बहुत ही  चुनौती पूर्ण होता है .हम पूरी कोशिश करते हैं की जो लोग हमको प्यार करते हैं हमको देखने आयें है वो ख़ुशी ख़ुशी  जाएँ
मंच पर ऐसा क्या है जो हमेशा आपको अपनी और आकर्षित  है ?
मंच पर आपमें  अलग किस्म का आत्मविश्वास  आजाता है आप अपने आपको पुनः खोज पाते हैं .अभी तक मैने यहाँ अमेरिका में कई शो किये हैं किसी शो में आप कुछ करते हैं किसी में कुछ और करते हैं तो कहने का मतलब ये की आप आने वाले नाटक में अपने पिछले नाटक से बेहतर कर  सकते हैं .फिल्मो में बहुत से रिटेक कर कर के सी लॉक कर सकते हैं पर जब अन्त में मुख्य  परिणाम देखते हैं तो लगता है कि काश  ऐसा किया होता .मन्च पर ये सम्भावना सदा रहती है .दर्शकों का रिस्पोंस देख कर काम करने का आनन्द दुगना हो जाता है .


Friday 31 August 2012

तोहफा
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अर्डमोर (अमेरिका का एक शहर )आने के बाद बस एक चीज मोहिना को अच्छी  लगती थी वो थी उसके घर के पास पुस्तकालय का होना .बेटी कुहू और बेटे आदिव के स्कूल जाने के बाद मोहिना पुस्तकालय में आजाती कभी कुछ पढ़ती और कभी बच्चों के स्टोरी टाइम के लिए शॉन की मदद करती .शॉन पुस्तकालय में बच्चों और बड़े बच्चों (किशोरों )का विभाग देखती थी .यहाँ  आते आते मोहिना की शॉन से अच्छी दोस्ती हो गई थी .एक दिन शॉन ने कहा की उसकी बौस लिन उसको हायर करना चाहती है .मोहिना ये सुन कर बहुत खुश हो गई और उसने  हाँ कर दी .अब मोहिना इस पुस्तकालय का हिस्सा थी . मोहिना का मुख्य काम था शॉन की मददत करना .शॉन  और मोहिना साथ में बहुत ख़ुशी  ख़ुशी काम करते lएक रोज जब मोहिना पुस्तकालय पहुंची तो उसने देखा की  शॉन के पास एक बच्चा  बैठा है .शॉन  ने कहा मोहिना ये डेविड है .ये पहले आता था पर कुछ समय से इसका आना बंद था lअभी बहुत दिनों के बाद आया है .
डेविड ने मुस्कुरा के  हाय   किया मोहिना ने भी मुस्कुरा के उसके हाय का जवाब दिया .शॉन ने डेविड को लिखने के लिए कुछ पेपर दिए थे जिनमे कुछ अल्फाबेट थे और कुछ नंबर भी थे .करीब एक घंटे बाद वो बच्चा अपनी माँ के साथ चला गया .डेविड रोज ही पुस्तकालय में आता शॉन उसको कुछ पेपर देती वो काम करता उसके बाद शॉन डेविड को कभी पेन्सिल कभी बुक मार्क कभी कुछ स्टीकर रिवार्ड के रूप में  दे  कर विदा करती . मोहिना कल मुझको आने में थोडा देर हो जाएगी तुम डेविड के लिखने के लिए पेपर निकाल देना और उसका इनाम भी .अगले दिन मोहिना ने शॉन के कहे अनुसार डेविड को सब पेपर लिखने के लिए दे दिए .थोड़ी देर में शॉन भी आगई .अरे वाह तुमने नीले रंग की पेन्सिल और स्टीकर निकाले हैं डेविड के लिए
हाँ शॉन  मैने  देखा था की जब तुम डेविड को कुछ भी देती थी तो वो    हमेशा नीले रंग की चीजें ही चुनता है  तो मुझे लगा की शायद नीला रंग उसका मनपसंद रंग है इसी लिए .....
अरे नहीं मोहिना नीला रंग उसका पसंदीदा रंग नहीं है ये तो उसकी माँ का पसंदीदा रंग है
अरे ये माँ का इतना ख्याल रखता है माँ भी तो इसका इतना ध्यान रखती है रोज  यहाँ लाती है उसको कितने प्यार से सब कुछ समझाती है
माँ कौन सी माँ तुम उससे कहाँ मिली ?
जो उसके साथ आती है वो ही तो डेविड की माँ है न मोहिना बोली
नहीं मोहिना वो तो उसकी केयर टेकर है ,ये विशेष घर में रहता है अपने घर में नहीं रहता है डेविड दिमागी तौर से बहुत कमजोर है न इसलिए इसके माता पिता ने इसको विशेष घर में रखा है. जब ये चार  साल का था तो इसकी माँ को पता चला की डेविड का आई क्यू स्तर   बहुत ही कमजोर है कुछ सालों तक तो डेविड अपने माँ बाप के साथ ही रहता था पर फिर सभी को परेशानी होने लगी और इसकी माँ ने इसको विशेष घर मे भरती करा दिया कई महीनो तक डेविड बहुत रोता था बहुत परेशानऔर  दुखी रहता पर अब देखो बहुत खुश है आराम से रहता है और वहाँ  सभी को बहुत प्यार भी करता है lइस विशेष घर में केयर टेकर होती हैं जो ऐसे बच्चों का ध्यान रखती हैं   जानती हो मोहिना पहले जो इसकी केयर टेकर थी  न उन्होंने इसको यहाँ लाने से मना कर दिया था इसी  लिए बहुत दिनों से डेविड यहाँ नहीं आया था .ये जो अभी आती है न इसका नाम जूली है ये बहुत ही अच्छी है शॉन बताये जा रही थी और मोहिना स्तब्ध हो कर ये सब सुन रही थी उसके मन में डेविड के लिए बहुत ही प्यार उमड़ आया था . 
शॉन डेविड जहाँ रहता है वहां का खर्चा तो बहुत आता होगा इसकी माँ सब कुछ पे करती होगी है न .मोहिना के जिज्ञासू मन ने सवाल किया
 नहीं मोहिना  डेविड अपना खर्चा खुद निकालता है .
मोहिना के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे "पर कैसे शॉन ये तो दिमागी तौर से ................................"
"हाँ तुम सही कह रही हो पर जहाँ ये रहता है न वहाँ के लोग इस बात का भी ध्यान रखते हैं lयहाँ अर्डमोर में कुछ जगह ऐसी है जो ऐसे लोगों को काम देती हैं lडेविड एक होटल में सफाई का काम करता है l "
मोहिना उस दिन काम से आने के बाद भी बस डेविड के बारे में सोचती रही मै जब बड़ा हो जाउँगा तो शॉन तुमको और मोहिना को घुमाने ले जाउँगा .डेविड के हाथों में जूली के कार की चाभी थी .अच्छा और खिलाओगे कुछ नहीं शॉन ने कहा
खिलाऊंगा न पिज्जा " यदि तुम जूली की चाभी खोज सको तो ..............बड़े शारीर में स्थित बच्चे से  दिमाग की मासूम शरारत देख कर जूली मुस्कुरा रही थी
तुम्हारे हाथ में है शॉन ने कहा
नहीं उसने अपने हाथ खोल के दिखा दिए
थोड़ी देर बाद शॉन ने कहा अच्छा मै हारी अब बताओ कहाँ है चाभी .
डेविड ने टोपी के नीचे से चाभी निकाल कर दिखाया ये रही और हसने लगा हम सभी उसके साथ हसने लगे .तभी कुकर की सिटी बजी और मोहिना अपनी सोच के घेरे से बाहर आई
एक दिन सोमवार की सुबह जब डेविड आया तो शॉन  ने पूछा डेविड इस वीकएंड में क्या किया ?
मै माँ के पास गया था .अपने भाई बहनों के साथ खेलाl माँ ने मेरे लिए पिज्जा बनाया था  .lजानती हो शॉन कल मेरा जन्मदिन था l
अरे वाह हैप्पी बर्थ डे .मोहिना  और शॉन ने एक साथ  कहा
"तुमको अपने जन्मदिन पर क्या तोहफा चाहिए "मोहिना ने पूछा l
डेविड चुप रहा l
"अरे ! बताओ न तुम को अपने जन्मदिन पर क्या चाहिए हम लाकर देंगे तुम्हे ""अबकी शॉन ने कहा
"मै अपनी माँ के मनपसंद  रंग की चीजे लेता हूँ ,जो उसको अच्छा लगे वही करता हूँ फिर भी माँ .............."डेविड थोड़ी देर ले किये चुप हो गया फिर कहने लगा "  मै हमेशा अपनी माँ के साथ रहना चाहता हूँ , उस विशेष घर में नहीं क्या ये तोहफा मुझे मिल सकता है ?"इतना कह कर डेविड अपने पेपर पर  काम करने लगा उसको जैसे इस प्रश्न का जवाब मालूम था
मोहिना और शॉन एक दुसरे का मुँह  देखने लगे .ये तोहफा उसको इस जन्म में तो कभी नहीं मिल सकता था l
ये लघुकथा पहले लिखी थी पर यहाँ पोस्ट नहीं कर पाई थी  आज जब की ईद बीत चुकी  है फिर भी पोस्ट कर रही हूँ सोचा त्योहारों को मानाने का कोई मौसम नहीं होता .

लघुकथा
ईदी

अजमा रोज़ की तरह उबह जल्दी उठ कर सीधा रसोई  में पहुची .उसको पानी जो भरना था क्योंकि  पानी सुबह केवल पाँच  से ह बजे तक ही आता था  नल खोल कर उसके नीचे बाल्टी रख दी सों सों ..................की आवाज आई पर पानी नहीं आया  उफ़  पता नहीं पानी आएगा भी या नहीं .जब से अब्दुल ने मोटर लगवाई है ,यहाँ पानी आना भी दूभर हो गया है तभी पानी की पतली सी धार  आने गली अजमा को सुकून हुआ- चलो अब उसको दूर सरकारी नल से पानी लाने नहीं जाना पड़ेगा कल उसकी आँख खुलने में जरा- सी देर क्या हो गई की उसको पानी नहीं मिला   रहमत के अब्बू तो कुछ करते नहीं है  जब से रिटायर हुए हैं, खाली हुक्म  ही चलाते रहते हैं अजमा बोलती  जा रही थी और बाल्टियों और ड्रमों में पानी भरती जा रही थी  ये अजमा का रोज़ का काम था पानी भरना और रहमत के अब्बू को कोसना
जब से रहमत काम के सिलसिले में अमेरिका गया है
,घर में अजमा और रहमत के अब्बू शराफत ही रह गए हैं जब तक अजमा पानी भरती साफ सफाई करती तब तक मियाँ शराफत चैन की नींद सोते रहते उठते तब तक नही जबतक अजमा चाय की प्याली ले कर न आये "रहमत के बब्बू अब तो उठो अफ़ताब सर चढ़ आया है कोई नमाज़ नहीं कुछ नहीं अरे  इस बुढ़ापे में खुदा से कुछ डरो"
"अरे बेग
,डरे वो जिन्होंने गुनाह किये हों हम तो पाक दमन हैं हम क्यों डरे?"शराफत ने लिहाफ से मुँह निकलते हुए कहा -"अरे तुम भी बैठो बेगम "
रहने दो ये चोचले तुम्हारे  अगर मै  भी बैठ गई तो काम कौन करेगा आज ईद है उठो तैयार हो जाओ और कम से कम आज तो मज्जिद जा के नमाज पढ़ आओ ".. अपना हाथ छुड़ाती अजमा नाश्ता बनाने  चली गई
शराफत बस मुस्कुरा के रह गए अख़बार की सुर्खिओं के साथ चाय पी कर शराफत नहाने के लिए गुसलखाने में चले गए
अजमा ने फिरनी को कटोरी में निकाला थोड़ी सी  बाहर गिर गई  गई तो उसको पोछने लगी रहमत को कितनी पसंद है फिरनी पता नहीं बहू बनाती होगी या नहीं ,बनाएगी भी कैसे उसको कहाँ आता होगा
रहमत ने तो शादी में बुलाया तक नहीं बस फोन कर के इतना कहा की अम्मी मैने शादी कर ली है कभी घर ले कर आऊँगाउस रोज जब रहमत बहू के साथ आया था तो देख कर अजमा तो जैसे गिरने को हो गई थी  शराफत ने सम्भाल लिया वरना .............. गोरी मेम अंग्रेजन से शादी कर लाया या या अल्लाह अजमा ने मन ही मन कहा फिर भी बेटे का मुँह  देख कर खून का घूट पी कर रह गई सीने  पर पत्थर रख कर सारे रीत रिवाज़ किये दो दिन बाद रहमत चला गया वो दिन है आज का दिन है पूरे ४ साल हो गए फ़ोन तक नहीं किया जब रहमत छोटा था ईद आते ही पूरा घर सर पर उठा ल्रता था मेरी ईदी ,मेरी ईदी .......जब तक उसको ईदी मिल नहीं जाती थी शान्ति  से नहीं बैठता था थोडा बड़ा हुआ तो हमेशा ही अपने अब्बू से झगडा करता था बस इतनी मुझे तो और ईदी चाहिए  उसका ये झगडा बाहर पढने जाने तक चलता रहा ...................अरे बेगम कहाँ है आप हम कबसे चाय नाश्ते के लिए इंतजार कर रहे हैं जब हम सो रहे थे तब तो बड़ा शोर कर रहीं थी अब क्या हुआ अजमा तो जैसे नींद से जागी लाती  हूँ लाती हूँ  
  रहमत के अब्बा एक बात कहूँ अजमा ने ट्रे मेज पर रखते हुए कहा
कहो न बेगम सुबह से इतना कह
रही हो तब तो मुझसे पूछा नहीं  
अब की रहमत  जितना भी ईदी मांगे दे देना
ईदी ...........रहमत को ...........
हाँ रहमत को
बेगम अब कहाँ हमसे ईदी मा
गता है अब वो बड़ा हो गया है इतने सालों से फ़ोन तक तो किया नही उसने ...पता नहीं कैसा होगा ?गहरी साँस लेते हुए शराफत ने कहा
अजमा फिरनी की कटोरी में चम्मच घुमाते हुए बोली .शायद हमने उसकी शादी को लेकर कुछ ज्यादा ही .............
नहीं उसने जो किया उसके आगे हमने तो जो कहा वो कुछ भी नहीं था
क्या हम कुछ नहीं थे  उसके ?क्या हमको बता नहीं सकता था  ?दुःख इस बात का नहीं था  कि उसने गैर मजहब की लड़की से शादी की ,दुःख तो बस इतना था कि क्या एक बार  हमको बता नहीं सकता था ? इतना कह कर शराफत कुर्सी से उठ गए l
अरे फिरनी तो खाते जाओ ..........................
अजमा की बात शराफत ने कहाँ सुनी
अजमा  बर्तन समेटने लगी आँखों से दो बूंदें गिरीं हथेली पर बाकी उसने अपने दुपट्टे के कोने से सुखा लीं अपनी तकलीफ तो उसको थी ही की बेटा भूल गया है ऊपर  रहमत के अब्बा का दुःख वो दो दोहरी तकलीफ से गुजर रही थी बर्तन उठा कर अजमा  मुड़ी तो उसके पीछे शराफत खड़े थे -‘नहीं बेगम रो मत  ज़िन्दगी है तो ये सब  भी होगा चलो मै जाता हूँ नमाज के लिए
शराफत अभी दरवाजे तक पहु
चे ही थे कि फ़ोन कि घंटी बज उठी शराफत फोन की ओर बढ़ गए जिस मेज पर फोन रखा था उस पर क्रोशिया से कढ़ा हुआ एक मेज मोश बिछा था उसको ठीक करते हुए उन्होंने फ़ोन उठाया .
"हेलो शराफत बोल रहा हूँ "
"अब्बा सलाम ..............मै रहमत .............."
 ४ साल बाद बेटे की  आवाज़ सुन कर शराफत खामोश से हो गए अजमा रसोई में जाते जाते रुक गई
और प्रश्नवाचक निगाह से शराफत को देखने लगी
फ़ोन पर दूसरी तरफ से फिर आवाज आई "अब्बा
!"
"हूँ बोलो इतने सालों बात याद आई अब्बा की .इतने दिनों में अम्मी अब्बा कैसे हैं सोचा नहीं आज कैसे फ़ोन किया ?"
  "अब्बा आपका पोता है साहिल अभी ३ साल का है
 आज उसने पहली बार ईदी मागी है तो ...........अब्बा  आप बहुत याद आये  आज ईद है न .मेरी ईदी नहीं देंगे इस बार मुझे यूरोप घूमने जाना है जरा ज्यादा ईदी दीजियेगा ।"
इतना सुनना था कि शराफत की आँखों से आ
सू आगये गला रुँधने -सा लगा  । "इतना नहीं मिलेगा ......................"
"अब्बा कम नहीं लूँगा ......................और हाँ जल्दी ही आऊंगा "
अजमा दूर खड़ी उनको सुन रही थी ख़ुशी के आँसू से उसकी आ
खें छलक उठीं उसको लगा आज चार सालों बाद उसकी ईद होगी

Friday 6 July 2012

 मै पहलवान का किरदार निभा रहा हूँ :-अजय देवगन
 
अनेकों सुपर हिट फिल्म देने वाले हर दिल अज़ीज़ अजय देवगन की नई फिल्म बोल बच्चन ६ जुलाई को रिलीज होने वाली है l अजय देवगन इस फिल्म को लेकर बहुत उत्साहित है रोहित शेट्टी की इस फिल्म में उनके साथ है .असीम, अभिषेक बच्चन ,प्राची देसाईl प्रस्तुत इस फिल्म के बारे में अजय जी से की गई बातचीत :------------   
आपने रोहित शेट्टी जी के साथ बहुत से फिल्म की है एक और फिल्म इनके साथ करने का अनुभव कैसा रहा ?
रोहित के साथ काम करना हमेशा ही बहुत ही अच्छा लगता है lहम एक दूसरे के साथ काम करने में बहुत सहजता का अनुभव करते हैं l कभी कभी तो मुझे कुछ कहने की भी जरुरत नहीं होती है और वो समझ जाते हैं  l
 
बोल बच्चन फिल्म में अपने रोल के बारे में कुछ बताइए क्या आपने अपने रोल के लिए कुछ खास तैयारी की थी ?
मै इस फिल्म में पहलवान का किरदार निभा रहा हूँ इसके आलावा और क्या है दर्शक खुद ही  देख पाएंगे .ये बहुत ताजगी भरा रोल है जहाँ तक तैयारी की बात है हर रोल जो भी आप करते हैं उसकी आपको तैयारी करनी पड़ती है चाहे वो छोटा सा भी रोल हो .मै अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित हूँ l         
फिल्म की शूटिंग जयपुर में हुई है .जयपुर में शूटिंग करने का आपका अनुभव कैसा रहा ?
जयपुर बहुत अच्छा शहर है l.हम ज्यादा समय  तो काम करते रहे इस लिए मै शहर को अधिक  देख नहीं पाया मै जयपुर बहुत बार गया हूँ यहाँ काम करने मै हमेशा ही आनन्द आता है l
क्या आपने विशेष गुजरती थाली का आनन्द लिया है ?

हाँ मैने गुजरती थाली का आनन्द लिया हैl क्या था की अभिषेक को गुजरती खाना बहुत पसंद
है अतः कभी कभी वो हमसब को ले कर जाता था खाना खाने के लिए l
जयपुर के आलावा इस फिल्म की शूटिंग कहाँ हुई है?
अधिक सूटिंग तो जयपुर में  हुई है इसके आलावा  मुंबई और कुछ सीन्स की शूटिंग वाई (महाराष्ट्र का शहर ) में  हुई है l
अभिषेक बच्चन के साथ काम का अनुभव कैसा रहा ?

अभिषेक  के साथ "ज़मीन" के बाद ये मेरी दूसरी फिल्म है वो बहुत अच्छा सहयोगी है अपने काम के प्रति समर्पित है और उसके पास बहुतु ही अच्छा सेन्स ऑफ हियूमर है l
इस फिल्म  में विशेष क्या है ?
ये फिल्म मनोरंजन से भरी है .हसी की सवारी है और निश्चय ही यदि आप पहलवान का किरदार निभा रहे हैं तो आप जानती है की क्या उम्मीद करनी चाहिए ?

इस फिल्म के संगीत के बारे मै कुछ बताइए .आपका पसंदीदा गाना कौन सा है ?
इसका संगीत बहुत ही अच्छा है .मै गानों के बारे में अच्छा रिवियु (reviews ) सुन रहा हूँ lहिमेश का संगीत बहुत ही अच्छा है .lमुझसे एक गाना चुनने को न कहिये .मै एक गाना नहीं चुन सकता क्योंकी ये दुसरे गानों के साथ न इंसाफी  होगी l
क्या आप इस फिल्म के बारे में कुछ खास कहना चाहेंगे ?
कोई खास बात नहीं बस इतना की ये ६ जुलाई  को आने वाली है और मै उम्मीद करता हूँ कि मेरे सारे प्रशंशक फिल्म को देखने देखेंगे   l













 














 








 आप इस साक्षात्कार को नीचे दिए गए links  पर भी पढ़ सकते हैं 
  http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/14555171.cms
  http://www.hindimedia.in/2/index.php/manoranjanjagat/bat-mulakat/2337-i-am-playing-the-role-of-hercules-ajay-devgan.html      




Sunday 10 June 2012

बहुत दिनों से कुछ ब्लॉग पर लगा नहीं पाई क्योंकी  भारत गई थी lआज   पावन माँ  गंगा पर कुछ हाइकु आप सभी के सामने है .आशा है आपको पसंद आयेंगे


सम्भालो मुझे
दिखुंगी  नक़्शे पे ही
सूखी  अगर
-०-
यथार्थ हूँ मै
बन ना जाऊं किस्सा
चेतो तो जरा
-0-

पावन गंगा
धोये औरों  के  पाप
तो मैली हुई
-०-
 रोती है गंगा
कैसे है  कपूत ये
विधवा किया
-०-
गाड़ी बल्लियाँ
तट को मैला किया
मै तो माँ थी न ?
-०-
विचार करो
कहते हो गंगा माँ
तो उपेक्षा क्यों ?
-0-

-०-
तुम्हारी हूँ माँ
मात्र  नदी  नहीं मै
उजाडो मत
-०-
धरा पे  आई
शिव की जटा छोड़ी
सूखने ना दो
-०-
शिव की प्यारी
मै पावन हूँ गंगा
माता तुम्हारी
-०-
लाया गंगा को
पापा धोने के लिए
भगीरथ था 

Tuesday 17 April 2012



 पंकज उधास जी का साक्षात्कार इस लिंक पर भी पढ़ सकते हैं

http://www.hindimedia.in/2/index.php/manoranjanjagat/bat-mulakat/1887-i-never-bhulta-as-rs-18000-pankaj-udhas.html

  http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/12688288.cms

Sunday 25 March 2012




पुराने पल



 पुराने पल
शाखों से झड़ते  रहे 
आज, कल और कल

एक मैली सी
 गठरी में
कुछ सहेज के रखा था
कुछ पल थे
यादों के
गम कोई जो खटका था
पीड़ा  के शूल 
दिलों में  गड़ते रहे 
आज, कल और कल

बीते  लम्हे
खोले  तो
झरना सा बह उठा
भीगा
स्पर्श तुम्हारा
हौले से कह उठा
नाहक तुम
अतीत से लड़ते रहे
आज कल और कल
 
 पुराने पल
शाखों से झड़ते  रहे 
आज, कल और कल 

Friday 27 January 2012

बादलों की धुंध में

बादलों की धुंध में
सूरज मुस्काये
खोल किवाड़ हौले  से
वो   धरा पर आये
गुनगुनी धूप दे
स्वेटर सा आराम
अब तो भैया मस्ती में  हो
अपने सारे काम
बांध  गठरिया आलस भागे
ट्रेन -टिकट कटाए
 बादलों की धुंध में
सूरज मुस्काये 

 पतंगों  के पेंच लड़े
और लड़े नैन
दिन में जोश भरा रहा
खामोश रही रैन
सुनहरी धूप  में
मन- चिड़िया  नहाये
 बादलों की धुंध में
सूरज मुस्काये

अधमुंदी आँखें खोले
सोया सोया गाँव  
किरणें द्वार द्वार पर डोले
देखो नंगे पाँव
मधुर मधुर मुस्काती अम्मा
गुड का पाग पकाए
बादलों की धुंध में
सूरज मुस्काये