ढोलक की थाप पर
खुशियों के गीत चले
खुशियों के गीत चले
नव वसन
धारण कर रात
दिन से छुपी -छुपी फिरे
त्योहार को
थाम के मौसम
चौखट चौखट दीप धरे
सजनी से मिलन को
दिन से छुपी -छुपी फिरे
त्योहार को
थाम के मौसम
चौखट चौखट दीप धरे
सजनी से मिलन को
परदेसी मीत चले
हवाएँ बाँधे
बन्दनवार
गुलाबी धूप टाँकें
खुशबू की
सीढ़ी चढ़के
पकवान रसोई से झाँके
चूल्हे चढ़ें बटुले
सदियों की रीत चले
अँजुरी भर
दुआएं है
चंदा की गठरी में
आशा के
जुगनू चमकें
गुलाबी धूप टाँकें
खुशबू की
सीढ़ी चढ़के
पकवान रसोई से झाँके
चूल्हे चढ़ें बटुले
सदियों की रीत चले
अँजुरी भर
दुआएं है
चंदा की गठरी में
आशा के
जुगनू चमकें
झोपड़ी की कथरी में
उत्सव के द्वार पर,
दीपक की प्रीत चले
उत्सव के द्वार पर,
दीपक की प्रीत चले
नवगीत क्या है , माटी की खुशबू से भरा , जीवन की सहजता और अपनेपन का मधुर स्पर्श लिये है । रचना श्रीवास्तव का उर -संगीत से सजा यह नवगीत मन को छू गया।
ReplyDeleteअंजुरी भर
ReplyDeleteदुआएं है
चंदा की गठरी में
आशा के
जुगनू चमकें
झोपडी की कथरी में
उत्सव के द्वार पर,
दीपक की प्रीत चले
bahut sunder bhav liye hai...bahut bahut badhai.
reet, Preet aur meet ke sangam ne banaye khushiyon ke geet.. Very nice written.. Ragards..
ReplyDeleteUttam prayas! It is very diffical( asahaj) to manage even single blog due to the chains of liabalities for everyone, but its natable that you are very successfully managing more than enough blogs. Brabo!
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteआपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteaap sabhi se sneh shbdon ka bahut bahut dhnyavad
ReplyDeleterachana
बहुत सुंदर,क्या कहने
ReplyDeleteएक अच्छी कविता पढ़ने को मिली।
ReplyDeleteआभार आपका।
कुछ भुले-बिछुड़े शब्दों से संवरी यह कविता सचमुच खुशियां बिखेर गई। आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! मर्मस्पर्शी भावों को शब्दों में पिरोती सुंदर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteचंदा की गठरी में
ReplyDeleteआशा के
जुगनू चमकें
झोपड़ी की कथरी में
उत्सव के द्वार पर,
दीपक की प्रीत चले
...bahut sundar nek bhav..
sundar sakaratmal prastuti..
अँजुरी भर
ReplyDeleteदुआएं है
चंदा की गठरी में
आशा के
जुगनू चमकें
झोपड़ी की कथरी में
नव-पल्लवित और ललित कोंपलें.अछूती उपमाओं ने रस- विभोर कर दिया.
ढोलक की थाप पर
ReplyDeleteखुशियों के गीत चले
सुंदर रचना
अँजुरी भर
ReplyDeleteदुआएं है
चंदा की गठरी में
आशा के
जुगनू चमकें
झोपड़ी की कथरी में
उत्सव के द्वार पर,
दीपक की प्रीत चले
वाह! बहुत सुन्दर.पढकर मन प्रसन्न हो गया है.
आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा जी.
बड़ी र से दर पर आंखे लगी थी ,
ReplyDeleteहुजूर आते -आते बड़ी देर कर दी ।
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । मेरे पोस्ट पर सप्रेम आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
Vah pandey ji
ReplyDeleteअँजुरी भर
दुआएं है
चंदा की गठरी में
आशा के
जुगनू चमकें
झोपड़ी की कथरी में
bahut sundar rachna... abhar.