Monday 19 December 2011



 हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी दिसम्बर ११, २०११(रविवार) को दोपहर के बाद २ बजे ब्रैम्पटन लाइब्रेरी(कैनेडा) की चिंक्गूज़ी ब्रांच में बेसमेंट के सभागार में सम्पन्न हुई।

श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ ने 9 अक्टूबर की गोष्ठी में जो जापानी छंदों के बारे में जानकारी दी थी। उसी श्रृंखला में इस बार के कार्यक्रम में डॉ. सुधा गुप्ता की "चोका" पुस्तक "ओक भर किरणें" का लोकार्पण श्री सुमन कुमार घई सम्पादक 'द हिन्दी टाइम्स की उपस्थिति में श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’द्वारा किया गया। यह पुस्तक "चोका" छंद में है जिसमें छंद विन्यास ५,७,५,७ वर्णों का होता है (मात्राएँ नहीं गिनी जाती - वर्ण गिने जाते हैं) और अंतिम सात वर्ण की पंक्ति के बाद एक और सात वर्ण की पंक्ति जोड़कर समापन किया जाता है। कविता की लंबाई पर कोई प्रतिबंध नहीं है इसलिए रचनाकार अपनी बात विस्तार से प्रस्तुत कर सकता है।
हाइकु , सेन्र्यू, की 12 पुस्तके जिनमें बाबुना जो आएगी’(2004) और ‘कोरी माटी के दिये’(2009) में सुधा जी के कुछ ताँका भी छप चुके थे। 'सात छेद वाली मैं’ (2011) ताँका का स्वतन्त्र संग्रह है। कार्यक्रम में हिन्दी चोका की इस प्रथम पुस्तक के लोकार्पण के बाद श्री हिमांशु जी ने थोड़ी चर्चा के बाद इसी पुस्तक के पीले गुलाब , रैन बसेरा औरसगुन -पाखी चोका का पाठ किया।
Vimochan Pustak 2काव्य पाठ के इसी क्रम में गोपाल मधु बघेल ,सविता अग्रवाल, आनन्द जी ,कृष्णा वर्मा, प्रो सरन घई ,अनिल पुरोहित, सुमन सिन्हा, पाराशर जी , प्रमिला भार्गव , निर्मल सिद्धू, मीना चोपड़ा, राज माहेश्वरी, सुमन घई (सम्पादक हिन्दी टाइम्स, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, आशा वर्मन और तारा जी ने काव्य पाठ किया । कार्यक्रम का कुशल संचालन आशा बर्मन ने किया।
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Thursday 8 December 2011

हाइकु मुक्तक

सरस्वती सुमन का अक्तुबर -दिसम्बर अंक ‘मुक्तक विशेषांक’ के रूप में अब तक प्रकाशित किसी भी पत्रिका का सबसे बड़ा विशेषांक है ।इस अंक के सम्पादक हैं-जितेन्द्र जौहर । इसमें भारत और देशान्तर के  लगभग 300 रचनाकर सम्मिलित किए गए  हैं।इस अंक में 6 साहित्यकारों के हाइकु मुक्तक भी दिए गए हैं; जिनमें   भावना कुँअर ,डॉ हरदीप सन्धु आस्ट्रेलिया से, रचना श्रीवास्तव , संयुक्त राज्य अमेरिका से और तीन भारत से  हैंरचना श्रीवास्तव के हाइकु मुक्तक यहाँ दिए जा रहे हैं -  प्रस्तुति -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


रचना श्रीवास्तव
1
बर्षा की बूँदें  /महकाएँ   सभी के  / ये अंतर्मन
यही बूँ
दें तो /है किसान के लिए /उसका  धन
धरा हो तृप्त /हर्षा
,भर जा /घर का कोना
नये वस्त्र से /सज जा
एँगे अब /सभी  के तन।
2
बरसे नैना /सावन  में प्रतीक्षा  / करे बहना
कब आ
एँगे/ भैया ,राह तके वो  / दिवस- रैना
बिन गलती / परदेस में  भेजा / काहे बाबुल
भैया मिलन  /नैना तरसे अब   /दुःख  सहना ।
3
स्वयं को भूल / बदला परिवेश/
टूटा कहर
आधुनिकता /की हवा लगी, गाँव /हुए शहर
आत्मकेन्द्रित /हुआ इन्सान अब /भूला संस्कृति
कहे न अब/  पथिक से  कोई
कि /दो पल ठहर ।
4
अम्बर रो
/ धरती का संताप /सह न पा
धमाके गूँ
जे / तो धरा हुई लाल/ माँ पछता
मानव
रे /मानवता का खून / ये कब तक ?
खाली बातों से /जख्मो पे म
हम / काम न आए ।
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Thursday 27 October 2011

खुशियों के गीत



ढोलक की थाप पर 
खुशियों के  गीत चले   

नव वसन 
धारण कर रात
दिन से छुपी -छुपी फिरे 
त्योहार को 
थाम  के मौसम 
चौखट चौखट  दीप धरे 
सजनी से मिलन को  
परदेसी मीत चले 

हवाएँ बाँधे 
बन्दनवार 
गुलाबी धूप  टाँकें 
खुशबू की 
सीढ़ी चढ़के 
पकवान रसोई से झाँके 
चूल्हे चढ़ें  बटुले 
सदियों की  रीत चले 

अँजुरी भर 
दुआएं है 
चंदा की गठरी में 
आशा के 
 जुगनू  चमकें 
झोपड़ी की  कथरी में 
उत्सव के द्वार  पर,
दीपक की प्रीत चले

Monday 10 October 2011

एक सुनहरी आवाज और मखमली व्यक्तित्व का स्वामी चिर निद्रा में सो गया .मुझे याद है जब मैने उनका साक्षात्कार लिया था उन्होंने मुझे बहुत  दुआएं दी थी और बड़े प्यार से एक एक प्रश्न का उत्तर दिया था .कहा था रचना जी मेरा जीवन संगीत है .मै  अगला अल्बम  माता पिता पर निकालने वाला हूँ .पर अपना सोचा कब होता है उन्होंने इस अल्बम की बहुत सी तैयारियां कर ली थी पर अल्बम आने से पहले ही भगवान ने उन्हें अपने पास बुला लिया .उसकी मर्जी पर किसका जोर चलता है .अपनी गायकी से सभी को रूहानी सुकून देने वाला जाने कहाँ चला गया "चिठ्ठी न कोई सन्देश जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए " .आज भारत और उससे बाहर बसे तमाम उनके चाहने वाले उनकी याद को गुनगुना रहे हैं .और शायद कह रहे हैं हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते    .सच ही है रिश्ता जब संगीत का हो तो वो  कभी टूटता नहीं .उनकी आवाज रहती दुनिया तक हर दिल में मंदिर के दिये सी महफूज़ रहेगी .वो साक्षात्कार जो मेरे लिए धरोहर बन गया आपसभी के साथ बाँटना  चाहती हूँ

 माता-पिता पर होगा मेरा अगला एल्बम

जगजीत सिंह
जगजीत सिंह की गायकी के मुरीद पूरी दुनिया में हैं
अपनी मख़मली आवाज़ से ग़ज़ल को आम लोगों तक पहुँचाने वाले जगजीत सिंह कीग़ज़ल गायकी ही उनका परिचय है. उनके ग़ज़ल की सादगी और आवाज़ की ताज़गी ने करोड़ों लोगों को उनका दीवाना बना दिया. पिछले दिनों एक कंसर्ट के सिलसिले में जब वे अमरीका आए तब हमने उनसे बीबीसी के लिए बात की. उनसे हुई बातचीत का एक अंश:
आपके घर में संगीत का माहौल नहीं था. फिर आपका रुझान ग़ज़ल गायकी की तरफ़ कैसे हुआ?
संगीत का माहौल तो नहीं था पर मेरे पिताजी को संगीत का बहुत शौक था. वो कीर्तन सुनने जाया करते थे. वो चाहते थे कि कोई संगीत सीखे और सुरों की दुनिया में जाए और उन्होंने ही मुझे संगीत की शिक्षा दिलानी शुरू की. बाद में मेरा स्वयं का रुझान इस तरफ़ हो गया और मैं सीखने लगा.

जब ग़ज़ल गायकी की दुनिया में आप आए उस वक़्त बहुत सी जानी मानी हस्तियां थी. आपने उनके बीच में अपनी पहचान कैसे बनाई?

उन बड़ी हस्तियों से मेरा कोई मुकाबला नहीं था और न ही मैंने उनसे आगे आने के बारे में सोचा. मैंने तो बस अपना काम किया और लोगों ने पसंद किया. उस समय मेरी एल्बम 'द अनफ़ारगेटेबल' आई थी, जो बहुत चली. उसने ही मेरी एक पहचान बना दी.

आप जब अपनी एल्बम के लिए ग़ज़लों का चुनाव करते हैं तो आप किन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं?

सबसे पहले तो देखता हूँ की ग़ज़ल की भाषा सरल हो और जो शायर कहना चाहता है कहने में सफल हुआ हो. ग़ज़ल प्रेम पर हो या फिर उनमे कोई चौंकाने वाला तत्व हो, ज़िंदगी के क़रीब हो, उस में अश्लीलता नहीं होनी चाहिए. मुख्यतः मैं इन्हीं बातों का ध्यान रखता हूँ.

आप एक अच्छे संगीतकार भी हैं. आज इतने सारे वाद्य यंत्रों के बावजूद संगीत मे माधुर्य क्यों नहीं है?
संगीत मशीन बन गया है. मनुष्य का सान्निध्य उसमें नहीं रहा अतः वो भाव भी नहीं रह गया. उसमें शोर ज्यादा है पर अभी भी कुछ अच्छे संगीत आ रहे हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है.

नए गाने वालों में क्या कोई ऐसा है जो आपके पदचिह्नों पर चलके ग़ज़ल गायकी की परंपरा को आगे बढ़ा सके?
अभी तो कोई ऐसा लग नहीं रहा है क्योंकि डरते हैं लोग कि आगे गुजारा कैसे होगा.इस लिए पॉप संगीत की ओर भागते हैं इसलिए ग़ज़ल गायकों का अभाव रहता है. संगीत आत्मिक सुख के लिए होता है पर परिवार चलाने को पैसे भी चाहिए.

आप बहुत सी चैरिटी संस्थाओं से जुड़े हैं. क्या सोच है इसके पीछे?

सोच नेक है. जो भी मेरे पास आता है, कोशिश करता हूँ कि उस संस्था के लिए कुछ कर सकूं. चैरिटी के लिए मै साल भर में 10 या 15 प्रतिशत कन्सर्ट फ्री करके देता हूँ.

व्यस्त जीवन से जब कुछ लम्हें फुर्सत के मिलते हैं, तो आप क्या करना पसंद करते हैं?
मै टीवी देखता हूँ. फुटबाल देखता हूँ. क्रिकेट देखता हूँ .

आपका पसंदीदा क्रिकेटर कौन है?
जो भी 100 रन का स्कोर करता है, वही पसंदीदा क्रिकेटर हैं. वैसे मुझे अपनी पूरी टीम पसंद है, क्योंकि कोई किसी क्षेत्र में अच्छा है तो कोई अन्य किसी क्षेत्र में. किसी एक का नाम लेना मुश्किल है

आप टीवी में सीरियल देखते हैं या रियल्टी शो?
मै टीवी पर फ़िल्मे देखता हूँ या फुटबाल मैच देखता हूँ. यूरोपियन टीमों के बीच फुटबाल मैच देखना भी मुझे बहुत अच्छा लगता है.

किस कलाकार की फिल्म देखना ज्यादा पसंद करते हैं?
मुझे आमिर खान, अजय देवगन, हृतिक रौशन बहुत पसंद हैं. इनकीफि़ल्म देखना बहुत पसंद करता हूँ .

आपके हर एल्बम में कुछ न कुछ अलग है. इनमें से कौन सा एल्बम आपके दिल के क़रीब है और इस चाहत का कारण क्या है?

वर्ष1988 में मेरा एक एल्बम आया था बियॉन्ड टाइम. भारत में निकलने वाला ये पहला डिजिटल एल्बम था. इसको मैं लंदन से रिकॉर्ड करके लाया था. यह मुझेबहुत पसंद है. लता जी के साथ मेरा एक एल्बम था ‘सजदा’ वो भी मुझे बहुतपसंद है. 'सम वन सम व्हेयर' और 'मिर्ज़ा ग़ालिब' ये सारे मेरे पसंदीदा एल्बम हैं .

आप जब ग़ज़ल गाते हैं तो आप क्या कुछ ख़ास तैयारी करते हैं?

मै एक सामान्य जीवन जीता हूँ. एक सामान्य व्यक्ति हूँ. बस खाने में कोई फालतू चीजें नहीं खाता हूँ. तली हुई चीजें नहीं खाता हूँ. बर्फ नहीं लेताहूँ, सिगरेट, शराब नहीं पीता हूँ. थोड़ी-थोड़ी एक्सरसाइज़ करता हूँ.रियाज़ मैं दो घंटे रोज़ करता हूँ. परहेज अपने आप ही हो जाता है.

आप भारत में शो करते हैं और भारत के बाहर भी. क्या अंतर पाते हैं?
एक तो ये कि भारत में केवल भारतीय होते हैं, यहाँ पर पाकिस्तानी, भारतीय, बांग्लादेशी और थोड़े बहुत विदेशी भी होते हैं. यहाँ पर मिले-जुले सुननेवाले होते हैं. यहाँ शो महंगा जरूर होता है पर ऑडिटोरियम बहुत अच्छे होते हैं. लोग आराम से सुनते हैं. नियम कानून बहुत अच्छे होते है. भारत में सुनने वाले मारे ख़ुशी के नियंत्रण के बाहर हो जाते हैं. नियम कानून को कोई मानता नहीं. अधिकारी सहायता नहीं करते हैं. एक व्यक्ति 200 तक पास मांगता है तो आर्गनाइजर को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. पर हाँ, अपनों का प्यार बहुत मिलता है.

आप आने वाले समय में क्या कोई नया एल्बम निकालने वाले हैं?

हाँ, मैं एक एल्बम पर काम कर रहा हूँ. यहाँ से जा कर रिकार्डिंग शुरू करूँगा. उस का विषय है- माता पिता. माँ-बाप, इनका जीवन में क्या महत्त्व है, उसी पर आधारित है ये एल्बम. इसके लिए एक ग़ज़ल गुलज़ार साहब, एक नज़्म निदा फ़ाज़ली और एक नज़्म जावेद अख़्तर लिख रहे हैं.

ये विचार आपके मन में कैसे आया?
दिल्ली मे एक श्रीवास्तव साहब हैं. वही मेरे पास ये विचार लेके आए थे तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा और मैने इसको करना स्वीकार कर लिया .

आपने अपनी एल्बम के लिए गया है और फिल्मो में भी गाया है. क्या अंतर है दोनों में?

फ़िल्मों में सीन के हिसाब से गाना पड़ता है. आवाज़ में उस तरह के भाव लाने पड़ते हैं. ये भी देखना होता है कि किस के ऊपर फ़िल्माया जाएगा. हीरो शहर का है या गाँव का, इस बात को ध्यान में रख कर गाना बनाया जाता है और उसी तरह से गाना पड़ता है. जब आप अपना एल्बम करते हैं तो जो ग़ज़ल आपको पसंद आई है वो गा सकते हैं अपनी तरह से गा सकते हैं मुख्यतः ये अन्तर होता है .

जगजीत सिंह के शब्दों में जगजीत सिंह क्या है?
एक आम इंसान है जो बस अपना काम मेहनत से करता है.संगीत जिसका जीवन है. बस यही है जगजीत सिंह.

नई पीढ़ी जो संगीत को अपनाना चाहती है उन को आप क्या विशेष संदेश देंगे जिससे वो सफलता पा सके?

यदि ग़ज़ल गानी है तो थोड़ा उर्दू भी आनी चाहिए. क्योंकि भाषा का सही उच्चारण बहुत आवश्यक है. साथ में रियाज़ करना सबसे ज़रूरी है. फिर मेहनत और लगन से इंसान अपनी मंज़िल पा सकता है. यदि आप को संगीत की दुनिया में रहना है तो खुद को पक्का कीजिए, मेहनत और कुछ पाने की ईमानदार कोशिश कीजिए. सफलता आपके क़दम चूमेगी.

Wednesday 24 August 2011

चाइल्ड ऑफ मून
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पूर्वी की अलसाई  सुबह जब जागने को होती तो वह जौगिंग  के लिए जा रही होती. पूर्वी हाथ में चाय का प्याला और स्थानीय अख़बार लिए  खिड़की पर आ जाती और उसको जाते हुए देखती .यदि उसकी नजर पूर्वी पर पड़ती तो हाथ उठाके  हाय कहना नहीं भूलती .. बदले में पूर्वी भी मुस्कुरा देती . .बरफ पड़े या पानी बरसे या कोहरे की चादर हर शय को ढक दे ,मौसम का कोई भी रूप हो मिस सुबह को जौगिंग पर जाने से नहीं रोक पाता . उसको यही नाम दिया था पूर्वी ने .  उसका सुडौल  बदन देख कर पूर्वी ने भी कई बार सोचा कि कल से ही वह जौगिंग करेगी पर वो  कल कभी नहीं आता था .और पूर्वी पुनः  अगले दिन जाने का सोच खुद को सांत्वना देती .
पूर्वी की पि एच डी अभी  ख़त्म ही हुई थी कि उसको अर्डमोर में नौकरी मिल गई.ये छोटी सी जगह उसको अच्छी लगने लगी थी . यहाँ आये हुए पूर्वी को  करीब एक साल होने को आया था  .इस बीच पूर्वी  मिस सुबह से  कई  बार मिली भी चुकी  थी .पर पूर्वी उसके बारे में कोई भी धारणा  नहीं बना पाती थी  हरबार वह एक नए ही मूड में मिलती .कभी लगता कि  मासूमियत ने अभी अभी दमन पकड़ा है .कभी लगता कि सोच उसके चेहरे का साथ नहीं दे रही है पूर्वी उसको कभी भी समझ नहीं पाई थी .
उस दिन पूर्वी बहुत परेशान थी उसका बाथरूम अन्दर से बन्द हो गया था .
वह समझ  नहीं पा रही थी क्या करे ?परेशानी की  हालत में वह घर के बाहर टहल रही थी .तभी सामने से मिस सुबह आती दिखी  ."हाय आई ऍम रेचल" .ओह तो मिस सुबह का आम रेचल है पूर्वी ने सोचा ."क्या कोई परेशानी है?", रेचल ने पुनः कहा ."जी मेरा नाम पूर्वी है .मेरा बाथरूम  अन्दर से बन्द हो गया है..समझ में नहीं आ रहा है क्या करूँ ?"
"डोन्ट वरी "कह के रेचल अपने घर में चली गई वापस आई तो उसके हाथ में एक "जे" के आकार  का मोटा तार था उसका एक सिरा चपटा था .हम अन्दर गए और उसने उस चिपटे  सिरे से बाथरूम का दरवाजा खोल दिया .पूर्वी ने उसको धन्यवाद दिया .रेचल ने वो चाभी नुमा तार पूर्वी को दे दिया और अपने घर वापस चली गई .इसके बाद कई बार आते जाते रेचल दिखी पर कभी उसने देख के अनदेखा किया कभी अच्छे तरीके से हेल्लो किया .पूर्वी उसको कभी भी समझ नही पाई.
  लैब में अत्यधिक काम और सेमिनार की  तैयारी में पूर्वी बहुत व्यस्त हो गई इसी बीच मीटिंग के लिए उसको बोस्टन जाना पड़ा .अपने इस व्यस्त जीवन में वो मिस सुबह यानी रेचल के बारे में लगभग भूल ही चुकी थी .बौस्टन से आकर पूर्वी दरवाजा खोलने लगी थी तभी रेचल आती दिखी .उसके साथ उसका पति और गोद में एक नवजात बच्ची थी .ये प्रेग्नेंट भी थी पता ही न चला पूर्वी बुदबुदाई .तभी पास आकर  रेचल ने कहा है "हाय पूर्वी .
"हाय बहुत बहुत बधाई हो .कब हुई ये? क्या नाम है .?
"अभी २ दिन पहले .इसका नाम अमारिस है इसका मतलब होता है चाइल्ड ऑफ मून "
"बहुत अच्छा नाम है"
बाय कह कर रेचल और उसका पति घर चले गए .
पूर्वी पुनः अपने प्रयोगों की दुनिया में खो गई.  .आज पूर्वी का काम थोडा जल्दी ख़त्म होगया .वह अपना सामान समेट ही रही थी कि उसकी सहेली आई और बोली कितना काम करेगी आज चल मेरे साथ .रोंस में बहुत अच्छी सेल लगी है .और वह पूर्वी को जबरदस्ती ले गई .खरीदारी करते कपडे ट्राई करते बहुत देर होगई .घर आते समय पूर्वी सोच रही थी अच्छा ही हुआ की आज वो बाहर निकली उसको बहुत अच्छा लग रहा  था .घर के पास पहुँचने पर उसने देखा कि रेचल के घरके  सामने पुलिस की तीन कार और अम्बुलेंस खड़ी थी और पूरे घर को पीली पट्टी से घेरा हुआ था   कार गैरेज में खड़ी करके सामान की थैलियाँ निकाल वो घर में आगई पर उसका मन रेचल के घर के आसा पास ही घूम रहा था .क्या हुआ होगा उसने कई बार बाहर निकल के देखने  और जानने की कोशिश की पर कुछ भी पता न चला .कुछ देर तक पुलिस की  गाड़ियों की आवाज आती रही फिर  वो भी बंद हो गई .पूर्वी ने बाहर झांक के देखा तो सब कुछ साफ था न गाड़ियाँ थी न अम्बुलेंस.रात आज कुछ ज्यादा गहरी और काली लग रही थी.क्या हुआ होगा ?बस यही सवाल दिमाग में बार बार घूम रहा था .इस सवाल का जवाब खोजते खोजते पूर्वी सो गई .सुबह उसकी आँख देर से खुली . .रात की  घटना पुनः आँखों के सामने  घूमने लगी .क्या हुआ होगा ये सवाल पुनः माथे पर लटक गया .पूर्वी विचारो को झटक कर जल्दी जल्दी तैयार हो बाहर निकली .सामने सीढियों पर अख़बार पड़ा था उसने सोचा वापस आके  पढेगी .यही सोचके अख़बार घर में रखने  के लिए उठाया कुछ ऐसा लिखा था कि वह  अख़बार खोल के पढने लगी .लिखा था .ड्रग के नशे में माँ ने बच्ची को वाशिंग मशीन में डाला .आगे लिखा था कि २७ वर्षीया रेचल ने दो महीने की  बच्ची अमारिस  को कपडे धोनी के मशीन में डालकर मशीन चला दी घटना के समय बच्ची  का पिता घर पर नहीं था .जब वह  घर आया तो रेचल नशे में धुत्त पड़ी थी और बच्ची घर में कहीं दिख नहीं  रही थी.रेचल को हिला के बच्ची के बारे में पूछा तो वह कुछ भी बताने की  स्थिति में नहीं थी वाशिंग  मशीन के चलने की आवाज सुकर पिता को शक हुआ उसने जल्दी से मशीन को बंद किया और उसमे झाँका तो............. .बच्ची को अस्पताल लाया गया पर उसको बचाया न जा सका .पूर्वी वहीँ बैठ गई .रेचल और ड्रग्स उसने तो कभी सोचा न था ....गुलाबी कम्बल में लिपटा वो मासूम चेहरा याद आया और  रेचल की बात 
इसका नाम अमारिस है इसका मतलब होता है चाइल्ड ऑफ मून

मेज़र शहीद
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अभी ट्रेन को आने में करीब एक घन्टा बाकी था उसने सोचा की चलो सुभ्रा को फ़ोन करके बता दूँ .वह  स्टेशन के बाहर लगे एक सार्वजानिक फ़ोन बूथ की ओर  बढ़ गया . शुभान ने आज ही जम्मू यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर ज्वाइन किया था उसकी खुशियों का ठिकाना न था .आज के समय में स्थाई नौकरी कहाँ मिलती है .शुभान ने ज्वाइन करने के साथ ही पैतृक अवकाश के लिए आवेदन देदिया क्योंकी शुभ्र को वो अस्पताल में छोड़ कर  आया था .उसके घर में पहली बार एक नन्ही किलकारी गूंजने वाली थी .नौकरी का मामला न होता वो शुभ्र को इस हाल में छोड़ के कभी नहीं आता
."हेल्लो शुभ्रा ".
"हाँ कहिये ,ज्वाइन कर लिया ".
"हाँ कर लिया तुम कैसी हो".
"ठीक हूँ ".
"अभी स्टेशन के बाहर से बोल रहा हूँ .ट्रेन एक घन्टा लेट है .तो तुम परेशान न होना घर पहुँचने में थोड़ी देर हो जाएगी."
अभी शुभान बात ही कर रहा था कि  उसने देखा बाहर अफरातफरी का मौहाल था लोग  भाग रहे थे .एक आदमी कह रहा था कि  स्टेशन पर आतंकवादी हमला हो गया है .गोलियां चल रही है
""हेल्लो !!!!!क्या हुआ तुम चुप क्यों  हो गए ?"
"कुछ नहीं अभी पता चला है की ट्रेन निरस्त हो गई है तुम घबडाना नहीं .मै ठीक हूँ कल आऊंगा . मै बाद में फोन करता हूँ"" 
.इस हालत में शुभ्रा  को कुछ भी बताना उसने ठीक नहीं समझा .फ़ोन रख कर वह  गेस्ट हॉउस में वापस आगया .कल जाने का आरक्षण ले कर वह सो गया , सुबह कैंटीन का श्यामू  चाय के साथ अख़बार ले आया . शुभान अख़बार देखने लगा तो श्यामू ने कहा, " साहब आपको पता है कि कल स्टेशन पर जब गोलियां चल रही थी तो आर्मी वाले अपनी अपनी पोजीशन ले के गोलिया चला रहे थे लेकिन  आतंकवादी को मार  नहीं पा  रहे थे बहुत लोग मर रहे  थे तभी एक मेजर सामने आकर गोलियां चलने लगा उसको तीन  गोलियां लगीं पर वह  लड़ता रहा और उसने आतंकवादी को मार दिया .फिर अपने अफसर की गोद में गिर पड़ा ..मिशन पूरा हुआ कहा और   दम तोड़ दिया ."
."इतना सब हुआ पर पेपर में तो कुछ भी नहीं लिखा है "शुभान पेपर देखते हुए आश्चर्य से बोला
"साहब हमारे पत्रकारों को ये कोई खास खबर नहीं लगी होगी .नकली नायकों के सामने असली नायक को कौन पूछता है "श्यामू आँखें पोछता हुआ बोला .
अख़बार का प्रथम पृष्ट नेता की चाटुकारिता ,राजनीत के षड्यंत्र और  फिल्मों  की समीक्षा से भरा  था.बहुत खोजने पर अख़बार में अंदर एक कोने में छोटा  सा लिखा था ..मेजर शहीद .


Tuesday 16 August 2011


आज भी अच्छे गाने बनते हैं ,पर कम बनते हैं:-----उस्ताद गुलाम अली



 साऊथ ऐशियन एकेडमी ऑफ परफोर्मिंग आर्ट्स के बैनर तले ,गजलों के उस्ताद गुलाम अली साहब का कौन्सर्ट 'चुपके चुपके'' इन दिनों अमेरिका में चल रहा है l दिल ये पागल दिल मेरा , चुपके  चुपके,हंगामा है क्यों बरपा ,चमकते चाँद को टुटा हुआ तारा चाहे कोई भी ग़ज़ल हो गुलाम अली जी की आवाज़ को छूकर अमर हो गई है l lइसी दौरान मुझे इनसे बात करने का मौका मिला प्रस्तुत है गुलाम अली जी से की गई बातचीत के मुख्य अंश . 

अमेरिका में अभी आपने इतनी जगह शो  किये हैं कैसा रहा ये अनुभव ?
जी मैअमेरिका बहुत बार आ चुका हूँ और हमेशा ही मुझे लोगों से बहुत इज्जत मिली है lमै अपने सुनने वालों के लिए गाता हूँ lवो मुझे प्यार करते हैं और मै उन्हें प्यार करता हूँ lयशपाल सोई जी का प्यार है जो वो मुझे बुलाते हैं और मै चला आता हूँ l

आपके बहुत से प्रशंशक हैं क्या इनमे आज की पीढ़ी के बच्चे भी हैं जो ग़ज़ल को पसंद करते हैं ?
जी हाँ बड़ों के साथ बहुत सी जगहों पर मुझे किशोर अवस्था के बच्चों भी मिले है l जो पूरे कार्यक्रम में बैठे रहे हैं lसुनते सुनते उनको अच्छा लगने लगता है l ये खुदा की देन है lपर फिर भी में कहना चाहुँगा कि ज्यादा बच्चे ग़ज़ल नहीं सुनते हैंl ये तो हम बड़ों को चाहिए की बच्चों को अपनी भाषा और संस्कार सिखाएं l उन्हें अपने संगीत से परचित कराये l हम बड़ो का कसूर है जो बच्चों को अपना संगीत नहीं पता है l क्योंकी बड़े खुद ऐसे संगीत से दूर होते जा रहे हैंl    

बड़े गुलाम अली साहब के बारे में आप क्या कहेंगे ?
उनके बारे में जितना कहा जाये कम है l वो मेरे गुरु हैं l मेरे पास जो कुछ भी है उनका ही दिया हुआ है lगुलाम अली मेरा नाम भी मेरे पिता जी ने उन्ही के नाम पर रखा था l उस्ताद बरकत अली खान साहब उनके भाई थे l उनके पास ज्यादा सीखा था l मुबारक अली खान ,अमानत अली खान उनको ' माने 'अली कहते थे  मैने  इन सभी से सीखा है l

आपकी गायकी के सफ़र की शुरुआत कहाँ से हुई ?
६८ में रेडिओ पाकिस्तान लाहौर में एक बच्चों का कार्यक्रम होता था lउस वख्त में १३ साल का था lवहाँ  से मैने गाना प्रारंभ किया था और बस ऊपर वाले के करम से धीरे धीरे आगे बढ़ता गयाl

आपके वालिद आपको  गायकी की दुनिया में लाये ,कुछ खास जो आपने उनसे सीखा हो ?
जी हाँ उन्ही की वजह से मै बड़े गुलाम अली जी का शागिर्द बना l उन्होंने मुझसे कहा था , जब कोई आपसे छोटा .आपको छोटा समझता है तो उसके सामने छोटा नहीं होना l मेरे वालिद ने कहा  कि बड़ा इन्सान वो होता है जो दूसरों को बड़ा समझता है और छोटा इन्सान वो होता है जो दूसरों को छोटा समझता है l मै जीवनभर इन्ही बातों को मानता आया हूँ l

क्या आप कोई नयी अल्बम निकालने वाले  हैं ?
अभी मैने आशा जी के साथ एक अल्बम निकाली थी ,'ज़नरेशन ' जिसमे मैने और मेरे बेटे ने संगीत दिया था और आशा जी ने गया था l इसको लोगों ने बहुत पसंद किया था l जबतक आवाज है ज़िन्दगी है मै गाता रहूँगा और इन्शाअल्लाह आगे अल्बम भी निकालेंगे l

आपकी एक अल्बम गुलज़ार जी के साथ आई थी
जी हाँ उसका नाम 'विसाल 'थाl विसाल  का मतलब होता है मिलाप मैने कहा की आज हमारा विसाल  हुआ है l तो गुलज़ार साहब ने कहा कि इस अल्बम का नाम विसाल रख देते हैं l

८० के दशक में आपने फिल्मो के लिए बहुत से गाने गायें हैं आज सिनेमा के संगीत में भी काफी बदलाव हुआ है .पुराने संगीत में और आज के संगीत में आप क्या अन्तर महसूस करते हैं ?
आज कल संगीत में ठहराव नहीं है l एक भागदौड सी लगी है l चैन सुकून जो संगीत की रूह है वो कम हो गया है l आज भी अच्छे गाने बनते हैं ,पर कम बनते हैं .आज इसी भाग दौड़ को संगीत समझते हैं और जो इसको ही संगीत समझते हैं वो तो इसी को ठीक समझेंगे l

क्या आज कल के गानों में कोई गाना है जो आपको पसंद है ?
जी गाने तो आज भी बहुत अच्छे बन रहे हैं पर मुझे तो पुराने गाने ही याद आते हैं जैसे "आजा रे  मै तो कब से खड़ी", "रैना बीती जाये "ऐसे गाने बहुत पसन्द है l आज कल पाश्चात्य संगीत का बोलबाला है ये संगीत भी अच्छा हैl पर अपना संगीत तो फिर अपना ही है l

ग़ज़ल गायकी अन्य गायकी  से किस तरह जुदा है ?
गजलों  में  शास्त्रीय संगीत की तरफ ज्यादा झुकाव रहता है l हमने हमेशा ये कोशिश की है के शास्त्रीय भी रहे और उप शास्त्रीय भी रहे l  रियाज़ की जरुरत तो हर अच्छी गायिकी के लिए होती है पर ग़ज़लों के लिए रियाज़ करना और उर्दू की जानकारी बहुत ही जरुरी है l

आज  लोग ग़ज़ल बहुत कम गा रहे हैंl आपकी नजर में इस का क्या कारण है ?
ग़ज़ल गायिकी सीखने में बहुत वख्त लगता है और आज कल लोगों के पास समय की बहुत कमी हैl हरकोई जल्दी शोहरत पाना चाहता है l हमने  सालों तक गया और कुछ नहीं हुआ था lहमेशा सोचता इतने साल हो गए गाते अभी तक कोई ग़ज़ल हिट नहीं हुई lपर फिर खुदा के करम से लोग जानने लगे

मैने कहीं पढ़ा था कि आप दुआओं पर बहुत यकीन करते हैं .क्या कोई खास कारण है ?
जी मै हमेशा ही मानता हूँ कि दुआ लगती है l एक बात बताना चाहुँगा एक बार मै अपने उस्ताद जी का पाँव दबा रहा था lवो सो गए मै दबाता रहा सुबह जब उनकी नींद खुली तो बोले अरे गुलाम तुम सोये नहीं .जाओ तुमको दुनिया बहुत प्यार से सुनेगी ही ,साथ में संगीत को जानने वाले भी बहुत सिद्दत से सुनेंगे lफिर बहुत सालों बाद लता जी ने मुझे बुलाया और ताज होटल में सारा इंतजाम किया वहाँ भारत के   सभी बड़े गायक और मौसिकी के जाने माने लोग आये थे l इसीतरह बहुत सी बातें हुई है l

उम्र के इस पड़ाव में भी आपकी गायकी  में  कोई अन्तर नहीं आया है .क्या आप कुछ खास ख्याल रखते हैं ?
जी हां थोडा ख्याल रखना पड़ता है l मै ठंडी चीजें नहीं नहीं खाता हूँ l आइसक्रीम बहुत कम खाता हूँ ,साल में एक दो बार खा ली बस l कोल्ड ड्रिंक्स बिलकुल नहीं पीता हूँ l  दूसरे लोगों को शायद इन चीजों से कोई फर्क न पड़े पर मुझे ये चीजें नुकसान करती हैं . 

आपके बेटे  नज़र अब्बास अली भी आपकी तरह गाते है उनके बारे में बताइए
जी हाँ खुदा की दया से वो अच्छा गाते हैं lउन्होंने अमेरिका, कनाडा ,इंग्लेंड और भारत में  स्टेज पर गया है l वैसे अभी भी वो सीख रहे हैं l मै तो ऊपर वाले से उनकी सफलता की दुआ करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि जो प्यार आपलोगों ने मुझे दिया है वही प्यार उनको भी मिल सकेगा l   

ये साक्षात्कार आप  यहाँ भी पढ़ सकते हैं
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/9578443.cms


http://www.hindimedia.in/2/index.php/manoranjanjagat/bat-mulakat/124-me-cool-chije-nahi-khata-ustad-gulam-ali.html

 http://www.hindi.thepressvarta.com/index.php?option=com_content&view=article&id=1036:2011-08-09-05-53-03&catid=4:entertainment&Itemid=3    

Tuesday 26 July 2011

जिनके साथ सही में ये होता होगा उन पर क्या बीतती होगी  :--सरताज गिल

'खाप पंचायत'  के द्वारा की जाने वाली ऑनर किलिंग के मुद्दे पर बनी फिल्म 'खाप ' इसी महीने रिलीज होने जा रही है lप्रस्तुत है फिल्म में कुश की मुख्य भूमिका निभाने वाले सरताज गिल से की गई बातचीत के मुख्य अंश l

आपको ये फिल्म कैसे मिली ?
एक दिन मेरे एजेंट का फ़ोन आया की क्या तुम  १५ मिनट में मेरे पास आ सकते हो ? (इस एजेंट को संपर्क मैने करीब डेढ़ पहले लिया था ) मै पहुँचा तो वहां मेरी मुलाकात हुई निलेश इनामदार से जो आनन्दा फिल्म के असोसिएट डिरेक्टर हैं lउन्होंने मुझे ऑडीशन के लिए बुलाया l वहाँ अजय सिन्हा जी जो इस फिल्म के निर्देशक हैl उन्होंने मेरा ऑडीशन लिया करीब ४० मिनट तक ऑडीशन हुआ l उसके बाद  उन्होंने कहा कि आपने बहुत अच्छा किया है l हम आपको  बताएँगे ..दो दिन बाद ही उनका फ़ोन आ गया की सरताज आप मेरी फिल्म कर रहे हैं l
फिल्म का मुख्य विषय क्या है ?
फिल्म का नाम है 'खाप 'l ये फिल्म 'खाप पंचायत 'पर आधारित हैं lकरीब ४० या ५० गांवों का जो संगठन है उसे खाप कहते हैं l इन  गाँवो की पंचायत को मिला कर जो महा पंचायत बनती है lउसे 'खाप पंचायत ''कहते हैं lइस पंचायत का मानना है कि यदि आप एक खाप में शादी करते हैं तो वो शादी नहीं मानी जाएगी क्योंकी वो भाई बहन की शादी है lये ऐसी प्रथा है जिसे हम ओनर किलिंग के नाम से जानते हैं l यही मुद्दा हमने इस फिल्म में उठाया है l

फिल्म में आपका किरदार क्या है ?
इस फिल्म में मेरे किरदार का नाम है कुश l ये साऊथ अफ्रीका से दिल्ली पढाई करने के लिए आया है l यहाँ उसकी मुलाकात रिया से होती है l ये किरदार यूविका चौधरी निभा रही हैं l कुश और रिया प्रेम करने लगते हैं और शादी कर लेते हैं lजब ये गाँव जाते हैं तो इनका सामना होता है खाप पंचायत से ,और ये पंचायत इनकी शादी को मानने से इंकार कर देती हैं l

फिल्म का कोई ऐसा सीन जो आपने किया और आप उसको भुला नहीं पा रहे हैं .
जी हाँ एक सीन जहाँ कुश और रिया यानी मुझे और यूविका को गाँव वालों ने घेर रखा है और कुश को जोर डाल रहे हैं कि वो रिया को राखी बांध दे l क्योंकी वो भाई बहन है ,और गाँव वाले १० -१० रुपये निकल कर मुझे यानी कुश को देते हैं कि जब रिया कुश को राखी बांधे तो कुश उसको( रिया को)शगन के तौर पर दे सके l इतना दुःख पहुँचाने वाला सीन था कि क्या कहूँl .मै सोच रहा था किमै तो मात्र अभिनय कर रहा हूँ जिनके साथ सही में ये होता होगा उन पर क्या बीतती होगी ?

आपके आलावा  इस फिल्म में और कौन से कलाकार हैं ?
ओम पुरी जी जो की यूविका के दादा जी बने हैं और वही सरपंच भी हैं l मोहनीश बहल जी ये यूविका के पिता का किरदार कर रहे हैं l अनुराधा पटेल जो यूविका की माँ बनी हैं l मनोज पाहवा जी ,गोविन्द नामदेव ,अलोक नाथ जी,यूविका  चौधरी

आपको इन सभी के साथ काम कर के कैसा लगा ?
सभी बहुत अनुभवी लोग हैं l मैने तो सभी से बहुत कुछ सीखा है l ओम पुरी जी ज्यादा बोलते नहीं पर बीच बीच में जो एक लाइन बोलते हैं सभी हँसते रह जाते हैं l,मनोज जी के साथ मेरा तालमेल बहुत ही अच्छा  है lवो बहुत अच्छे इन्सान हैं lगोविन्द जी के साथ फिल्म में मेरा एक सीन है ,जब वो मुझे थप्पड़ मारते हैं और मै प्रतिरोध करता हूँ वो बहुत ही अच्छा सीन है l.यूविका बहुत अच्छा काम करती हैं बहुत प्यारी और अच्छी इन्सान है l.मुझे इन सभी के साथ काम करने के मौका मिला ये मेरा सौभाग्य है l

फिल्म के संगीत के बारे में कुछ बताइए ?
फिल्म का संगीत बहुत ही अच्छा है l फिल्म में ८ गाने हैं जिसमे ३ गाने श्रिया  घोषाल और  शान ने गाये हैं .और राहत फ़तेह अली खान साहब ,  जगजीत सिंह जी ,रेखा  भरद्वाज जी ने गाये हैं l  रेख जी ने जो गाना गया है वो मेरा बहुत ही पसंदीदा गाना है उसके बोल हैं "खुदा सो रहा है इश्क रो रहा है "l

फिल्म की शूटिंग किन किन जगहों पर हुई है ?
पंचगनी के पास एक जगह है 'वाई' जहाँ गाँव का पूरा सीन फिल्माया गया है l फल्टन में हवेली है l ,मुम्बई में कोलेज का सीन किया है l  दिल्ली में इण्डिया गेट ,राज पथ ,सूरज कुण्ड एक जगह है जहाँ मेला लगता है .इस सभी जगहों पर हमने शूटिंग  की है l आपने शूटिंग की बात की है तो एक घटना बताना चाहूँगा हमें एक गाने की शूटिंग करनी थी तो हम कुल्लू मनाली गाये l गाने में हमको बर्फ चाहिए थी lपर वहाँ बर्फ नहीं थी हमने वहाँ के लोगों से पूछा की हमको बर्फ कहाँ मिलेगी उन्होंने बताया कि आपको रोहतांग पाश तक जाना होगा lअगले दिन हम रोहतांग पाश के लिए निकले करीब चार घंटे का सफर तय करके जब हम वहाँ पहुँचे तो हमने देखा कि बरफ तो है पर काली हो गई है l अब क्या करें ?फिर हम बर्फ की  खोज में थोडा और ऊपर चलने लगे l हमने  करीब  ७ घंटे  की दूरी तय की तब जा कर हमको बहुत अच्छी बर्फ मिली यहाँ  स्नो फ़ोल भी होने लगा l हमने अपनी अपनी गाड़ियों में इंतजार किया l जब बर्फ का गिरना बंद हुआ तो हमने शूटिंग शुरू की l हमको पता चला था कि यहाँ तूफान आने वाला है और आपके पास मात्र ४५ मिनट है l अतः आप जल्दी से यहाँ से निकल जाइये l हम लोग इस समय इतनी ऊँचाई पर थे कि यहाँ पर हम लोगों को साँस लेने में परेशानी हो रही थी फिर भी हमने गाने का एक भाग शूट किया इसी समय ऐसा हुआ कि मुझे और यूनिट के कुछ और लोगों को उल्टियाँ होने लगी उल्टियों में खून आरहा था l मुझे लगा अब क्या करूं lअजय जी ने मुझे समझाया परेशान मत हो अपने काम पर ध्यान दो सब ठीक हो जायेगा l इस शूटिंग  के इतने अच्छे परिणाम मिले हैं कि कोई कह नहीं सकता कि अभी कुछ देर पहले हम खून की उल्टियाँ कर रहे थे l अपनी पहली फिल्म में मैने ये सीखा की हमारी इंडस्ट्री में कितनी मेहनत होती है और काम कितना जरुरी है l कुछ भी हो जाये शो मस्ट गो ऑनl 
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Monday 4 July 2011


  मै  चाहता हूँ कि मेरी गायिकी में एक ताजगी बनी रहे  :---- शान


शान एक ऐसा गायक जिसकी गायिकी हर दिल पर राज करती हैl जिनके गाने बड़ों से लेकर बच्चों तक को बहुत पसंद है , फिर चाहे वो चाँद शिफारिश हो या बम बम बोले l जितना मधुर वो गाते हैं उतने ही सरल और नेक दिल इन्सान भी है l.मनपसंद इंक के बैनर तले आज कल शान अमेरिका के दौरे पर हैं lइसी दौरान मुझे उनसे बात करने का मौका मिला प्रस्तुत है lशान जी से की गई बात चीत के मुख्य अंश l

अपने पिता श्री मानस मुखर्जी जी के बारे में कुछ बताइए l
मेरे पिता जी कविता में पाले बड़े वहाँ  रेडियो पर और  फिर जात्रा में उनका संगीत और  गाने बहुत मशहूर  हो चुके थे lवो १९६६ को मुंबई  आये l यहाँ पर उन्होंने  बहुत सी फिल्मों  में संगीत दिया जैसे शायद ,लाखों की बात ,अलबर्ट पिंटो को गुस्सा  क्यों आता है ? इसके आलावा कुछ मलयालम और बंगाली फिल्मों में भी संगीत दिया पर ४५ साल की अल्प आयु में ही उनका  देहांत हो गया  l.उनके  सगीत निर्देशन में रफ़ी जी किशोर कुमार ,आशा जी, लता जी सभी ने गाया   है l मेरे पिता जी को सभी बहुत मानते थे lआज जब भी मै कहता हूँ कि मै मानस मुखर्जी का बेटा हूँ तो लोग प्यार देते हैं और बहुत से दरवाजे मेरे लिए खुल जाते हैंl

आप बहुत मिलनसार व्यक्ति है आपके स्कूल कॉलेज के दोस्तों से आज भी आपका संपर्क है क्या आज भी जब आप मिलते हैं तो वही मस्ती करते को कॉलेज में किया करते थे ?

जी हाँ बिलकुल बस समय थोडा कम मिल पाता है क्योंकि कुछ दोस्त दुबई में हैं कुछ  अमेरिका और कनाडा मै हैं पर हम जब भी मिलते हैं तो वही मस्ती धमाल करते हैं l

आपके ग्रुप को प्रीस्ट(संत )कहा जाता था
l
जी हाँ क्या था कि हम कैथलिक स्कूल में पढ़ते थे l वहां हमारे ग्रुप को प्रीस्ट कहते थे पर ये नाम हम लोगों ने खुद ही रखा था हम सभी संत जैसे थे नहीं l

आपने और सागरिका जी ने पहला अल्बम नवजवान  निकला जो बहुत हिट हुआ .उस समय क्या आपको लगा था कि अब नए दरवाजे खुल जायेंगे ?

मुझे इतना नहीं लगा था कि ऐसा कुछ होगा l उस समय डैडी नहीं थे मम्मी अकेली हमको बड़ा कर रहीं थी तो कुछ न कुछ तो करना ही था l फिर मै बहुत महत्वाकांक्षी भी नहीं था बस सोचता था कि आज का दिन निकल जाये l पर अभी तो आज कल परसों तक का सोचना होता है .क्योंकि अभी मेरा परिवार है  बच्चे हैं l

आपको फिल्मों में पहला गाना कैसे मिला था ?
एक फिल्म थी 'प्यार में  कभी कभी ' जिसको राज कौशल जी बना रहे थे वो नई आवाज ढूंढ़ रहे l इसी फिल्म में  मुझे भी गाने का मौका मिला l फिल्म तो ज्यादा नहीं चली पर इसका गाना 'मुसू मुसू   ' बहुत हिट हो गयाl

आप अपनी आवाज को कई बार बदल के गाते हैं अपनी गायिकी में भिन्नता लाते है .ऐसा क्यों ?

  मै ये जानबूझ कर करता हूँ l क्योंकी  यदि आप किसी को पसंद करते हैं, तो उसकी एक ही तरह की स्टाइल को सुन के ऊबने  लगेगे l अतः मै  चाहता हूँ कि मेरी गायिकी में एक ताजगी बनी रहे l फिर  यदि नौजवान अभिनेता है तो उस पर भारी आवाज सूट नहीं  करेगी l उसके लिए मै आवाज को थोडा पतला रखता हूँ l कुछ अभिनेता हैं जिनकी आवाज भारी है तो उनके लिए मै आवाज को  चौड़ा रखता हूँ l

आपने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत से लोगों के साथ काम किया है .उनके साथ काम करने का अनुभव  कैसा रहा ?

बहुत ही अच्छा रहा l अपने देश में मिल कर काम  करना ( कोलेबरेट )बहुत कठिन होता है क्योंकी  कलाकारों की अपनी -अपनी संगीत कम्पनी होती है और फिर उनकी अपनी निजी पसंद भी होती है l पर इनके साथ काम करके देखा कि ये बहुत खुले विचारों के होते हैंl आराम से काम करते हैं अतः इनके साथ काम करना बहुत आसन होता है l
आप गाने लिखते हैं और गानों की धुनें भी बनाते हैं l तो दूसरों के संगीत निर्देशन में और उनके  लिखे हुए गाने को गाने में और खुद के संगीत बढ और लिखे गाने को गाने में क्या अन्तर  होता है ?
 गाने सभी अच्छे होते हैं l अच्छी शायरी हो और संगीत अच्छा हो तो गाने में बहुत आनंद आता है l मै खुद को बहुत बड़ा शायर नहीं मानता बस मन के भावों को लिख देता  हूँ l मै अपनी अल्बम में गाने खुद लिखता हूँ ,संगीत भी देता हूं वो मेरा अपना होता है l जहाँ मै अपने भावों को विस्तार दे पाता  हूँ l अपने अल्बम में अपनी चीजें हो तो और ही मजा आता है lफिल्मो में मै दूसरों के लिए  गाने गाता हूँ और ऐसा करने में  भी मुझे असीम आनंद आता है l

क्या आप अभी किसी पॉप अल्बम पर काम कर रहे हैं ?

मेरा एक पॉप अल्बम तयार हुआ है lअमेरिका से वापस जा कर मै उसको रिलीज़ करने वाला हूँ lअल्बम का नाम है "हर  लम्हा "l

क्या आने वाले समय में हम आपको और सागरिका जी को साथ  में सुन पायेगे ?

जी हाँ जरुर सुन पाएंगे l अभी वो लन्दन में हैं तो उनके साथ कुछ कोलेबरेट करना थोडा मुश्किल हो जाता है lपर ऐसा नहीं है कि हम साथ में कुछ करना नहीं चाहते हैं  l हम जल्दी ही कुछ करेंगे l
ओम शांति ओम  का गाना 'दास्ताने ओम शांति '' गाना सुन कर कर्ज में  किशोर कुमार जी का गया गाना ''एक हसीना थी एक दीवाना था' याद आता है l
इस गाने में मैने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है l किशोर कुमार जी का मै बहुत बड़ा भक्त हूँ lमेरा गाना उनके गाने जैसा लगा ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात है l पर उन जैसे महान गायक से मै अपनी तुलना नहीं कर सकता l दोनों गानों की परिस्थिति एक सी थी इसीलिए ज्यादा मिलता जुलता लगा होगा l

आपने गानों की रिकार्डिंग की है साथ ही बहुत से टी वी शो को होस्ट भी किया है .आपको  क्या अधिक आसन लगता है
?
रिकार्डिं तो मै बचपन से करता आरहा हूँ ,अतः वो करने में मुझे बहुत कठिनाई नहीं होती पर ,शो को होस्ट करना आसान नहीं होता l इसमें आपको एक ही बात को कई बार कहना होता है l पर अलग अलग तरीके से और मै हमेशा ये भी चाहता था कि जो भी लोग शो पर हैं उन सभी को सम्मान मिले l उनका अच्छे तरीके से परिचय दिया जाये l इसके साथ उस समय मेरी हिन्दी बहुत कच्ची थी जेन्डर(लिंग्स )की समस्या होती थी ,कहाँ "का' लगाना है कहाँ 'की 'लगाना है .मै जान नहीं पाता   था l अतः बार बार रिटेक करने पड़ते थे l मैने कभी मौनीटर और टेलीकौम्प्टर का प्रयोग नहीं किया सब कुछ याद करके बोलता था l

आपके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान रहती है उसका राज क्या है ?

मै ऐसे ही मुस्कुराता रहता  हूँ l मै सोचता हूँ कि यदि किसी गाने को ख़ुशी से गाया जाये तो जो सुने वालों को भी अच्छा लगता है l फिर ज्यादातर हम प्रेम गीत ही गाते हैं ,तो मुझे लगता है कि हीरो मुस्कुराते हुए ही गा रहा होगा तो मै भी वैसा ही करता हूँ l

गुलाम मुस्तफा जी आपके गुरु हैं उनके बारे में  कुछ बताइए
l
मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया के सबसे अच्छे गुरूजी वही हैl मेरे गुरूजी रामपुर घराना के हैं lमन्ना दा,आशा जी ,हरिहरन साहब सभी ने उनसे सीखा है l आज भी जब वो गाते हैं तो उनके आस पास भी पहुँचना मुश्किल होता है l

आने वाली किन किन  फिल्मों में  हम आपके गाने सुन पाएंगे l

अक्षय कुमार की देसी बौयस,सलमान खान की  बौडी गार्ड ,विधु विनोद चोपड़ा कि फरारी की  सवारी l

लकड़ी की  काठी के बाद बच्चो का कोई गाना यदि हिट हुआ है ,तो वो शायद 'बम बम बोले' ही है .इसको गाते समय आपको कैसा लगा था ?

मुझे लगा कि बच्चो का गाना है ,तो थोडा सरल ही रखना चाहिए l इसके बोल मुझे बहुत अच्छे लगे थे "हम जैसे देखें ये जहाँ है वैसा ही "इस दुनिया को यदि हम अच्छे से देखेंगे तो वैसी ही दिखेगी क्यों हम इसको बुरा बनाते हैं lमै बच्चों से बहुत प्यार करता हूँ और बच्चों का गाना मुझे मिल भी जाता है l "बमबम बोले "एक फिल्म भी आई थी उसमे मेरा एक गाना है ,रौकी मौन,स्टेनली का डिब्बा .इन सभी में  मेरे गाने हैं l

आपके शब्दों में आपकी गायिकी की विशेषता क्या है ?

ऐसा तो कभी मैने सोचा नहीं पर मुझे लगता है कि मै कोशिश करता हूँ कि गाना जो कहना चाहता है उस पर ज्यादा ध्यान दूँ न की अपनी गायिकी पर l गाना यदि मुश्किल हो तो भी मै उसकी कठिन बात हो उतना उजागर नहीं करता l उसको आसान बना के गाता हूँ l मुझे लगता है कि ऐसे गाने लोगों को ज्यादा पसंद आते हैं l

क्या आपके बेटों को भी संगीत का शौक है ?

 मेरा बड़ा बेटा जिसका नाम सोहम है ,बहुत अच्छा पियानो बजता है lअभी डैलस में और न्यू योर्क में उन्होंने स्टेज पर बजाया भी था ,जो लोगों को बहुत पसंद आया था l छोटे का नाम शुभ है वो तबला बजाना सीख रहा है lसंगीत से उतना  जुडाव नहीं है जितना होना चाहिए l सोहम तो सॉकर प्लेयर बनना चाहते हैं l अब आगे देखिये क्या होता है l

क्या आप बेटों को गाने गा के सुलाते हैं
?
नहीं वो कहते हैं गाने तो हम सुनते ही है मुझे उनको कहानी सुनानी होती हैl

अमेरिका में आपका अभी तक दौरा कैसा रहा
?
बहुत ही अच्छा रहा अभी तक मै ८ शो कर चुका हूँ और सभी जगह लोगों ने बहुत पसंद किया l जितने भी शो हुए हैं सोल्ड आउट शो रहे हैं l लोगो का बहुत प्यार मिला है l 

  

इसको आप यहाँ भी पढ़ सकते हैं  
    http://hindi.thepressvarta.com/index.php?option=com_content&view=article&id=350:2011-07-01-03-14-51&catid=4:entertainment&Itemid=3    


    http://www.hindimedia.in/index.php?option=com_content&task=view&id=15804&Itemid=46    

Monday 25 April 2011

हरिगन्धा मासिक का महिला विशेषांक

हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगन्धा मासिक के महिला विशेषांक  में रचना श्रीवास्तव की कविताएँ- 
रचना श्रीवास्तव की कविताएँ 

Monday 18 April 2011

सरोद तो गाते हैं- अमजद अली खान

  
धर्मगुरु दलाई लामा जी ने कभी कहा था कि जब "उस्ताद अमजद अली खान साहब" अपने सरोद के अमृत को हमारी आत्मा में घोल रहे होते हैं, दरअसल अपनी मानवता, सच्चाई, और दयालुता को भी वे उसी संगीत में उड़ेल रहे होते हैं और उनकी इस सच्चाई, और सादगी को मैंने भी महसूस किया जिन दिनों खान साहब अमेरिका के दौरे पर थे. उनसे सरोद, राग और पिता जी के बारे में एक अन्तरंग बातचीत-

आप सरोद के "पर्याय" है. लोग तो आप को सरोद का  राजा (प्रिंस ऑफ़ सरोद ) भी कहते हैं.
मै संगीत का छोटा सा सेवक हूँ. मै  मनोरंजन करने वाला नही हूँ. शास्त्रीय संगीत का छोटा सा प्रतिनिधि हूँ, सिपाही हूँ. मै तो सरोद का गुलाम हूँ. बस यही कोशिश है इज्जत के साथ समर्पण के साथ काम करता रहूँ और सरोद को लोग समझने लगें, पसंद करने लगें; क्योंकि मैं मानता हूँ, सरोद कहीं न कहीं पीछे रह गया है. जैसे गिटार है, सितार है- एक दौर आया कि सितार अमेरिका में बहुत प्रसिद्ध हो गया. इस में सभी महान सितार वादकों का हाथ है. सोचता हूँ कि बीटल यदि सितार नहीं पकड़ते तो शायद इतना पापुलर नहीं होता पर अभी तो लोग सरोद को भी जानने लगे हैं.

कहते हैं कि सरोद आप के पूर्वजों का आविष्कार है. आप कुछ कहेंगे?
जी सही है. ये अफगानी  साज़ होता था जिसको रबाद कहते थे. हमारे पूर्वजों ने उस में परिवर्तन कर के नया साज़ बनाया. उस को नाम दिया सरोद. सरोद एक पर्शियन अल्फाज़ है जिसका मतलब मौसिकी है. पुराने लोग कहते थे कि सरोद बहुत मुश्किल साज़ है, ये बेपर्दा साज़ है यदि बजने वाला ठीक से न बजाये तो ये बजाने वाले को बेपर्दा कर देता है क्योंकि ये एक सिल्प्री प्लेट है जिस पर कोई निशान नहीं है तो बहुत ध्यान  से बजाना होता है.

सरोद बजाने के तरीके के बारे में  कुछ बताइए-
सरोद बजाने के मुख्यतः दो तरीके हैं, एक जिसमे तारों को उंगलियों के टिप से रोका जाता है और दूसरा वो जिसमे तारो को बाएँ हाथ की उँगलियों के नाख़ून से रोका जाता है.

आप इनमे से कौन  सा तरीका इस्तेमाल करते है और क्यों ?
मै बाएं हाथ की उंगलियों  के नाख़ून से रोके वाले तरीके का प्रयोग करता हूँ क्यूँकि मुझे लगता है कि इस से तारो को शार्प आवाज के साथ रोका जा सकता है.

आपने सरोद वादन में बहुत से प्रयोग  किये हैं-
सरोद तो हमेशा से बज रहा है. बहुत बड़े बड़े लोगों ने बजाया है, मेरे पिता और गुरु ने भी बजाया है ;लेकिन मै बचपन से सरोद के जरिये गाना चाहता था. सरोद ऐसा साज़ है जो इन्सान की हर फ़ीलिंग  को कह सकता है. कठोर शास्त्रीय संगीत की परंपरा को तो सभी निभाते और बजाते हैं ;पर हम लोक -संगीत, तराना और रवीन्द्र संगीत सब बजाना चाहते थे और मैने बजाया भी. मै पहला सरोदिया हूँ जिसने १०० गानों को बजाया है. हम जब बजाते हैं तो मुख्यतः हम अन्दर से हम गा रहे होते हैं और बाहर से बजा रहे होते हैं. हमने एक रिकॉर्ड भी बनाया "ट्रिब्यूट टू टैगोर". बंगाल की एक बहुत अच्छी गायिका है चित्रा मित्रा वो  जो गा रहीं है और मै वही बजा रहा हूँ. दूसरे अल्बम में  देवी जी ठुमरी गा रही है और मै बजा रहा हूँ. गाने का मुझे हमेशा से शौक रहा है और मेरी ये भी कोशिश रही है कि खुदा करे कि मेरा सरोद सुन कर लोग भी गाने लगें.

आप किसी भी व्यक्ति या अवसर राग बनाते हैं -जैसे आप ने गाँधी जी पर, और शुभलक्ष्मी जी पर राग बनाये. इन रागों को बनाते समय आप मुख्यत:  किन बातों को ध्यान में  रखते हैं?
ऐसा कुछ नहीं है अपने आप ही कोई धुन दिमाग में आ जाती है. अभी मैने राग "गणेश-कल्याण" बनाया है. ऐसा राग पहले कभी था ही नहीं. एक धुन मै हमेशा गुनगुनाता रहता था ।अचानक मुझे एक दिन लगा कि ये मैं क्या गा रहा हूँ तो बस वो ही धुन "गणेश-कल्याण" राग बन गई. ये ऊपर से भगवान की कृपा होती है बनी बनाई चीज आती है और हम कहते हैं कि हमने बनाई है. हम को तो ये ईश्वर से आशीर्वाद मिलता है और दुनिया को दिखाने के लिए कहना पड़ता है कि मैने कम्पोज़ किया है लेकिन हम केवल संदेशवाहक है, खुदा के सन्देश को लोगों तक पहुँचा देते हैं.

आप ने संगीत अपने अब्बा जी से सीखा है. कौन सी  ऐसी तालीम थी जो आज भी आप के साथ है?
संगीत तो हर पिता अपने बेटे को सिखाता है पर पिता जी से हमको इंसानियत और रहमदिली का सबक मिला है. मेरे अब्बा खुद भी बहुत रहमदिल इंसान थे, बड़ों को इज्जत देना और छोटो को प्रोत्साहित करना भी हम ने उन्ही से सीखा है ,अतः आज तक हमने बहुत से नए तबला वादकों को मौका दिया है और आगे लाये है. पिता जी ने कहा कि इन्सान में उसकी खूबियाँ देखो ,न कि कमियाँ. हमारा होमवर्क होता था कि  पिताजी के सभी सहयोगी कलाकारों में खूबियाँ ढूँढें और पिता जी से डिस्कस करे कि विलायत अली खान और इनके पिता जी, अब्दुल करीम खान साहब और केसर बाई की गायिकी में  क्या-क्या खूबियाँ है. इस तरह से हम को दिशा मिलती गई और सभी से सीखते गए.
फ़िल्मी संगीत भी बहुत अच्छा है हम इसकी इज्जत करते हैं. पिता जी का सबसे बड़ा आशीर्वाद यही है कि हमें दूसरों में खूबियाँ नज़र आती हैं। वो सदा कहते थे कि यदि आप किसी का आदर नहीं कर सकते तो अनादर भी नहीं करना चाहिए, प्यार नहीं कर सकते तो नफरत भी नहीं करनी चाहिए. मै तो सभी से कहना चाहूँगा कि माता पिता की सेवा करें, आज कल बच्चे बड़े होकर कहते हैं कि आप ने मेरे लिए क्या किया? सबसे बड़े गुरु तो माता पिता है, बच्चे दूसरे गुरु के पास चले जाते हैं और माता पिता को भूल जाते है.

क्या पिता जी कड़े अनुशासन  में  सिखाते थे?
जी हाँ,  वो बहुत ही अनुशासित व्यक्ति थे. क्वालिटी और परफेक्शन को बहुत  महत्त्व देते थे "राग की शुद्धता ", ये पिता जी का उसूल था। कहते थे कि राग को हम उतनी  देर ही बजायेगे जितनी देर राग की खूबसूरती बनी रहे. हमको राग  जबरदस्ती खीचना नहीं है. पिता जी को लगता था कि यदि आप राग का अपमान करेंगे तो वो आप को शाप दे देगा.

फ़िल्मी संगीत में  शास्त्रीय संगीत का समावेश कितना है और कितना शुद्ध है?
बहुत से गाने रागों पर आधारित हैं. कुछ में शुद्ध राग का प्रयोग हुआ है और कुछ  में मिश्रित राग का. हम ने करीब ४० गज़लें कम्पोज़ की है ,जिनको बड़े -बड़े लोगों ने गाया भी है. यहाँ मै ये भी कहना चाहूँगा कि सब गानों में  हम शास्त्रीय सगीत नहीं ढूँढते हैं। हम ये देखते है कि गाना दिल को छुए, कानो को अच्छा लगे, दुनिया का कोई भी संगीत सात सुरों पर ही आधारित है.

फिल्म के गानों में से  आप के पसंद के कौन- कौन से गाने हैं ?
सभी हिन्दुस्तानी फिल्म संगीत को सुनके ही बड़े होते हैं ।मुझे भी बहुत से गाने पसंद हैं जैसे सीमा फिल्म का "कहाँ जा रहा है","चौदवीं का चाँद हो ", "चिंगारी कोई भड़के ",
                                                                        
आज आप के दोनों बेटे भी सरोद बजाते हैं, आप एक खुशकिस्मत पिता है
?
जी हाँ ,ये सच है कि मै अपने बेटो से बहुत खुश हूँ. मैने जो कुछ भी अपने बुजुर्गों से सीखा है, पिता जी से सीखा है, सभी कुछ मैने इनको  सिखाया है. मेरे बेटो ने हमारी परंपरा को आगे बढाया है. ऊपर वाले की दया है कि अमान और अयान दोनों ही बहुत मेहनती है और आज्ञाकारी है. हमने चाहा था कि वो एक अच्छे इन्सान बने और आज मुझे ख़ुशी है कि वो नेक इंसान बन पायें है. हम ने उनको सरोदिया बनने के लिए दबाव नहीं डाला; उन्होंने खुद से ये राह चुनी है.

Sunday 17 April 2011

मेरा वो मतलब नहीं था- अनुपम खेर

             

"जितना अधिक हम दूसरों के लिए दयालु (सहानुभूतिशील) होते है उतनी ही अधिक ख़ुशी हम स्वयं को प्रदान करते हैं ". ऐसे महान विचार रखने वाले प्रथम संस्था के गुडविल एम्बेसडर पद्मश्री अनुपम खेर अच्छे कलाकार,सहृदय और विनम्र इन्सान है. ऊँचाइयों को छूने के बाद भी इनके पावं धरातल से जुदा नहीं हुए हैं. अपनी हर फिल्म में  उन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है और लोगो का मनोरंजन किया, फिर चाहे सारांश का बूढा पिता हो, डैडी का शराबी, सम्वेदनशील पिता या फिर खोसला का घोसला का चरित्र हो.
भारत में अंडर प्रिविलेज  बच्चो की सहायता के लिए धन एकत्र करने के वास्ते अनुपन जी प्रथम की तरफ से अमेरिका की यात्रा पर है इसी दौरान इनसे बात करने का मौका मिला- 

 
आप बहुत संघर्ष और मेहनत कर के यहाँ तक पहुचे है. संधर्ष के समय की क्या कोई ऐसी बात है जो आज तक आप के साथ है? 
मुझे अपना पूरा जीवन याद है, मै जीवन के हर पल को जीता हूँ. इसलिए किसी खास घटना को हमेशा याद नहीं करता मै सब कुछ अपने साथ अपनी यादों में रखता हूँ.

आपने एक बार कहा था कि पिता जी ने मेरे अंदर से असफलता का डर निकल दिया-
जी हां हुआ यूँ, कि उस समय हम शिमला में रहते थे. हमारे स्कूल में ये होता था कि १० वीं का इम्तिहान देकर हम को क्लास ११ मै प्रमोट कर दिया जाता था, फिर जब २ महीने बाद क्लास १० का नतीजा आता था तो यदि आप फेल हो गए हों तो आप को वापस १० वी में भेज दिया जाता था. तो एक दिन पिता जी आये उन्होंने कहा कि आज स्कूल की छुट्टी करो फिर वो मुझे ले कर अल्फ़ा रेस्टोरेंट गए. इस रेस्टोरेंट में हम ५ महीने में एक बार जाया करते थे और अभी कुछ दिन पहले ही हम सभी यहाँ आये थे. मै सोचने लगा पिताजी आज यहाँ क्यों लाये है, बस चाय ही पिलायेंगे पर पिता जी ने कहा कुछ खाना है मैने कहा हाँ फिर मैने पिता जी से पूछा की क्या बात है आप मुझको यहाँ क्यों लायें है, मेरी खातिर क्यों कर रहे हैं. फिर पिता जी ने बताया कि तुम फेल हो गए हो तो मैने कहा कि तब आप इतनी ख़ुशी क्यों मना रहें हैं तो बोले की मै तुम्हारी असफलता को सलिब्रेट कर रहा हूँ ताकि जीवन में  कभी भी तुम को असफलता से डर न लगे.

आप को जब अपनी  पहली फिल्म का  पारिश्रमिक मिला था तो वो अनुभव कैसा था ?
सारांश के लिए तो कुल १०,००० हजार रुपये मिले थे पर मेरी दूसरी फिल्म जिसका नाम  जवानी था के लिए मुझे १०,००० साइनिंग अमाउंट मिला था. रोमेश बहल जी ने दिए थे और वो ख़त्म  ही नहीं हो रहे थे. मुझे नहीं लगता जितना मैने उन १०,००० रुपयों से जितना आनंद उठाया किसी और पैसे से किया होगा.

"मैने गाँधी को नहीं मारा " ये फ़िल्मी दुनिया मे एक मील  का पत्थर है, इस फिल्म को बनाने का विचार कैसे आया ?

 ये कहानी मुझे
जाहनू बरुआ  सुनाने आये थे, मुझे कहानी में बहुत दम लगा. मुझे लगा कि ये फिल्म बनानी चाहिए. इस फिल्म को पहले एन ऍफ़ डी सी बना रही थी पर उसने अन्तिम समय पर मना कर दिया. फिर मैने यश राज जी को अपना प्रोजेक्ट दिया तो वो सहमत हो गए. मैने पहले कभी अल्ज़िमर्स, टेमंशिया पर कोई फिल्म नहीं की थी. मुझे ख़ुशी है की ये अवसर मुझे मिला. इसके अलावा गाँधी जी के विचार उनकी  दार्शनिकता को एक अलग ढंग से दिखाया गया है. मै ऐसा चाहता था कि उनके विचारो को अच्छे तरीके से दिखाया जाये.

आप ट्वीटर पर बहुत दार्शनिक बातें करते हैं ?
मै जो कुछ भी लिखता हूँ वो जीवन का निचोड़ है, सच है और हकीकत के बहुत करीब है.

आपने  लिखा है " दिमाग एक पेराशूट की तरह है ये तभी काम करता है जब खुलता है"

हाँ ठीक है, यदि दिमाग बंद होगा तो वो कुछ सोच नहीं पायेगा न काम कर पायेगा. अपने विकल्प खुले रखने चाहिए तभी आप तरक्की कर सकते हैं .

आपने ५ सितम्बर को कहा था कि आप एक्टर  से ज्यादा अच्छे टीचर है ऐसा क्यों ?

पढाना अपने आप में एक बहुत ही अच्छा अनुभव है, जब आप पढ़ाते है तो बहुत ध्यान देते हैं. अपने जीवन में जो कुछ अनुभव होता है उस को  सिखाते हैं. जब आप पढ़ाते है तो बहुत कुछ सीखते भी हैं,पढ़ाने से आप को क्या मालूम है, क्या नहीं उसका अहसास भी हो जाता है. अभिनय एक आयामी है पर इस के रूप अलग-अलग है,  जबकि टीचिग बहु-आयामी होती है.
 
आपने  हॉलीवुड की फिल्मो में काम किया और  बॉलीवुड की फिल्मो में भी काम किया है. क्या ऐसी चीज है जो आप चाहते हैं की हॉलीवुड से बॉलीवुड में आ जाये और हिदी फिल्मों से हॉलीवुड में आ जाये?
हिन्दी फिल्मों में जो गर्मजोशी है, आपस में लगाव है और हॉलीवुड में जो व्यावसायिकता और अनुशासन है, यदि इन चीजों का आदान प्रदान हो जाये तो बहुत अच्छा होगा.

आप का एक नाटक "कुछ भी हो सकता है" बहुत सफल रहा है-

जी हाँ, इस प्ले से सभी अपने आप को जोड़ सकते हैं. उनको ये भी लगता है कि जीवन में कुछ भी किया जा सकता है. इस नाटक का दर्शन यही है कि "कुछ भी हो सकता है".  इस प्ले को देख कर लोगों को प्रोत्साहन मिलता है और सम्भावना भी नजर आती है कि कुछ भी हो सकता है.

इस प्ले पर आधारित पेंटिग की एक प्रदर्शनी भी हुई है, ये एक नया विचार था?

क्या हुआ कि गीता दास ने मेरा प्ले करीब १०-१२ बार देखा फिर उन्होंने मुझसे कहा कि यदि आप की अनुमति हो तो मै इस नाटक  पर पेंटिग  बनाना चाहती हूँ, मैने उनसे  कहा की आप पहले मुझे एक दो  सेम्पल दिखा दीजिये. जब  मैने उनकी  पेंटिग को देखा तो मुझे लगा की इन्होने प्ले की आत्मा को समझा है. उन्होंने करीब १६-१७ पेंटिंग बनायीं, फिर हमने प्रदर्शनी लगाई जो बहुत अच्छी रही. बहुत से लोग आये थे और सभी ने बहुत पसंद किया. 

                                        

आप क्या अभी कोई नया प्ले ले कर आने वाले हैं ?

जी है मै अभी किरन जी के साथ एक नया  प्ले कर रहा हूँ. स्टार प्रमोशन के बैनर तले इस प्ले का प्रारंभ हियुस्टन, अमेरिका से होगा. स्टार प्रमोशन के अध्यक्ष राजेंद्र जी मेरे अच्छे मित्र हैं. मेरे पहले दो प्ले "सालगिरह" और "कुछ भी हो सकता है" भी इन्होने ही किये थे. इस प्ले का नाम है "मेरा वो मतलब नहीं था". इस प्ले में  मै, किरन और राकेश बेदी अभिनय करेंगे. इस प्ले को राकेश बेदी जी ने लिखा है और वही इस को निर्देशित भी कर रहे है. मै इस नाटक को लेके बहुत उत्साहित हूँ .

इस नाटक के बारे में  कुछ और बताइए-

ये नाटक ऐसे दो लोगों की कहानी है जो बहुत सालो बाद मिलते हैं. अपनी प्रेम कहानी, अपने जीवन के उतार चढाव और यात्रा को हास्य और इमोशन के द्वारा एक दूसरे से बांटते हैं. ये  बहुत ही मनोरंजक प्ले है

आप ये प्ले कहाँ कहाँ करने वाले हैं ?
मै ये प्ले अमेरिका और कनाडा में करने वाला हूँ.

आपकी  आने वाली फिल्म कौन कौन सी हैं ?
"जीन" फरहान अख्तर के  कम्पनी की  फिल्म है जिसको अभित्य देओल  निर्देशित कर रहे हैं ,"यमला पगला दीवाना "जिसमे धरम जी, जेकी, सनी और बौबी देओल है, "हवाई दादा" इस फिल्म को मैने प्रोडूस किया है.
 

"हवाई दादा" की स्टोरी क्या है ?
"हवाई दादा" एक छोटे शहर के आदमी की कहानी है जो कभी हवाई जहाज पर नहीं बैठा है पर कहता है कि मैने जहाज से यात्रा की है. फिर कैसे उसकी ९ साल की पोती उनको जहाज का अनुभव देती है, क्या है  कि हिंदुस्तान में  बहुत सारे लोग हैं जो ऐसा करते है. जो नहीं किया वो भी कहते हैं.

इस फिल्म में आप के साथ और कौन कौन से कलाकार हैं
?
मै हूँ, और तनूजा जी है जिन्होंने मेरी पत्नी का रोल किया है और गार्गी ने मेरी पोती का रोल किया है.

आपने हर तरह की भूमिकाये की हैं, क्या कोई ऐसी भूमिका है जो अभी भी आप करना चाहते हैं ?

मै एक कलाकार हूँ, मै हर तरह की भूमिकाएं करना चाहता हूँ. ये सवाल आप यदि ४० साल बाद भी पूछेंगी तो मै कहूँगा कि अभी भी बहुत तरह की  भूमिकाएं है, जो मै करना चाहता हूँ.

लोक साहित्य का मर्म

विद्यावती पाण्डेय एवं रचना श्रीवास्तव 


अवधी अवध में बोली जाने वाली बोली है .इसका साहित्य अत्यंत समृद्ध है अतः इसको भाषा का दर्जा देना गलत न होगा .पूर्वी अवधी और पश्चिम अवधी के रुप मे ये  लाखों लोगों के द्वारा बोली जाती है .अवधी साहित्य भी बहुत समृद्ध है .तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस ,जायसी कृत  पद्मावत अवधी भाषा में है इसके अलावा संत कवियों में बाबा मलूकदास ,इनके शिष्य बाबा मथुरादास की बानी अवधी में हैं .अवधी के  लोकगीत भी बहुत प्रचलित हैं लोकगीत क्या है ?महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि लोकगीत समूची संस्कृति के पहरेदार हैं  और लोकगीत का शाब्दिक अर्थ है जनमानस का गीत, जन-मन का गीत, जनमानस की आत्मा में रचा बसा गीत। ये गीत जनकंठ में ये सुरक्षित रहते हैं और पीढी-दर-पीढी विरासत में मिलते हैं।.अपने मन के भावों को जब आम जनता गीतों का रूप देती है हो लोग गीत का जन्म होता है .लोकगीतों में भारतीय संस्कृति की  गंध रची बसी होती है   लोकगीतों में स्थानीय शब्दों का समावेश  प्रचुरता में  होता है .यदि अवधी के लोकगीतों को देखें तो इसमें भक्ति, शृंगार ,वात्सल्य रसों का सुंदर चित्रण है अन्य लोकगीतों कि तरह अवधी के लोकगीतों में भी भारतीय संस्कृति का दर्पण है .जीवन के हर पहलू पर अवधी लोकगीत लिखे गयें हैं
बच्चे के जन्म पर गए जाने वाले   सोहर से ले के प्रत्येक मौसम त्योहार और जीवन के विभिन कर्मकांडों पर अवधी में लोकगीत मिल जाएँगे .

मचियाह बैठी है सासू,तो बहुरिया अरजी करे
सासू निबिया पूजें हम जाबे ओ बेरिया हमरे गमके
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मिली जुली गावे के बधइया, बधइया गाव सोहर हो
आज किशन  के होइहे जनमवा, जगत गाई सोहर हो॥
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जुग जुग जिये  ललनवा के महलवा के भाग जगे
आँगन होई गए ललनवा के महलवा के भाग जगे

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लड़के के जन्म पर बहुत खुशियाँ मनाई जाती हैं ये देख कर लड़की अपने पिता से पूछती है -
हमरे जनम कहे थरिया न बजायो
कहे न मनायो खुशियाँ हो
बेटी जनम जे मुख कुम्हलाये
बिगड़े भाग्य रमैया हो 
मुंडन एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है बच्चे के जन्म के कुछ सालों बाद या साल भीतर ही मुंडन होता है  ।इस अवसर का गीत है ,जिसमे भाई अपनी बहन को निमंत्रण  देता है और कहता है कि बहन तुम्हारे भतीजे का मुंडन है, तुम्हें न्यौता है तुम आना जरूर -
भैया जे बहिनी से अरजि करें
बहिनी आज तोहरे भतीजवा के मुंड़न ,न्यूत हमरे आयो जरूर 
बहिनी जे भइया से अरजी करे
भइया बडरे कलाप के लपडिया तो ,चोरिया मुडायो

जनेऊ (उपनयन संस्कार )हमारी संस्कृति  का एक विशेष अवसर है माना जाता है कि इसके बाद बालक पढने के लिए गुरुकुल जाते थे -

दशरथ के चारो ललनवा मण्डप पर सोहे - 2
कहा सोहे  मुन्ज के डोरी ,कहा सोहे  मृग  छाला
कहा सोहे  पियरी जनेऊवा,मण्डप पर सोहे
दशरथ के चारो ललनवा, मण्डप पर सोहे
हाथ सोहे  मुंज के डोरी ,कमर म्रिगछाला
देह सोहे  पियरी जनेऊवा,मण्डप पर सोहे


राम के वन जाने पर माता कौशल्या सोच रही है कि राम-लक्ष्मण जंगल में रहेंगे कहाँ-
कौन गाछतर आसन वासन कौन गाछतर डेरा
फिर उत्तर स्वयं ही सोचकर थोडा आश्वस्त होती हैं:
 कदम गाछतर आसन-वासन ,नीम गाछतर डेरा।   
भारतीय संस्कृति के चार आश्रमों में  से एक है गृहस्थ आश्रम .ग्रस्त आश्रम में  प्रवेश करने के किये विवाह का होना अनिवार्य था ,विवाह में बहुत सी रीतियाँ होती थी ;आज भी होती हैं ,पर समय की कमी के कारण कुछ कम होती हैं .
जैसे- देखिए विवाह योग्य बेटी अपने पिता से कहती है -मै बहुत सुंदर हूँ ।मेरे लायक ही बर खोजना और मेरा विवाह करना-
सेनुरा बरन हम सुन्दर हो बाबा, इंगुरा बरन चटकार हो
मोतिया बरन बर खोजिहा हो बाबा, तब होइ हमरा बियाह हो
 
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घुमची बरन हम सुंदर बाबा भुनरी बदन कटियार
 
हमही बरन बर ढूढो बाबा तब मोरह रचियों विवाह
 
पिता सोचता है मैने सब कुछ इकठा किया है आज वो (बाराती )सब ले जा रहे हैं
 
मोरे पिछड़वाँ लौंगा के पेडवा,लौंगा चुये आधी रात
 
लौंगा मै चुन बिन ढेरियाँ लगयों ,लादी चले हैं  बंजार 
 
बेटी अपने पिता से कहती है की गर्मी में  मेरा विवाह मत करना सभी प्यासे मरेंगे और मेरा गोरा बदन कुम्हला जायेगा
 
बेटिया की बेटिया मै अरजों बाबा ,जेठ जनि रचिहौं विवाह
 
हाथी से घोरवा प्यासन मरिहैं ,होरा बदन कुम्हलाय
विवाह की एक रीत है तिलक जिसका वर्णन इस गीत मै बहुत सुंदर तरीके से किया गया है .देखने वाली बात ये हैं की राम जैसे समृद्ध राजा के लिए भी तिलक कम है का उलाहना माता कौशल्या राजा जनक को दे रही हैं
 
सगरी अयोध्या में  राम दुलरवा ,तिलक आई बड़ी थोर
 
भीतर से बोली रानी कौशल्या ,सुनो राजा दशरथ बचनी हमार.
बेटी कि बिदाई गीत का मर्म देखिये
 
एक बन गईं दुसरे बन गईं तीसरे बबिया बन
 
बेटी झलरी  उलटी जब चित्वें तो मैया के केयू नाही
 
लाल घोड़ चितकबर वेंसे वे पिया बोलेन ,
हमरे पतुक आंसू पोछो मैया सुधि भूली जाव
माँ कहती है बेटी तुम इतनी दूर हो तुमको कौन लेने जायेगा तो बेटी कहती है कि मेरा भाई मुझको लेने आएगा
 
का हो बेली फुलाल्यु इतनी दूरियां केना तुन्हें लोढं जैह्यें
 
मालिया के कोर्वन मालानी छोकरवा वही हममें लोधन जईहें
 
विवाह के बाद भी बेटी  के माता पिता चिंता मै रहते हैं की पता नहीं बेटी कैसी होगी पिता पूछते हैं बेटी कहो तुम कैसी हो ?
   बाबा जे बेटी बुलावें जांघ बैठावे
 
बेटी कौन कौन  सुख पायु हमसे  कहो अर्थाये
 
सोने के पलंगिया बाबा हमरा सेजरिया दुधवा हमरा स्नान
 
सोने  कटोरवा बाबा हमरा भोजनवा,भुईन्या मै लोढऊं अकेल
 
इस लोकगीत में नन्द, भाभी कि नोकझोक का सुंदर वर्णन है भाभी पूछती है हे नन्द तुम किस के लिए आई हो जो मेरे घर में बैठी हो .तो नन्द कहती है कि भाभी में भैया के लिए आयीं हूँ
 
हीलत  नंदा आइन कंपतक नंदा आइन  बेसरा झुलावत आइन हो
 
नन्दा केकरे गुमाने चली आयू  दुअरिया चढ़ के  बैईठियु हो
 
हीलत  नंदा आइन कंपतक नंदा आइन  बेसरा झुलावत आइन हो
 
भौजी भैया गुमाने चली आंयों दुअरिया चढ़ के बैईठियों हो
 
प्रत्येक भारतीय संस्कार प्रारंभ होता है भगवान की आराधना से देवी की पूजा से .
लागत चैईत महिनवा ,देवी ज़ी आई गई भवनवा
 
मईया  के मांगिय लाल लाल सेंदुर ,चम् चम् चमके टिकुलिया
 देवी ज़ी आई गई भवनवा
 
होली में  देवी ज़ी को किस रुपमे देखते हैं उसका सुन्दर उदाहरण है
 
अब होलिया मै उड़त है गुलाल मईया  के रंग सतरंगी
 
सेनुर भीगे बिन्दिया भीगे चेहरा है लालम लाल
 
 मईया  के रंग सतरंगी
 

लोकगीतों में जीवन के हर पहलू की झलक मिलती है .संस्कारों की मोहकता से सराबोर ये लोकगीत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी वसीहत की तरह सौपे जाते हैं .ये गीत कब से गाये जाते हैं कहना कठिन है पर मै कह सकती हूँ कि इनका रूप चाहे बदल जाये पर ये गीत रहती दुनिया तक महकते  रहेंगें .भारतीय संस्कारों को धरोहर के रूप में  सजोये ये गाँव गाँव शहर शहर गाये जाते रहेंगे .
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