Friday 31 August 2012

ये लघुकथा पहले लिखी थी पर यहाँ पोस्ट नहीं कर पाई थी  आज जब की ईद बीत चुकी  है फिर भी पोस्ट कर रही हूँ सोचा त्योहारों को मानाने का कोई मौसम नहीं होता .

लघुकथा
ईदी

अजमा रोज़ की तरह उबह जल्दी उठ कर सीधा रसोई  में पहुची .उसको पानी जो भरना था क्योंकि  पानी सुबह केवल पाँच  से ह बजे तक ही आता था  नल खोल कर उसके नीचे बाल्टी रख दी सों सों ..................की आवाज आई पर पानी नहीं आया  उफ़  पता नहीं पानी आएगा भी या नहीं .जब से अब्दुल ने मोटर लगवाई है ,यहाँ पानी आना भी दूभर हो गया है तभी पानी की पतली सी धार  आने गली अजमा को सुकून हुआ- चलो अब उसको दूर सरकारी नल से पानी लाने नहीं जाना पड़ेगा कल उसकी आँख खुलने में जरा- सी देर क्या हो गई की उसको पानी नहीं मिला   रहमत के अब्बू तो कुछ करते नहीं है  जब से रिटायर हुए हैं, खाली हुक्म  ही चलाते रहते हैं अजमा बोलती  जा रही थी और बाल्टियों और ड्रमों में पानी भरती जा रही थी  ये अजमा का रोज़ का काम था पानी भरना और रहमत के अब्बू को कोसना
जब से रहमत काम के सिलसिले में अमेरिका गया है
,घर में अजमा और रहमत के अब्बू शराफत ही रह गए हैं जब तक अजमा पानी भरती साफ सफाई करती तब तक मियाँ शराफत चैन की नींद सोते रहते उठते तब तक नही जबतक अजमा चाय की प्याली ले कर न आये "रहमत के बब्बू अब तो उठो अफ़ताब सर चढ़ आया है कोई नमाज़ नहीं कुछ नहीं अरे  इस बुढ़ापे में खुदा से कुछ डरो"
"अरे बेग
,डरे वो जिन्होंने गुनाह किये हों हम तो पाक दमन हैं हम क्यों डरे?"शराफत ने लिहाफ से मुँह निकलते हुए कहा -"अरे तुम भी बैठो बेगम "
रहने दो ये चोचले तुम्हारे  अगर मै  भी बैठ गई तो काम कौन करेगा आज ईद है उठो तैयार हो जाओ और कम से कम आज तो मज्जिद जा के नमाज पढ़ आओ ".. अपना हाथ छुड़ाती अजमा नाश्ता बनाने  चली गई
शराफत बस मुस्कुरा के रह गए अख़बार की सुर्खिओं के साथ चाय पी कर शराफत नहाने के लिए गुसलखाने में चले गए
अजमा ने फिरनी को कटोरी में निकाला थोड़ी सी  बाहर गिर गई  गई तो उसको पोछने लगी रहमत को कितनी पसंद है फिरनी पता नहीं बहू बनाती होगी या नहीं ,बनाएगी भी कैसे उसको कहाँ आता होगा
रहमत ने तो शादी में बुलाया तक नहीं बस फोन कर के इतना कहा की अम्मी मैने शादी कर ली है कभी घर ले कर आऊँगाउस रोज जब रहमत बहू के साथ आया था तो देख कर अजमा तो जैसे गिरने को हो गई थी  शराफत ने सम्भाल लिया वरना .............. गोरी मेम अंग्रेजन से शादी कर लाया या या अल्लाह अजमा ने मन ही मन कहा फिर भी बेटे का मुँह  देख कर खून का घूट पी कर रह गई सीने  पर पत्थर रख कर सारे रीत रिवाज़ किये दो दिन बाद रहमत चला गया वो दिन है आज का दिन है पूरे ४ साल हो गए फ़ोन तक नहीं किया जब रहमत छोटा था ईद आते ही पूरा घर सर पर उठा ल्रता था मेरी ईदी ,मेरी ईदी .......जब तक उसको ईदी मिल नहीं जाती थी शान्ति  से नहीं बैठता था थोडा बड़ा हुआ तो हमेशा ही अपने अब्बू से झगडा करता था बस इतनी मुझे तो और ईदी चाहिए  उसका ये झगडा बाहर पढने जाने तक चलता रहा ...................अरे बेगम कहाँ है आप हम कबसे चाय नाश्ते के लिए इंतजार कर रहे हैं जब हम सो रहे थे तब तो बड़ा शोर कर रहीं थी अब क्या हुआ अजमा तो जैसे नींद से जागी लाती  हूँ लाती हूँ  
  रहमत के अब्बा एक बात कहूँ अजमा ने ट्रे मेज पर रखते हुए कहा
कहो न बेगम सुबह से इतना कह
रही हो तब तो मुझसे पूछा नहीं  
अब की रहमत  जितना भी ईदी मांगे दे देना
ईदी ...........रहमत को ...........
हाँ रहमत को
बेगम अब कहाँ हमसे ईदी मा
गता है अब वो बड़ा हो गया है इतने सालों से फ़ोन तक तो किया नही उसने ...पता नहीं कैसा होगा ?गहरी साँस लेते हुए शराफत ने कहा
अजमा फिरनी की कटोरी में चम्मच घुमाते हुए बोली .शायद हमने उसकी शादी को लेकर कुछ ज्यादा ही .............
नहीं उसने जो किया उसके आगे हमने तो जो कहा वो कुछ भी नहीं था
क्या हम कुछ नहीं थे  उसके ?क्या हमको बता नहीं सकता था  ?दुःख इस बात का नहीं था  कि उसने गैर मजहब की लड़की से शादी की ,दुःख तो बस इतना था कि क्या एक बार  हमको बता नहीं सकता था ? इतना कह कर शराफत कुर्सी से उठ गए l
अरे फिरनी तो खाते जाओ ..........................
अजमा की बात शराफत ने कहाँ सुनी
अजमा  बर्तन समेटने लगी आँखों से दो बूंदें गिरीं हथेली पर बाकी उसने अपने दुपट्टे के कोने से सुखा लीं अपनी तकलीफ तो उसको थी ही की बेटा भूल गया है ऊपर  रहमत के अब्बा का दुःख वो दो दोहरी तकलीफ से गुजर रही थी बर्तन उठा कर अजमा  मुड़ी तो उसके पीछे शराफत खड़े थे -‘नहीं बेगम रो मत  ज़िन्दगी है तो ये सब  भी होगा चलो मै जाता हूँ नमाज के लिए
शराफत अभी दरवाजे तक पहु
चे ही थे कि फ़ोन कि घंटी बज उठी शराफत फोन की ओर बढ़ गए जिस मेज पर फोन रखा था उस पर क्रोशिया से कढ़ा हुआ एक मेज मोश बिछा था उसको ठीक करते हुए उन्होंने फ़ोन उठाया .
"हेलो शराफत बोल रहा हूँ "
"अब्बा सलाम ..............मै रहमत .............."
 ४ साल बाद बेटे की  आवाज़ सुन कर शराफत खामोश से हो गए अजमा रसोई में जाते जाते रुक गई
और प्रश्नवाचक निगाह से शराफत को देखने लगी
फ़ोन पर दूसरी तरफ से फिर आवाज आई "अब्बा
!"
"हूँ बोलो इतने सालों बात याद आई अब्बा की .इतने दिनों में अम्मी अब्बा कैसे हैं सोचा नहीं आज कैसे फ़ोन किया ?"
  "अब्बा आपका पोता है साहिल अभी ३ साल का है
 आज उसने पहली बार ईदी मागी है तो ...........अब्बा  आप बहुत याद आये  आज ईद है न .मेरी ईदी नहीं देंगे इस बार मुझे यूरोप घूमने जाना है जरा ज्यादा ईदी दीजियेगा ।"
इतना सुनना था कि शराफत की आँखों से आ
सू आगये गला रुँधने -सा लगा  । "इतना नहीं मिलेगा ......................"
"अब्बा कम नहीं लूँगा ......................और हाँ जल्दी ही आऊंगा "
अजमा दूर खड़ी उनको सुन रही थी ख़ुशी के आँसू से उसकी आ
खें छलक उठीं उसको लगा आज चार सालों बाद उसकी ईद होगी

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