Monday 19 December 2011



 हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी दिसम्बर ११, २०११(रविवार) को दोपहर के बाद २ बजे ब्रैम्पटन लाइब्रेरी(कैनेडा) की चिंक्गूज़ी ब्रांच में बेसमेंट के सभागार में सम्पन्न हुई।

श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ ने 9 अक्टूबर की गोष्ठी में जो जापानी छंदों के बारे में जानकारी दी थी। उसी श्रृंखला में इस बार के कार्यक्रम में डॉ. सुधा गुप्ता की "चोका" पुस्तक "ओक भर किरणें" का लोकार्पण श्री सुमन कुमार घई सम्पादक 'द हिन्दी टाइम्स की उपस्थिति में श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’द्वारा किया गया। यह पुस्तक "चोका" छंद में है जिसमें छंद विन्यास ५,७,५,७ वर्णों का होता है (मात्राएँ नहीं गिनी जाती - वर्ण गिने जाते हैं) और अंतिम सात वर्ण की पंक्ति के बाद एक और सात वर्ण की पंक्ति जोड़कर समापन किया जाता है। कविता की लंबाई पर कोई प्रतिबंध नहीं है इसलिए रचनाकार अपनी बात विस्तार से प्रस्तुत कर सकता है।
हाइकु , सेन्र्यू, की 12 पुस्तके जिनमें बाबुना जो आएगी’(2004) और ‘कोरी माटी के दिये’(2009) में सुधा जी के कुछ ताँका भी छप चुके थे। 'सात छेद वाली मैं’ (2011) ताँका का स्वतन्त्र संग्रह है। कार्यक्रम में हिन्दी चोका की इस प्रथम पुस्तक के लोकार्पण के बाद श्री हिमांशु जी ने थोड़ी चर्चा के बाद इसी पुस्तक के पीले गुलाब , रैन बसेरा औरसगुन -पाखी चोका का पाठ किया।
Vimochan Pustak 2काव्य पाठ के इसी क्रम में गोपाल मधु बघेल ,सविता अग्रवाल, आनन्द जी ,कृष्णा वर्मा, प्रो सरन घई ,अनिल पुरोहित, सुमन सिन्हा, पाराशर जी , प्रमिला भार्गव , निर्मल सिद्धू, मीना चोपड़ा, राज माहेश्वरी, सुमन घई (सम्पादक हिन्दी टाइम्स, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, आशा वर्मन और तारा जी ने काव्य पाठ किया । कार्यक्रम का कुशल संचालन आशा बर्मन ने किया।
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Thursday 8 December 2011

हाइकु मुक्तक

सरस्वती सुमन का अक्तुबर -दिसम्बर अंक ‘मुक्तक विशेषांक’ के रूप में अब तक प्रकाशित किसी भी पत्रिका का सबसे बड़ा विशेषांक है ।इस अंक के सम्पादक हैं-जितेन्द्र जौहर । इसमें भारत और देशान्तर के  लगभग 300 रचनाकर सम्मिलित किए गए  हैं।इस अंक में 6 साहित्यकारों के हाइकु मुक्तक भी दिए गए हैं; जिनमें   भावना कुँअर ,डॉ हरदीप सन्धु आस्ट्रेलिया से, रचना श्रीवास्तव , संयुक्त राज्य अमेरिका से और तीन भारत से  हैंरचना श्रीवास्तव के हाइकु मुक्तक यहाँ दिए जा रहे हैं -  प्रस्तुति -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


रचना श्रीवास्तव
1
बर्षा की बूँदें  /महकाएँ   सभी के  / ये अंतर्मन
यही बूँ
दें तो /है किसान के लिए /उसका  धन
धरा हो तृप्त /हर्षा
,भर जा /घर का कोना
नये वस्त्र से /सज जा
एँगे अब /सभी  के तन।
2
बरसे नैना /सावन  में प्रतीक्षा  / करे बहना
कब आ
एँगे/ भैया ,राह तके वो  / दिवस- रैना
बिन गलती / परदेस में  भेजा / काहे बाबुल
भैया मिलन  /नैना तरसे अब   /दुःख  सहना ।
3
स्वयं को भूल / बदला परिवेश/
टूटा कहर
आधुनिकता /की हवा लगी, गाँव /हुए शहर
आत्मकेन्द्रित /हुआ इन्सान अब /भूला संस्कृति
कहे न अब/  पथिक से  कोई
कि /दो पल ठहर ।
4
अम्बर रो
/ धरती का संताप /सह न पा
धमाके गूँ
जे / तो धरा हुई लाल/ माँ पछता
मानव
रे /मानवता का खून / ये कब तक ?
खाली बातों से /जख्मो पे म
हम / काम न आए ।
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