सरस्वती सुमन का अक्तुबर -दिसम्बर अंक ‘मुक्तक विशेषांक’ के रूप में अब तक प्रकाशित किसी भी पत्रिका का सबसे बड़ा विशेषांक है ।इस अंक के सम्पादक हैं-जितेन्द्र जौहर । इसमें भारत और देशान्तर के लगभग 300 रचनाकर सम्मिलित किए गए हैं।इस अंक में 6 साहित्यकारों के हाइकु मुक्तक भी दिए गए हैं; जिनमें भावना कुँअर ,डॉ हरदीप सन्धु आस्ट्रेलिया से, रचना श्रीवास्तव , संयुक्त राज्य अमेरिका से और तीन भारत से हैं। रचना श्रीवास्तव के हाइकु मुक्तक यहाँ दिए जा रहे हैं - प्रस्तुति -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
रचना श्रीवास्तव
रचना श्रीवास्तव
1
बर्षा की बूँदें /महकाएँ सभी के / ये अंतर्मन
यही बूँदें तो /है किसान के लिए /उसका धन
धरा हो तृप्त /हर्षाए ,भर जाए /घर का कोना
नये वस्त्र से /सज जाएँगे अब /सभी के तन।
2
बरसे नैना /सावन में प्रतीक्षा / करे बहना
कब आएँगे/ भैया ,राह तके वो / दिवस- रैना
बिन गलती / परदेस में भेजा / काहे बाबुल
भैया मिलन /नैना तरसे अब /दुःख सहना ।
3
स्वयं को भूल / बदला परिवेश/ टूटा कहर
आधुनिकता /की हवा लगी, गाँव /हुए शहर
आत्मकेन्द्रित /हुआ इन्सान अब /भूला संस्कृति
कहे न अब/ पथिक से कोई कि /दो पल ठहर ।
4
अम्बर रोए / धरती का संताप /सह न पाए
धमाके गूँजे / तो धरा हुई लाल/ माँ पछताए
मानव करे /मानवता का खून / ये कब तक ?
खाली बातों से /जख्मो पे मरहम / काम न आए ।
यही बूँदें तो /है किसान के लिए /उसका धन
धरा हो तृप्त /हर्षाए ,भर जाए /घर का कोना
नये वस्त्र से /सज जाएँगे अब /सभी के तन।
2
बरसे नैना /सावन में प्रतीक्षा / करे बहना
कब आएँगे/ भैया ,राह तके वो / दिवस- रैना
बिन गलती / परदेस में भेजा / काहे बाबुल
भैया मिलन /नैना तरसे अब /दुःख सहना ।
3
स्वयं को भूल / बदला परिवेश/ टूटा कहर
आधुनिकता /की हवा लगी, गाँव /हुए शहर
आत्मकेन्द्रित /हुआ इन्सान अब /भूला संस्कृति
कहे न अब/ पथिक से कोई कि /दो पल ठहर ।
4
अम्बर रोए / धरती का संताप /सह न पाए
धमाके गूँजे / तो धरा हुई लाल/ माँ पछताए
मानव करे /मानवता का खून / ये कब तक ?
खाली बातों से /जख्मो पे मरहम / काम न आए ।
-0-
अच्छा लगा सरस्वती सुमन के बारे में जानकार ..!
ReplyDeleteआभार !
सभी मनभावन हाइकु मुक्तक , हार्दिक बधाई.
ReplyDelete