पुराने पल
पुराने पल
शाखों से झड़ते रहे
आज, कल और कल
एक मैली सी
गठरी में
कुछ सहेज के रखा था
कुछ पल थे
यादों के
गम कोई जो खटका था
पीड़ा के शूल
दिलों में गड़ते रहे
आज, कल और कल
बीते लम्हे
खोले तो
झरना सा बह उठा
भीगा
स्पर्श तुम्हारा
हौले से कह उठा
नाहक तुम
अतीत से लड़ते रहे
आज कल और कल
पुराने पल
शाखों से झड़ते रहे
आज, कल और कल