Friday 31 August 2012

तोहफा
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अर्डमोर (अमेरिका का एक शहर )आने के बाद बस एक चीज मोहिना को अच्छी  लगती थी वो थी उसके घर के पास पुस्तकालय का होना .बेटी कुहू और बेटे आदिव के स्कूल जाने के बाद मोहिना पुस्तकालय में आजाती कभी कुछ पढ़ती और कभी बच्चों के स्टोरी टाइम के लिए शॉन की मदद करती .शॉन पुस्तकालय में बच्चों और बड़े बच्चों (किशोरों )का विभाग देखती थी .यहाँ  आते आते मोहिना की शॉन से अच्छी दोस्ती हो गई थी .एक दिन शॉन ने कहा की उसकी बौस लिन उसको हायर करना चाहती है .मोहिना ये सुन कर बहुत खुश हो गई और उसने  हाँ कर दी .अब मोहिना इस पुस्तकालय का हिस्सा थी . मोहिना का मुख्य काम था शॉन की मददत करना .शॉन  और मोहिना साथ में बहुत ख़ुशी  ख़ुशी काम करते lएक रोज जब मोहिना पुस्तकालय पहुंची तो उसने देखा की  शॉन के पास एक बच्चा  बैठा है .शॉन  ने कहा मोहिना ये डेविड है .ये पहले आता था पर कुछ समय से इसका आना बंद था lअभी बहुत दिनों के बाद आया है .
डेविड ने मुस्कुरा के  हाय   किया मोहिना ने भी मुस्कुरा के उसके हाय का जवाब दिया .शॉन ने डेविड को लिखने के लिए कुछ पेपर दिए थे जिनमे कुछ अल्फाबेट थे और कुछ नंबर भी थे .करीब एक घंटे बाद वो बच्चा अपनी माँ के साथ चला गया .डेविड रोज ही पुस्तकालय में आता शॉन उसको कुछ पेपर देती वो काम करता उसके बाद शॉन डेविड को कभी पेन्सिल कभी बुक मार्क कभी कुछ स्टीकर रिवार्ड के रूप में  दे  कर विदा करती . मोहिना कल मुझको आने में थोडा देर हो जाएगी तुम डेविड के लिखने के लिए पेपर निकाल देना और उसका इनाम भी .अगले दिन मोहिना ने शॉन के कहे अनुसार डेविड को सब पेपर लिखने के लिए दे दिए .थोड़ी देर में शॉन भी आगई .अरे वाह तुमने नीले रंग की पेन्सिल और स्टीकर निकाले हैं डेविड के लिए
हाँ शॉन  मैने  देखा था की जब तुम डेविड को कुछ भी देती थी तो वो    हमेशा नीले रंग की चीजें ही चुनता है  तो मुझे लगा की शायद नीला रंग उसका मनपसंद रंग है इसी लिए .....
अरे नहीं मोहिना नीला रंग उसका पसंदीदा रंग नहीं है ये तो उसकी माँ का पसंदीदा रंग है
अरे ये माँ का इतना ख्याल रखता है माँ भी तो इसका इतना ध्यान रखती है रोज  यहाँ लाती है उसको कितने प्यार से सब कुछ समझाती है
माँ कौन सी माँ तुम उससे कहाँ मिली ?
जो उसके साथ आती है वो ही तो डेविड की माँ है न मोहिना बोली
नहीं मोहिना वो तो उसकी केयर टेकर है ,ये विशेष घर में रहता है अपने घर में नहीं रहता है डेविड दिमागी तौर से बहुत कमजोर है न इसलिए इसके माता पिता ने इसको विशेष घर में रखा है. जब ये चार  साल का था तो इसकी माँ को पता चला की डेविड का आई क्यू स्तर   बहुत ही कमजोर है कुछ सालों तक तो डेविड अपने माँ बाप के साथ ही रहता था पर फिर सभी को परेशानी होने लगी और इसकी माँ ने इसको विशेष घर मे भरती करा दिया कई महीनो तक डेविड बहुत रोता था बहुत परेशानऔर  दुखी रहता पर अब देखो बहुत खुश है आराम से रहता है और वहाँ  सभी को बहुत प्यार भी करता है lइस विशेष घर में केयर टेकर होती हैं जो ऐसे बच्चों का ध्यान रखती हैं   जानती हो मोहिना पहले जो इसकी केयर टेकर थी  न उन्होंने इसको यहाँ लाने से मना कर दिया था इसी  लिए बहुत दिनों से डेविड यहाँ नहीं आया था .ये जो अभी आती है न इसका नाम जूली है ये बहुत ही अच्छी है शॉन बताये जा रही थी और मोहिना स्तब्ध हो कर ये सब सुन रही थी उसके मन में डेविड के लिए बहुत ही प्यार उमड़ आया था . 
शॉन डेविड जहाँ रहता है वहां का खर्चा तो बहुत आता होगा इसकी माँ सब कुछ पे करती होगी है न .मोहिना के जिज्ञासू मन ने सवाल किया
 नहीं मोहिना  डेविड अपना खर्चा खुद निकालता है .
मोहिना के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे "पर कैसे शॉन ये तो दिमागी तौर से ................................"
"हाँ तुम सही कह रही हो पर जहाँ ये रहता है न वहाँ के लोग इस बात का भी ध्यान रखते हैं lयहाँ अर्डमोर में कुछ जगह ऐसी है जो ऐसे लोगों को काम देती हैं lडेविड एक होटल में सफाई का काम करता है l "
मोहिना उस दिन काम से आने के बाद भी बस डेविड के बारे में सोचती रही मै जब बड़ा हो जाउँगा तो शॉन तुमको और मोहिना को घुमाने ले जाउँगा .डेविड के हाथों में जूली के कार की चाभी थी .अच्छा और खिलाओगे कुछ नहीं शॉन ने कहा
खिलाऊंगा न पिज्जा " यदि तुम जूली की चाभी खोज सको तो ..............बड़े शारीर में स्थित बच्चे से  दिमाग की मासूम शरारत देख कर जूली मुस्कुरा रही थी
तुम्हारे हाथ में है शॉन ने कहा
नहीं उसने अपने हाथ खोल के दिखा दिए
थोड़ी देर बाद शॉन ने कहा अच्छा मै हारी अब बताओ कहाँ है चाभी .
डेविड ने टोपी के नीचे से चाभी निकाल कर दिखाया ये रही और हसने लगा हम सभी उसके साथ हसने लगे .तभी कुकर की सिटी बजी और मोहिना अपनी सोच के घेरे से बाहर आई
एक दिन सोमवार की सुबह जब डेविड आया तो शॉन  ने पूछा डेविड इस वीकएंड में क्या किया ?
मै माँ के पास गया था .अपने भाई बहनों के साथ खेलाl माँ ने मेरे लिए पिज्जा बनाया था  .lजानती हो शॉन कल मेरा जन्मदिन था l
अरे वाह हैप्पी बर्थ डे .मोहिना  और शॉन ने एक साथ  कहा
"तुमको अपने जन्मदिन पर क्या तोहफा चाहिए "मोहिना ने पूछा l
डेविड चुप रहा l
"अरे ! बताओ न तुम को अपने जन्मदिन पर क्या चाहिए हम लाकर देंगे तुम्हे ""अबकी शॉन ने कहा
"मै अपनी माँ के मनपसंद  रंग की चीजे लेता हूँ ,जो उसको अच्छा लगे वही करता हूँ फिर भी माँ .............."डेविड थोड़ी देर ले किये चुप हो गया फिर कहने लगा "  मै हमेशा अपनी माँ के साथ रहना चाहता हूँ , उस विशेष घर में नहीं क्या ये तोहफा मुझे मिल सकता है ?"इतना कह कर डेविड अपने पेपर पर  काम करने लगा उसको जैसे इस प्रश्न का जवाब मालूम था
मोहिना और शॉन एक दुसरे का मुँह  देखने लगे .ये तोहफा उसको इस जन्म में तो कभी नहीं मिल सकता था l
ये लघुकथा पहले लिखी थी पर यहाँ पोस्ट नहीं कर पाई थी  आज जब की ईद बीत चुकी  है फिर भी पोस्ट कर रही हूँ सोचा त्योहारों को मानाने का कोई मौसम नहीं होता .

लघुकथा
ईदी

अजमा रोज़ की तरह उबह जल्दी उठ कर सीधा रसोई  में पहुची .उसको पानी जो भरना था क्योंकि  पानी सुबह केवल पाँच  से ह बजे तक ही आता था  नल खोल कर उसके नीचे बाल्टी रख दी सों सों ..................की आवाज आई पर पानी नहीं आया  उफ़  पता नहीं पानी आएगा भी या नहीं .जब से अब्दुल ने मोटर लगवाई है ,यहाँ पानी आना भी दूभर हो गया है तभी पानी की पतली सी धार  आने गली अजमा को सुकून हुआ- चलो अब उसको दूर सरकारी नल से पानी लाने नहीं जाना पड़ेगा कल उसकी आँख खुलने में जरा- सी देर क्या हो गई की उसको पानी नहीं मिला   रहमत के अब्बू तो कुछ करते नहीं है  जब से रिटायर हुए हैं, खाली हुक्म  ही चलाते रहते हैं अजमा बोलती  जा रही थी और बाल्टियों और ड्रमों में पानी भरती जा रही थी  ये अजमा का रोज़ का काम था पानी भरना और रहमत के अब्बू को कोसना
जब से रहमत काम के सिलसिले में अमेरिका गया है
,घर में अजमा और रहमत के अब्बू शराफत ही रह गए हैं जब तक अजमा पानी भरती साफ सफाई करती तब तक मियाँ शराफत चैन की नींद सोते रहते उठते तब तक नही जबतक अजमा चाय की प्याली ले कर न आये "रहमत के बब्बू अब तो उठो अफ़ताब सर चढ़ आया है कोई नमाज़ नहीं कुछ नहीं अरे  इस बुढ़ापे में खुदा से कुछ डरो"
"अरे बेग
,डरे वो जिन्होंने गुनाह किये हों हम तो पाक दमन हैं हम क्यों डरे?"शराफत ने लिहाफ से मुँह निकलते हुए कहा -"अरे तुम भी बैठो बेगम "
रहने दो ये चोचले तुम्हारे  अगर मै  भी बैठ गई तो काम कौन करेगा आज ईद है उठो तैयार हो जाओ और कम से कम आज तो मज्जिद जा के नमाज पढ़ आओ ".. अपना हाथ छुड़ाती अजमा नाश्ता बनाने  चली गई
शराफत बस मुस्कुरा के रह गए अख़बार की सुर्खिओं के साथ चाय पी कर शराफत नहाने के लिए गुसलखाने में चले गए
अजमा ने फिरनी को कटोरी में निकाला थोड़ी सी  बाहर गिर गई  गई तो उसको पोछने लगी रहमत को कितनी पसंद है फिरनी पता नहीं बहू बनाती होगी या नहीं ,बनाएगी भी कैसे उसको कहाँ आता होगा
रहमत ने तो शादी में बुलाया तक नहीं बस फोन कर के इतना कहा की अम्मी मैने शादी कर ली है कभी घर ले कर आऊँगाउस रोज जब रहमत बहू के साथ आया था तो देख कर अजमा तो जैसे गिरने को हो गई थी  शराफत ने सम्भाल लिया वरना .............. गोरी मेम अंग्रेजन से शादी कर लाया या या अल्लाह अजमा ने मन ही मन कहा फिर भी बेटे का मुँह  देख कर खून का घूट पी कर रह गई सीने  पर पत्थर रख कर सारे रीत रिवाज़ किये दो दिन बाद रहमत चला गया वो दिन है आज का दिन है पूरे ४ साल हो गए फ़ोन तक नहीं किया जब रहमत छोटा था ईद आते ही पूरा घर सर पर उठा ल्रता था मेरी ईदी ,मेरी ईदी .......जब तक उसको ईदी मिल नहीं जाती थी शान्ति  से नहीं बैठता था थोडा बड़ा हुआ तो हमेशा ही अपने अब्बू से झगडा करता था बस इतनी मुझे तो और ईदी चाहिए  उसका ये झगडा बाहर पढने जाने तक चलता रहा ...................अरे बेगम कहाँ है आप हम कबसे चाय नाश्ते के लिए इंतजार कर रहे हैं जब हम सो रहे थे तब तो बड़ा शोर कर रहीं थी अब क्या हुआ अजमा तो जैसे नींद से जागी लाती  हूँ लाती हूँ  
  रहमत के अब्बा एक बात कहूँ अजमा ने ट्रे मेज पर रखते हुए कहा
कहो न बेगम सुबह से इतना कह
रही हो तब तो मुझसे पूछा नहीं  
अब की रहमत  जितना भी ईदी मांगे दे देना
ईदी ...........रहमत को ...........
हाँ रहमत को
बेगम अब कहाँ हमसे ईदी मा
गता है अब वो बड़ा हो गया है इतने सालों से फ़ोन तक तो किया नही उसने ...पता नहीं कैसा होगा ?गहरी साँस लेते हुए शराफत ने कहा
अजमा फिरनी की कटोरी में चम्मच घुमाते हुए बोली .शायद हमने उसकी शादी को लेकर कुछ ज्यादा ही .............
नहीं उसने जो किया उसके आगे हमने तो जो कहा वो कुछ भी नहीं था
क्या हम कुछ नहीं थे  उसके ?क्या हमको बता नहीं सकता था  ?दुःख इस बात का नहीं था  कि उसने गैर मजहब की लड़की से शादी की ,दुःख तो बस इतना था कि क्या एक बार  हमको बता नहीं सकता था ? इतना कह कर शराफत कुर्सी से उठ गए l
अरे फिरनी तो खाते जाओ ..........................
अजमा की बात शराफत ने कहाँ सुनी
अजमा  बर्तन समेटने लगी आँखों से दो बूंदें गिरीं हथेली पर बाकी उसने अपने दुपट्टे के कोने से सुखा लीं अपनी तकलीफ तो उसको थी ही की बेटा भूल गया है ऊपर  रहमत के अब्बा का दुःख वो दो दोहरी तकलीफ से गुजर रही थी बर्तन उठा कर अजमा  मुड़ी तो उसके पीछे शराफत खड़े थे -‘नहीं बेगम रो मत  ज़िन्दगी है तो ये सब  भी होगा चलो मै जाता हूँ नमाज के लिए
शराफत अभी दरवाजे तक पहु
चे ही थे कि फ़ोन कि घंटी बज उठी शराफत फोन की ओर बढ़ गए जिस मेज पर फोन रखा था उस पर क्रोशिया से कढ़ा हुआ एक मेज मोश बिछा था उसको ठीक करते हुए उन्होंने फ़ोन उठाया .
"हेलो शराफत बोल रहा हूँ "
"अब्बा सलाम ..............मै रहमत .............."
 ४ साल बाद बेटे की  आवाज़ सुन कर शराफत खामोश से हो गए अजमा रसोई में जाते जाते रुक गई
और प्रश्नवाचक निगाह से शराफत को देखने लगी
फ़ोन पर दूसरी तरफ से फिर आवाज आई "अब्बा
!"
"हूँ बोलो इतने सालों बात याद आई अब्बा की .इतने दिनों में अम्मी अब्बा कैसे हैं सोचा नहीं आज कैसे फ़ोन किया ?"
  "अब्बा आपका पोता है साहिल अभी ३ साल का है
 आज उसने पहली बार ईदी मागी है तो ...........अब्बा  आप बहुत याद आये  आज ईद है न .मेरी ईदी नहीं देंगे इस बार मुझे यूरोप घूमने जाना है जरा ज्यादा ईदी दीजियेगा ।"
इतना सुनना था कि शराफत की आँखों से आ
सू आगये गला रुँधने -सा लगा  । "इतना नहीं मिलेगा ......................"
"अब्बा कम नहीं लूँगा ......................और हाँ जल्दी ही आऊंगा "
अजमा दूर खड़ी उनको सुन रही थी ख़ुशी के आँसू से उसकी आ
खें छलक उठीं उसको लगा आज चार सालों बाद उसकी ईद होगी