Monday 25 April 2011

हरिगन्धा मासिक का महिला विशेषांक

हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगन्धा मासिक के महिला विशेषांक  में रचना श्रीवास्तव की कविताएँ- 
रचना श्रीवास्तव की कविताएँ 

Monday 18 April 2011

सरोद तो गाते हैं- अमजद अली खान

  
धर्मगुरु दलाई लामा जी ने कभी कहा था कि जब "उस्ताद अमजद अली खान साहब" अपने सरोद के अमृत को हमारी आत्मा में घोल रहे होते हैं, दरअसल अपनी मानवता, सच्चाई, और दयालुता को भी वे उसी संगीत में उड़ेल रहे होते हैं और उनकी इस सच्चाई, और सादगी को मैंने भी महसूस किया जिन दिनों खान साहब अमेरिका के दौरे पर थे. उनसे सरोद, राग और पिता जी के बारे में एक अन्तरंग बातचीत-

आप सरोद के "पर्याय" है. लोग तो आप को सरोद का  राजा (प्रिंस ऑफ़ सरोद ) भी कहते हैं.
मै संगीत का छोटा सा सेवक हूँ. मै  मनोरंजन करने वाला नही हूँ. शास्त्रीय संगीत का छोटा सा प्रतिनिधि हूँ, सिपाही हूँ. मै तो सरोद का गुलाम हूँ. बस यही कोशिश है इज्जत के साथ समर्पण के साथ काम करता रहूँ और सरोद को लोग समझने लगें, पसंद करने लगें; क्योंकि मैं मानता हूँ, सरोद कहीं न कहीं पीछे रह गया है. जैसे गिटार है, सितार है- एक दौर आया कि सितार अमेरिका में बहुत प्रसिद्ध हो गया. इस में सभी महान सितार वादकों का हाथ है. सोचता हूँ कि बीटल यदि सितार नहीं पकड़ते तो शायद इतना पापुलर नहीं होता पर अभी तो लोग सरोद को भी जानने लगे हैं.

कहते हैं कि सरोद आप के पूर्वजों का आविष्कार है. आप कुछ कहेंगे?
जी सही है. ये अफगानी  साज़ होता था जिसको रबाद कहते थे. हमारे पूर्वजों ने उस में परिवर्तन कर के नया साज़ बनाया. उस को नाम दिया सरोद. सरोद एक पर्शियन अल्फाज़ है जिसका मतलब मौसिकी है. पुराने लोग कहते थे कि सरोद बहुत मुश्किल साज़ है, ये बेपर्दा साज़ है यदि बजने वाला ठीक से न बजाये तो ये बजाने वाले को बेपर्दा कर देता है क्योंकि ये एक सिल्प्री प्लेट है जिस पर कोई निशान नहीं है तो बहुत ध्यान  से बजाना होता है.

सरोद बजाने के तरीके के बारे में  कुछ बताइए-
सरोद बजाने के मुख्यतः दो तरीके हैं, एक जिसमे तारों को उंगलियों के टिप से रोका जाता है और दूसरा वो जिसमे तारो को बाएँ हाथ की उँगलियों के नाख़ून से रोका जाता है.

आप इनमे से कौन  सा तरीका इस्तेमाल करते है और क्यों ?
मै बाएं हाथ की उंगलियों  के नाख़ून से रोके वाले तरीके का प्रयोग करता हूँ क्यूँकि मुझे लगता है कि इस से तारो को शार्प आवाज के साथ रोका जा सकता है.

आपने सरोद वादन में बहुत से प्रयोग  किये हैं-
सरोद तो हमेशा से बज रहा है. बहुत बड़े बड़े लोगों ने बजाया है, मेरे पिता और गुरु ने भी बजाया है ;लेकिन मै बचपन से सरोद के जरिये गाना चाहता था. सरोद ऐसा साज़ है जो इन्सान की हर फ़ीलिंग  को कह सकता है. कठोर शास्त्रीय संगीत की परंपरा को तो सभी निभाते और बजाते हैं ;पर हम लोक -संगीत, तराना और रवीन्द्र संगीत सब बजाना चाहते थे और मैने बजाया भी. मै पहला सरोदिया हूँ जिसने १०० गानों को बजाया है. हम जब बजाते हैं तो मुख्यतः हम अन्दर से हम गा रहे होते हैं और बाहर से बजा रहे होते हैं. हमने एक रिकॉर्ड भी बनाया "ट्रिब्यूट टू टैगोर". बंगाल की एक बहुत अच्छी गायिका है चित्रा मित्रा वो  जो गा रहीं है और मै वही बजा रहा हूँ. दूसरे अल्बम में  देवी जी ठुमरी गा रही है और मै बजा रहा हूँ. गाने का मुझे हमेशा से शौक रहा है और मेरी ये भी कोशिश रही है कि खुदा करे कि मेरा सरोद सुन कर लोग भी गाने लगें.

आप किसी भी व्यक्ति या अवसर राग बनाते हैं -जैसे आप ने गाँधी जी पर, और शुभलक्ष्मी जी पर राग बनाये. इन रागों को बनाते समय आप मुख्यत:  किन बातों को ध्यान में  रखते हैं?
ऐसा कुछ नहीं है अपने आप ही कोई धुन दिमाग में आ जाती है. अभी मैने राग "गणेश-कल्याण" बनाया है. ऐसा राग पहले कभी था ही नहीं. एक धुन मै हमेशा गुनगुनाता रहता था ।अचानक मुझे एक दिन लगा कि ये मैं क्या गा रहा हूँ तो बस वो ही धुन "गणेश-कल्याण" राग बन गई. ये ऊपर से भगवान की कृपा होती है बनी बनाई चीज आती है और हम कहते हैं कि हमने बनाई है. हम को तो ये ईश्वर से आशीर्वाद मिलता है और दुनिया को दिखाने के लिए कहना पड़ता है कि मैने कम्पोज़ किया है लेकिन हम केवल संदेशवाहक है, खुदा के सन्देश को लोगों तक पहुँचा देते हैं.

आप ने संगीत अपने अब्बा जी से सीखा है. कौन सी  ऐसी तालीम थी जो आज भी आप के साथ है?
संगीत तो हर पिता अपने बेटे को सिखाता है पर पिता जी से हमको इंसानियत और रहमदिली का सबक मिला है. मेरे अब्बा खुद भी बहुत रहमदिल इंसान थे, बड़ों को इज्जत देना और छोटो को प्रोत्साहित करना भी हम ने उन्ही से सीखा है ,अतः आज तक हमने बहुत से नए तबला वादकों को मौका दिया है और आगे लाये है. पिता जी ने कहा कि इन्सान में उसकी खूबियाँ देखो ,न कि कमियाँ. हमारा होमवर्क होता था कि  पिताजी के सभी सहयोगी कलाकारों में खूबियाँ ढूँढें और पिता जी से डिस्कस करे कि विलायत अली खान और इनके पिता जी, अब्दुल करीम खान साहब और केसर बाई की गायिकी में  क्या-क्या खूबियाँ है. इस तरह से हम को दिशा मिलती गई और सभी से सीखते गए.
फ़िल्मी संगीत भी बहुत अच्छा है हम इसकी इज्जत करते हैं. पिता जी का सबसे बड़ा आशीर्वाद यही है कि हमें दूसरों में खूबियाँ नज़र आती हैं। वो सदा कहते थे कि यदि आप किसी का आदर नहीं कर सकते तो अनादर भी नहीं करना चाहिए, प्यार नहीं कर सकते तो नफरत भी नहीं करनी चाहिए. मै तो सभी से कहना चाहूँगा कि माता पिता की सेवा करें, आज कल बच्चे बड़े होकर कहते हैं कि आप ने मेरे लिए क्या किया? सबसे बड़े गुरु तो माता पिता है, बच्चे दूसरे गुरु के पास चले जाते हैं और माता पिता को भूल जाते है.

क्या पिता जी कड़े अनुशासन  में  सिखाते थे?
जी हाँ,  वो बहुत ही अनुशासित व्यक्ति थे. क्वालिटी और परफेक्शन को बहुत  महत्त्व देते थे "राग की शुद्धता ", ये पिता जी का उसूल था। कहते थे कि राग को हम उतनी  देर ही बजायेगे जितनी देर राग की खूबसूरती बनी रहे. हमको राग  जबरदस्ती खीचना नहीं है. पिता जी को लगता था कि यदि आप राग का अपमान करेंगे तो वो आप को शाप दे देगा.

फ़िल्मी संगीत में  शास्त्रीय संगीत का समावेश कितना है और कितना शुद्ध है?
बहुत से गाने रागों पर आधारित हैं. कुछ में शुद्ध राग का प्रयोग हुआ है और कुछ  में मिश्रित राग का. हम ने करीब ४० गज़लें कम्पोज़ की है ,जिनको बड़े -बड़े लोगों ने गाया भी है. यहाँ मै ये भी कहना चाहूँगा कि सब गानों में  हम शास्त्रीय सगीत नहीं ढूँढते हैं। हम ये देखते है कि गाना दिल को छुए, कानो को अच्छा लगे, दुनिया का कोई भी संगीत सात सुरों पर ही आधारित है.

फिल्म के गानों में से  आप के पसंद के कौन- कौन से गाने हैं ?
सभी हिन्दुस्तानी फिल्म संगीत को सुनके ही बड़े होते हैं ।मुझे भी बहुत से गाने पसंद हैं जैसे सीमा फिल्म का "कहाँ जा रहा है","चौदवीं का चाँद हो ", "चिंगारी कोई भड़के ",
                                                                        
आज आप के दोनों बेटे भी सरोद बजाते हैं, आप एक खुशकिस्मत पिता है
?
जी हाँ ,ये सच है कि मै अपने बेटो से बहुत खुश हूँ. मैने जो कुछ भी अपने बुजुर्गों से सीखा है, पिता जी से सीखा है, सभी कुछ मैने इनको  सिखाया है. मेरे बेटो ने हमारी परंपरा को आगे बढाया है. ऊपर वाले की दया है कि अमान और अयान दोनों ही बहुत मेहनती है और आज्ञाकारी है. हमने चाहा था कि वो एक अच्छे इन्सान बने और आज मुझे ख़ुशी है कि वो नेक इंसान बन पायें है. हम ने उनको सरोदिया बनने के लिए दबाव नहीं डाला; उन्होंने खुद से ये राह चुनी है.

Sunday 17 April 2011

मेरा वो मतलब नहीं था- अनुपम खेर

             

"जितना अधिक हम दूसरों के लिए दयालु (सहानुभूतिशील) होते है उतनी ही अधिक ख़ुशी हम स्वयं को प्रदान करते हैं ". ऐसे महान विचार रखने वाले प्रथम संस्था के गुडविल एम्बेसडर पद्मश्री अनुपम खेर अच्छे कलाकार,सहृदय और विनम्र इन्सान है. ऊँचाइयों को छूने के बाद भी इनके पावं धरातल से जुदा नहीं हुए हैं. अपनी हर फिल्म में  उन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है और लोगो का मनोरंजन किया, फिर चाहे सारांश का बूढा पिता हो, डैडी का शराबी, सम्वेदनशील पिता या फिर खोसला का घोसला का चरित्र हो.
भारत में अंडर प्रिविलेज  बच्चो की सहायता के लिए धन एकत्र करने के वास्ते अनुपन जी प्रथम की तरफ से अमेरिका की यात्रा पर है इसी दौरान इनसे बात करने का मौका मिला- 

 
आप बहुत संघर्ष और मेहनत कर के यहाँ तक पहुचे है. संधर्ष के समय की क्या कोई ऐसी बात है जो आज तक आप के साथ है? 
मुझे अपना पूरा जीवन याद है, मै जीवन के हर पल को जीता हूँ. इसलिए किसी खास घटना को हमेशा याद नहीं करता मै सब कुछ अपने साथ अपनी यादों में रखता हूँ.

आपने एक बार कहा था कि पिता जी ने मेरे अंदर से असफलता का डर निकल दिया-
जी हां हुआ यूँ, कि उस समय हम शिमला में रहते थे. हमारे स्कूल में ये होता था कि १० वीं का इम्तिहान देकर हम को क्लास ११ मै प्रमोट कर दिया जाता था, फिर जब २ महीने बाद क्लास १० का नतीजा आता था तो यदि आप फेल हो गए हों तो आप को वापस १० वी में भेज दिया जाता था. तो एक दिन पिता जी आये उन्होंने कहा कि आज स्कूल की छुट्टी करो फिर वो मुझे ले कर अल्फ़ा रेस्टोरेंट गए. इस रेस्टोरेंट में हम ५ महीने में एक बार जाया करते थे और अभी कुछ दिन पहले ही हम सभी यहाँ आये थे. मै सोचने लगा पिताजी आज यहाँ क्यों लाये है, बस चाय ही पिलायेंगे पर पिता जी ने कहा कुछ खाना है मैने कहा हाँ फिर मैने पिता जी से पूछा की क्या बात है आप मुझको यहाँ क्यों लायें है, मेरी खातिर क्यों कर रहे हैं. फिर पिता जी ने बताया कि तुम फेल हो गए हो तो मैने कहा कि तब आप इतनी ख़ुशी क्यों मना रहें हैं तो बोले की मै तुम्हारी असफलता को सलिब्रेट कर रहा हूँ ताकि जीवन में  कभी भी तुम को असफलता से डर न लगे.

आप को जब अपनी  पहली फिल्म का  पारिश्रमिक मिला था तो वो अनुभव कैसा था ?
सारांश के लिए तो कुल १०,००० हजार रुपये मिले थे पर मेरी दूसरी फिल्म जिसका नाम  जवानी था के लिए मुझे १०,००० साइनिंग अमाउंट मिला था. रोमेश बहल जी ने दिए थे और वो ख़त्म  ही नहीं हो रहे थे. मुझे नहीं लगता जितना मैने उन १०,००० रुपयों से जितना आनंद उठाया किसी और पैसे से किया होगा.

"मैने गाँधी को नहीं मारा " ये फ़िल्मी दुनिया मे एक मील  का पत्थर है, इस फिल्म को बनाने का विचार कैसे आया ?

 ये कहानी मुझे
जाहनू बरुआ  सुनाने आये थे, मुझे कहानी में बहुत दम लगा. मुझे लगा कि ये फिल्म बनानी चाहिए. इस फिल्म को पहले एन ऍफ़ डी सी बना रही थी पर उसने अन्तिम समय पर मना कर दिया. फिर मैने यश राज जी को अपना प्रोजेक्ट दिया तो वो सहमत हो गए. मैने पहले कभी अल्ज़िमर्स, टेमंशिया पर कोई फिल्म नहीं की थी. मुझे ख़ुशी है की ये अवसर मुझे मिला. इसके अलावा गाँधी जी के विचार उनकी  दार्शनिकता को एक अलग ढंग से दिखाया गया है. मै ऐसा चाहता था कि उनके विचारो को अच्छे तरीके से दिखाया जाये.

आप ट्वीटर पर बहुत दार्शनिक बातें करते हैं ?
मै जो कुछ भी लिखता हूँ वो जीवन का निचोड़ है, सच है और हकीकत के बहुत करीब है.

आपने  लिखा है " दिमाग एक पेराशूट की तरह है ये तभी काम करता है जब खुलता है"

हाँ ठीक है, यदि दिमाग बंद होगा तो वो कुछ सोच नहीं पायेगा न काम कर पायेगा. अपने विकल्प खुले रखने चाहिए तभी आप तरक्की कर सकते हैं .

आपने ५ सितम्बर को कहा था कि आप एक्टर  से ज्यादा अच्छे टीचर है ऐसा क्यों ?

पढाना अपने आप में एक बहुत ही अच्छा अनुभव है, जब आप पढ़ाते है तो बहुत ध्यान देते हैं. अपने जीवन में जो कुछ अनुभव होता है उस को  सिखाते हैं. जब आप पढ़ाते है तो बहुत कुछ सीखते भी हैं,पढ़ाने से आप को क्या मालूम है, क्या नहीं उसका अहसास भी हो जाता है. अभिनय एक आयामी है पर इस के रूप अलग-अलग है,  जबकि टीचिग बहु-आयामी होती है.
 
आपने  हॉलीवुड की फिल्मो में काम किया और  बॉलीवुड की फिल्मो में भी काम किया है. क्या ऐसी चीज है जो आप चाहते हैं की हॉलीवुड से बॉलीवुड में आ जाये और हिदी फिल्मों से हॉलीवुड में आ जाये?
हिन्दी फिल्मों में जो गर्मजोशी है, आपस में लगाव है और हॉलीवुड में जो व्यावसायिकता और अनुशासन है, यदि इन चीजों का आदान प्रदान हो जाये तो बहुत अच्छा होगा.

आप का एक नाटक "कुछ भी हो सकता है" बहुत सफल रहा है-

जी हाँ, इस प्ले से सभी अपने आप को जोड़ सकते हैं. उनको ये भी लगता है कि जीवन में कुछ भी किया जा सकता है. इस नाटक का दर्शन यही है कि "कुछ भी हो सकता है".  इस प्ले को देख कर लोगों को प्रोत्साहन मिलता है और सम्भावना भी नजर आती है कि कुछ भी हो सकता है.

इस प्ले पर आधारित पेंटिग की एक प्रदर्शनी भी हुई है, ये एक नया विचार था?

क्या हुआ कि गीता दास ने मेरा प्ले करीब १०-१२ बार देखा फिर उन्होंने मुझसे कहा कि यदि आप की अनुमति हो तो मै इस नाटक  पर पेंटिग  बनाना चाहती हूँ, मैने उनसे  कहा की आप पहले मुझे एक दो  सेम्पल दिखा दीजिये. जब  मैने उनकी  पेंटिग को देखा तो मुझे लगा की इन्होने प्ले की आत्मा को समझा है. उन्होंने करीब १६-१७ पेंटिंग बनायीं, फिर हमने प्रदर्शनी लगाई जो बहुत अच्छी रही. बहुत से लोग आये थे और सभी ने बहुत पसंद किया. 

                                        

आप क्या अभी कोई नया प्ले ले कर आने वाले हैं ?

जी है मै अभी किरन जी के साथ एक नया  प्ले कर रहा हूँ. स्टार प्रमोशन के बैनर तले इस प्ले का प्रारंभ हियुस्टन, अमेरिका से होगा. स्टार प्रमोशन के अध्यक्ष राजेंद्र जी मेरे अच्छे मित्र हैं. मेरे पहले दो प्ले "सालगिरह" और "कुछ भी हो सकता है" भी इन्होने ही किये थे. इस प्ले का नाम है "मेरा वो मतलब नहीं था". इस प्ले में  मै, किरन और राकेश बेदी अभिनय करेंगे. इस प्ले को राकेश बेदी जी ने लिखा है और वही इस को निर्देशित भी कर रहे है. मै इस नाटक को लेके बहुत उत्साहित हूँ .

इस नाटक के बारे में  कुछ और बताइए-

ये नाटक ऐसे दो लोगों की कहानी है जो बहुत सालो बाद मिलते हैं. अपनी प्रेम कहानी, अपने जीवन के उतार चढाव और यात्रा को हास्य और इमोशन के द्वारा एक दूसरे से बांटते हैं. ये  बहुत ही मनोरंजक प्ले है

आप ये प्ले कहाँ कहाँ करने वाले हैं ?
मै ये प्ले अमेरिका और कनाडा में करने वाला हूँ.

आपकी  आने वाली फिल्म कौन कौन सी हैं ?
"जीन" फरहान अख्तर के  कम्पनी की  फिल्म है जिसको अभित्य देओल  निर्देशित कर रहे हैं ,"यमला पगला दीवाना "जिसमे धरम जी, जेकी, सनी और बौबी देओल है, "हवाई दादा" इस फिल्म को मैने प्रोडूस किया है.
 

"हवाई दादा" की स्टोरी क्या है ?
"हवाई दादा" एक छोटे शहर के आदमी की कहानी है जो कभी हवाई जहाज पर नहीं बैठा है पर कहता है कि मैने जहाज से यात्रा की है. फिर कैसे उसकी ९ साल की पोती उनको जहाज का अनुभव देती है, क्या है  कि हिंदुस्तान में  बहुत सारे लोग हैं जो ऐसा करते है. जो नहीं किया वो भी कहते हैं.

इस फिल्म में आप के साथ और कौन कौन से कलाकार हैं
?
मै हूँ, और तनूजा जी है जिन्होंने मेरी पत्नी का रोल किया है और गार्गी ने मेरी पोती का रोल किया है.

आपने हर तरह की भूमिकाये की हैं, क्या कोई ऐसी भूमिका है जो अभी भी आप करना चाहते हैं ?

मै एक कलाकार हूँ, मै हर तरह की भूमिकाएं करना चाहता हूँ. ये सवाल आप यदि ४० साल बाद भी पूछेंगी तो मै कहूँगा कि अभी भी बहुत तरह की  भूमिकाएं है, जो मै करना चाहता हूँ.

लोक साहित्य का मर्म

विद्यावती पाण्डेय एवं रचना श्रीवास्तव 


अवधी अवध में बोली जाने वाली बोली है .इसका साहित्य अत्यंत समृद्ध है अतः इसको भाषा का दर्जा देना गलत न होगा .पूर्वी अवधी और पश्चिम अवधी के रुप मे ये  लाखों लोगों के द्वारा बोली जाती है .अवधी साहित्य भी बहुत समृद्ध है .तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस ,जायसी कृत  पद्मावत अवधी भाषा में है इसके अलावा संत कवियों में बाबा मलूकदास ,इनके शिष्य बाबा मथुरादास की बानी अवधी में हैं .अवधी के  लोकगीत भी बहुत प्रचलित हैं लोकगीत क्या है ?महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि लोकगीत समूची संस्कृति के पहरेदार हैं  और लोकगीत का शाब्दिक अर्थ है जनमानस का गीत, जन-मन का गीत, जनमानस की आत्मा में रचा बसा गीत। ये गीत जनकंठ में ये सुरक्षित रहते हैं और पीढी-दर-पीढी विरासत में मिलते हैं।.अपने मन के भावों को जब आम जनता गीतों का रूप देती है हो लोग गीत का जन्म होता है .लोकगीतों में भारतीय संस्कृति की  गंध रची बसी होती है   लोकगीतों में स्थानीय शब्दों का समावेश  प्रचुरता में  होता है .यदि अवधी के लोकगीतों को देखें तो इसमें भक्ति, शृंगार ,वात्सल्य रसों का सुंदर चित्रण है अन्य लोकगीतों कि तरह अवधी के लोकगीतों में भी भारतीय संस्कृति का दर्पण है .जीवन के हर पहलू पर अवधी लोकगीत लिखे गयें हैं
बच्चे के जन्म पर गए जाने वाले   सोहर से ले के प्रत्येक मौसम त्योहार और जीवन के विभिन कर्मकांडों पर अवधी में लोकगीत मिल जाएँगे .

मचियाह बैठी है सासू,तो बहुरिया अरजी करे
सासू निबिया पूजें हम जाबे ओ बेरिया हमरे गमके
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मिली जुली गावे के बधइया, बधइया गाव सोहर हो
आज किशन  के होइहे जनमवा, जगत गाई सोहर हो॥
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जुग जुग जिये  ललनवा के महलवा के भाग जगे
आँगन होई गए ललनवा के महलवा के भाग जगे

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लड़के के जन्म पर बहुत खुशियाँ मनाई जाती हैं ये देख कर लड़की अपने पिता से पूछती है -
हमरे जनम कहे थरिया न बजायो
कहे न मनायो खुशियाँ हो
बेटी जनम जे मुख कुम्हलाये
बिगड़े भाग्य रमैया हो 
मुंडन एक महत्त्वपूर्ण संस्कार है बच्चे के जन्म के कुछ सालों बाद या साल भीतर ही मुंडन होता है  ।इस अवसर का गीत है ,जिसमे भाई अपनी बहन को निमंत्रण  देता है और कहता है कि बहन तुम्हारे भतीजे का मुंडन है, तुम्हें न्यौता है तुम आना जरूर -
भैया जे बहिनी से अरजि करें
बहिनी आज तोहरे भतीजवा के मुंड़न ,न्यूत हमरे आयो जरूर 
बहिनी जे भइया से अरजी करे
भइया बडरे कलाप के लपडिया तो ,चोरिया मुडायो

जनेऊ (उपनयन संस्कार )हमारी संस्कृति  का एक विशेष अवसर है माना जाता है कि इसके बाद बालक पढने के लिए गुरुकुल जाते थे -

दशरथ के चारो ललनवा मण्डप पर सोहे - 2
कहा सोहे  मुन्ज के डोरी ,कहा सोहे  मृग  छाला
कहा सोहे  पियरी जनेऊवा,मण्डप पर सोहे
दशरथ के चारो ललनवा, मण्डप पर सोहे
हाथ सोहे  मुंज के डोरी ,कमर म्रिगछाला
देह सोहे  पियरी जनेऊवा,मण्डप पर सोहे


राम के वन जाने पर माता कौशल्या सोच रही है कि राम-लक्ष्मण जंगल में रहेंगे कहाँ-
कौन गाछतर आसन वासन कौन गाछतर डेरा
फिर उत्तर स्वयं ही सोचकर थोडा आश्वस्त होती हैं:
 कदम गाछतर आसन-वासन ,नीम गाछतर डेरा।   
भारतीय संस्कृति के चार आश्रमों में  से एक है गृहस्थ आश्रम .ग्रस्त आश्रम में  प्रवेश करने के किये विवाह का होना अनिवार्य था ,विवाह में बहुत सी रीतियाँ होती थी ;आज भी होती हैं ,पर समय की कमी के कारण कुछ कम होती हैं .
जैसे- देखिए विवाह योग्य बेटी अपने पिता से कहती है -मै बहुत सुंदर हूँ ।मेरे लायक ही बर खोजना और मेरा विवाह करना-
सेनुरा बरन हम सुन्दर हो बाबा, इंगुरा बरन चटकार हो
मोतिया बरन बर खोजिहा हो बाबा, तब होइ हमरा बियाह हो
 
--
घुमची बरन हम सुंदर बाबा भुनरी बदन कटियार
 
हमही बरन बर ढूढो बाबा तब मोरह रचियों विवाह
 
पिता सोचता है मैने सब कुछ इकठा किया है आज वो (बाराती )सब ले जा रहे हैं
 
मोरे पिछड़वाँ लौंगा के पेडवा,लौंगा चुये आधी रात
 
लौंगा मै चुन बिन ढेरियाँ लगयों ,लादी चले हैं  बंजार 
 
बेटी अपने पिता से कहती है की गर्मी में  मेरा विवाह मत करना सभी प्यासे मरेंगे और मेरा गोरा बदन कुम्हला जायेगा
 
बेटिया की बेटिया मै अरजों बाबा ,जेठ जनि रचिहौं विवाह
 
हाथी से घोरवा प्यासन मरिहैं ,होरा बदन कुम्हलाय
विवाह की एक रीत है तिलक जिसका वर्णन इस गीत मै बहुत सुंदर तरीके से किया गया है .देखने वाली बात ये हैं की राम जैसे समृद्ध राजा के लिए भी तिलक कम है का उलाहना माता कौशल्या राजा जनक को दे रही हैं
 
सगरी अयोध्या में  राम दुलरवा ,तिलक आई बड़ी थोर
 
भीतर से बोली रानी कौशल्या ,सुनो राजा दशरथ बचनी हमार.
बेटी कि बिदाई गीत का मर्म देखिये
 
एक बन गईं दुसरे बन गईं तीसरे बबिया बन
 
बेटी झलरी  उलटी जब चित्वें तो मैया के केयू नाही
 
लाल घोड़ चितकबर वेंसे वे पिया बोलेन ,
हमरे पतुक आंसू पोछो मैया सुधि भूली जाव
माँ कहती है बेटी तुम इतनी दूर हो तुमको कौन लेने जायेगा तो बेटी कहती है कि मेरा भाई मुझको लेने आएगा
 
का हो बेली फुलाल्यु इतनी दूरियां केना तुन्हें लोढं जैह्यें
 
मालिया के कोर्वन मालानी छोकरवा वही हममें लोधन जईहें
 
विवाह के बाद भी बेटी  के माता पिता चिंता मै रहते हैं की पता नहीं बेटी कैसी होगी पिता पूछते हैं बेटी कहो तुम कैसी हो ?
   बाबा जे बेटी बुलावें जांघ बैठावे
 
बेटी कौन कौन  सुख पायु हमसे  कहो अर्थाये
 
सोने के पलंगिया बाबा हमरा सेजरिया दुधवा हमरा स्नान
 
सोने  कटोरवा बाबा हमरा भोजनवा,भुईन्या मै लोढऊं अकेल
 
इस लोकगीत में नन्द, भाभी कि नोकझोक का सुंदर वर्णन है भाभी पूछती है हे नन्द तुम किस के लिए आई हो जो मेरे घर में बैठी हो .तो नन्द कहती है कि भाभी में भैया के लिए आयीं हूँ
 
हीलत  नंदा आइन कंपतक नंदा आइन  बेसरा झुलावत आइन हो
 
नन्दा केकरे गुमाने चली आयू  दुअरिया चढ़ के  बैईठियु हो
 
हीलत  नंदा आइन कंपतक नंदा आइन  बेसरा झुलावत आइन हो
 
भौजी भैया गुमाने चली आंयों दुअरिया चढ़ के बैईठियों हो
 
प्रत्येक भारतीय संस्कार प्रारंभ होता है भगवान की आराधना से देवी की पूजा से .
लागत चैईत महिनवा ,देवी ज़ी आई गई भवनवा
 
मईया  के मांगिय लाल लाल सेंदुर ,चम् चम् चमके टिकुलिया
 देवी ज़ी आई गई भवनवा
 
होली में  देवी ज़ी को किस रुपमे देखते हैं उसका सुन्दर उदाहरण है
 
अब होलिया मै उड़त है गुलाल मईया  के रंग सतरंगी
 
सेनुर भीगे बिन्दिया भीगे चेहरा है लालम लाल
 
 मईया  के रंग सतरंगी
 

लोकगीतों में जीवन के हर पहलू की झलक मिलती है .संस्कारों की मोहकता से सराबोर ये लोकगीत एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी वसीहत की तरह सौपे जाते हैं .ये गीत कब से गाये जाते हैं कहना कठिन है पर मै कह सकती हूँ कि इनका रूप चाहे बदल जाये पर ये गीत रहती दुनिया तक महकते  रहेंगें .भारतीय संस्कारों को धरोहर के रूप में  सजोये ये गाँव गाँव शहर शहर गाये जाते रहेंगे .
-0-



Saturday 16 April 2011

हाइकु



21
बेबस पिता
त्योहार का मौसम
वेतन दूर ।
22
मुन्ना निहारे
हाथ लिये अठन्नी
सजी दुकान
23
घमंडी चाँद
रात में न  निकला
दिया मुस्काया  ।
24
खड़ा अकेला
सीमा पर सैनिक
तभी  दिवाली
25
दिवाली -भोज
 जूठे पत्तल चाटें
वो और कुत्ते ।
26
झोपडी छोड़
लक्ष्मी धरे आसन
ऊँचे   आँगन
27
सिकुड़ी खड़ी
कोहरे में लिपटी
बेबस रात ।
28
बच्चे की भूख
बाजार में बिकती
बेबस थी माँ॥
29
टाट ओढ़  के
खुले में सोता छोटू 
याद आती माँ।
30
अलाव जले
चारो ओर आ बैठे
जो दिल मिले।
31
 शीत उतरा
ठिठुरता सूरज
घर में  छुपा 
32
मरते चीते
उजड़ता जंगल
चेतो इन्सान।
33
हारा इन्सान
अपने ही जाये से
 शिकवा क्यों ?
34
आज के गीत
घर गाती  बेटियाँ
शर्मिंदा पिता ।
35
बच्चों के लिए
माँ हो गई बुढ़िया
पता न चला ।
36
तुम्हारे साथ
ख़त्म हुई जिंदगी
पता न चला ।
37
न कोई आस
बुढ़ापे का साथ तो
केवल  प्यार 
38
बहन थकी
भाई ने दिया साथ
चाँद हो गई ।
39
आँखों में चुभे
घायल से सपने
रोये उम्मीद
40
विदेशी हवा
उडा के  लेती  गई 
पिया का प्यार
41
तारों की छाँव
बिताता था रात वो
प्यारों की  घात
-0-

हाइकु


1
सूखी बारिश
बादल  ने निचोड़े
चिटके  खेत 
2
डॉलर छीने
बेसहारा  की लाठी 
सूना आँगन
3
उछला  पानी 
तट को निहारते 
डूबते लोग
4
बेटी  का जन्म 
जीवन पराजित
बिलखती माँ 
5-
जाति व  धर्म  
हवा में  लगी गाँठ 
घुटते लोग 
6-
आँखों में धूल
नफरत की आँधी 
बिखेरे शूल । 
7
शहीद हुआ
तो बचा सूना घर 
सूनी  ही माँग  
 8
खुद ही किया
खुद का इंतजार
ऐसी  तन्हाई
9
स्वयं से बातें
बड़बड़ाना नहीं
होता आत्मसात्  ।
10
था चाँद गहा
उसी तड़प को तो
मैंने भी  सहा ।
11
दिल्ली में खेल
 नोट बटोर  स्पर्धा
शर्मिदा देश ।
12
बेटे का कोट
रोज धूप दिखाती
प्रतीक्षा में माँ
13
भरती  माँग
पोंछने  से पहले
फौजी विधवा
 14
नन्हे हाथों ने 
थमा,,जूठा बर्तन
रूठा भविष्य
15
भूखे अपने
देखें कैसे सपने
मासूम आँखें
16
बच्चे की पूजी
खिलौनों की झबिया
माँ का आँचल
17
निश्छल प्यार
मात्र बच्चों के पास
भोला संसार
18
तुम्हारी याद
चौखट दीप धरूँ
दिवाली -रात
19
वो घर आएँ
नयन -दीप जलें
दिवाली रात
20
दिवाली  -रात
धरा पर बिखरे
उम्मीद -तारे
-0-

नव वर्ष (हाइकु)


1.

नई तारीखें
पुरानी समस्याएँ
इस साल भी
2

पुरानी बातें
नए थे कैलेन्डर
इस साल भी
3

मरे किसान
मुरझाई फसलें
इस साल भी
4

सूनी कलाई
गिरवी थीं चूडियाँ
इस साल भी
5

कुछ बदलेगा .
तारीख के अलावा
इस साल भी
6

ईमान बिका
मज़बूरी या पाप ?
भूखे थे बच्चे 

 7

सावन हरा
आँगन में  महके
नव  वर्ष   में
8

पेट को रोटी
नल को मिले पानी
नव वर्ष में
9

बेटी को जन्म
बहुओं  को सम्मान 
नव वर्ष में  

-0-

फ़ौज़ी परिवार की होली (हाइकु)

1
रंगीला  पत्र
धुँधले थे  अक्षर
फौजी के नाम
2
छुट्टी निरस्त
होली हुई बेरंग ,
सैनिक सोचे
3
बनाती होगी
रोते हुए गुझिया
प्रतीक्षा  में माँ
4
सबसे छुपा
पोंछती होगी  आँखें
इस  होली माँ
5
उड़ेंगे  रंग
बिना मेरे अँगना
होगी उदास
6
होली की शाम
देखता होगा राह
मेरा वो बेटा
7
लिये वो  रंग
बैठा राह निहारे
फौजी का बेटा
8
होली की रात
भी ,चले यहाँ गोली -
सैनिक सोचे
9
रंग न संग
समझे कौन दर्द
हम फौजी का
-0-

आँखों में अटका था बस एक ही सपना


पहनी
मोची से सिलवाई चप्पल
कि दे सके
तेरे पैरों को जूते का आराम
फटी कमीज़ तो चकती लगा ली
ताकि शर्ट तुम्हारी सिल सके
पंचर जुड़ी साइकिल पर चलता रहा
टूटी गद्दी पर
बाँध कपड़ा काम चलाता रहा
ताकि खरीद सके
वो पुरानी मोटर साइकिल तुम्हारे लिए
तागी थी जिस धागे से रजाई
उनकी उम्र पूरी हुई
रुई भी खिसककर किनारे हुई
ठंडी रजाई में सिकुड़ता रहा
कि गर्मी तुझ तक पहुँचती रहे

जब भी जला चूल्हा
तेरी ही ख्वाहिशें पकीं
उसने खाया तो बस जीने के लिए
जीवन भर की जमा पूँजी
और कमाई नेकनीयती
अर्पित कर
तुझ को समाज में एक जगह दिलाई
पंख लगे और तू उड़ने लगा
ऊँचा उठा तो
ये न देखा
कि तेरे पैर उनके कन्धों पर हैं
उनके चाल की सीवन उधड गई
तेरी रफ़्तार बढती रही
सहारे को हाथ बढाया
तुमने लाठी पकड़ा दी
उनकी धुँधली आँखों से
ओझल हो गया
वो घोली खटिया पर लेटे
धागे से बँधी ऐनक सँभालते
तेरे लौटने की राह देखते रहे
अंतिम यात्रा तक
आँखों में अटका था
बस एक ही सपना
साबुत चप्पल, नई कमीज़ और एक साइकिल।