Saturday 16 April 2011

रिश्तों की वैतरणी


सूरज जब अपनी किरणों का लिहाफ फैला कर रात को सुला देता है तो हर शय  उम्मीद का मद्धिम गीत  गुनगुनाने लगती है ।प्रत्येक नया दिन  चुनौती,ख़ुशी आशा न जाने क्या क्या ले कर आता है  ।उसके लिए आज वह  दिन था जिसका  वह पिछले तीन सालों से  इंतजार कर रही थी .उसकी खिड़की के पास की डाली पर चिड़ियों  का एक झुण्ड न जाने क्या गुनगुना रहा था ।उसने चादर से मुँह निकाल  के देखा  -हवा में  हिलते पत्ते उसका अभिवादन कर रहे थे और इनके बीच  सुनहरी चिड़ियों का झुण्ड उसको जगाने के लिए  ,राग पर राग छेड़े जा रहा था । आज की सुबह कुछ खास थी ऐसा लग रहा  था की प्रकृति का हर  नज़ारा बस उसी के लिए जगा हो . हालाँकि उसको रात भर नींद नहीं आई थी । खुशियाँ भी कभी -कभी नींद को पलकों से दूर कर देती है .अधखुली  आँखों को जगा कर सुगन्धा  तैयार होने  के लिए बाथरूम में घुस गई .
            आज  विश्वविद्यालय उसको जल्दी पहुँचना था पर यहाँ पहुँचते -पहुँचते  देर हो ही गई थी .   सुगन्धा ने कहा-  "माँ तुम पिता जी के साथ आमंत्रित  मेहमानों की जगह पर बैठ जाओ .मै अन्दर जा कर  गाउन ले आऊँ". .आज पूरा विश्वविद्यालय कुछ खास अंदाज  में चहक रहा था .दीक्षांत समारोह सभी विद्यार्थियों के जीबन  महत्त्वपूर्ण दिन  होता है .सुगन्धा  ने देखा -जिस कमरे से गाउन  मिला था ,उसके सामने  बहुत भीड़ लगी थी ।सुगन्धा का नंबर आने में करीब २० मिनट लग गए .गाउन हाथ  में लेते ही उसको अजीब -सा अनुभव हो रहा था  । यही है वह जिसके लिए उसने बहुत मेहनत  की थी .रिश्तों की एक अजीब- सी वैतरणी पार की थी उसने ...........
अमेरिका के एयरपोर्ट पर जब वह  पहुँची ;तो उसको लगा -एक अलग सी दुनिया है ,कुछ सपनीली -सी , सब कुछ अलग बेगाने  चेहरे दूसरी भाषा ..ऊपर लगे निर्देशों को पढ़ती हुई वह बाहर  निकली तो एक अजनबी लड़की के हाथ में अपने नाम की तख्ती देख  उसी तरफ बढ़ ली .
माय नेम इस  एलेन्। आप कैसी हैं ?
इस अँगरेज़न  को हिंदी बालते देख बहुत आश्चर्य हुआ .मेरे ये भाव उस से छुपे न रहे .वह  बोली-" मेरी बहुत अच्छी दोस्त है नीलम ।उसने सिखाया  है। ज्यादा नहीं पर थोडा -थोडा बोल लेती हूँ।"
वह हिंदी कुछ अग्रेजी अंदाज़ में  बोल रही  थी ।मेरे लिए तो मानो उसकी बोली अमृत बूँद थी  ।ऐसा नहीं था की मुझे अंग्रेजी आती नहीं थी; पर यहाँ के  उच्चारण को समझने में  थोड़ी परेशानीहो रही थी..
एलेन ने कार में  सामान रखने में मदद की .एअरपोर्ट से घर तक पहुचने में एलेन ने मुझको अमेरिका और यूनीवर्सिटी   के बारे में बहुत कुछ बताया .
सुगन्धा तुम्हारे रहने के किये एक छोटे से घर का इंतजाम किया गया है ताकि तुम को अपना खाना बनाने में  आसानी हो .कुछ ग्रोसरी भी मैने लाकर रखी  है  ।"सुबह ११ बजे  तुमको लेने आऊँगी"-कहकर एलेन जाने लगी पर जाते-जाते उसने सुगंधा को  माइक्रोवेव का प्रयोग करना सिखा दिया बाकी का बाद में सिखाने का कह कर चली गई .
एलेन के जाने के बाद वह घर का जायजा लेने लगी ।एक कमरे के इस घर में  सुख -सुविधा का सब सामान उपलब्ध था  .बर्तन धोने की मशीन ,कपडे धोने की मशीन ,माइक्रोवेव ओवन सब कुछ था वह   एक एक चीज को छू कर देख रही थी .माइक्रोवेव के आलावा उसको कुछ भी चलाना नहीं आता था .अजीब मशीनरी -घर लगा उसको .कपडे बदल वह पलग  पर आ गई . इतना थकी थी की लेटते ही सो गई
  रात नीद करीब ३ बजे ही खुल गई तो यही है जेटलैक जिसके बारे में  एलन कल कह रही थी ।भारत और अमेरिका के बीच जो समय का अंतर  हैं उ;सका परिणाम है किसी तरह करवट बदल -बदल सूरज देव के निकलने का इंतजार करती रही ।जब प्रकाश ने अपने पंख फैलाये तो उसने भी बिस्तर छोड़ दिया  .एलेन उसको माइक्रोवेव का प्रयोग  करना सिखा गई थी उसने अपने लिए चाय बनाई  और प्याला ले कर  बालकनी में आ गई ।अमेरिका ,जिसके बारे में कभी उसने सोचा भर था कभी यहाँ आ सकेगी  , ये मालूम न था  ।सुगन्धा बार बार खुद को यकीन दिला रही थी  की वह वास्तव में यहाँ है .धुला- धुला -सा यह शहर बहुत खुशनुमा माहौल बिखेर रहा था पर फिर भी माँ की बहुत याद आरही थी कभी पहले वह  माँ से अलग नहीं रही थी.यहाँ आने का पता चलने पर माँ कितना परेशान  थीं
 ................................."तू कैसे जाएगी ? भारत में  ही कहीं होता तो ठीक पर सात समुन्द्र पार  कैसे भेज दूँ  .न कोई जान न पहचान ".माँ कपडे फैलाती  जा रही थी और बोलती जा रही थीं ."
.माँ ये अवसर सब को नहीं मिलता अमेरिका मे एशियन महिलाओं की मनः  स्थिति पर शोध करने के लिए पूरे भारत से मुझे चुना गया है  .ये एक्सचेंज़ प्रोग्राम के अंतर्गत  किया गया है  ।माँ मेरे लिए वहां पूरा इंतजाम होगा॥तुम परेशान मत हो ".
"परेशान कैसे न होऊं बेटा! अनजान देश का मामला है ।जब तुम्हारे बच्चे होंगे ,तब तुमको पता चलेगा .माँ क्यों परेशान होती है ".कहकर माँ बाल्टी उठा कर छत से नीचे जाने लगी मै भी उनके पीछे चल दी-"माँ तुम यदि इतना परेशान होगी तो मै कैसे जा पाऊँगी ? माँ! मेरी अच्छी माँ !!कह कर वह माँ से लिपट गई ."
"गिराएगी क्या मुझे सीढियों पर ..माँ ने कस के रेलिंग पकड़ ली -सुन  तुम मुझे पना पूरा कार्यक्रम बता दो । पता तो रहे बेटी कहाँ जाने वाली है ".
"थैंक्यू माँ थैंक्यू" .कहती वह सीढियों से नीचे भागी .ख़ुशी के मारे पैर ज़मीन  पर नहीं पड़ रहे थे सोच की उलझनों में चाय कब ख़त्म हो गई ,उसको पता ही न चला.प्याला रख कर वह अपना सामान खोलने  लगी ।कपडे निकाकर अलमारी में लगा दिए . उफ़ ! माँ भी न उसके मना  करने के बाद भी अचार मठियाँ, मिठाई मसाले सब रख दिये थे । कस्टम वालो ने  देखा नहीं वर्ना बड़ी मुसीबत हो जाती.उसने घडी देखी  साढ़े दस बज रहे थे  ।ओ माँ !देर हो गई एलेन के आने से पहले तैयार होना था. .वह जल्दी से बाथरूम में घुस गई .जब तक वह तैयार  होकर बाहर आई ११ बज चुके थे .तभी उसने दरवाजे पर नॉक सुनी .देखा ,तो एलेन थी । समय की इतनी पाबंद  थी एलेन .ये उसका पहला  सबक था शायद ,कि समय की यहाँ बहुत कीमत है ।सुगन्धा ने मन में सोचा .
""क्या तुम तैयार हो ?चलें "
"हाँ चलो" ?
यूनिवर्सिटी पहुँचते-पहुँचते  २० मिनट लग गए  ।कार  से उतर कर  वह यहाँ  के माहौल को देख रही थी .सभी अपने में  व्यस्त चले जा रहे थे। हाँ सामने आते व्यक्ति को हेल्लो कहना नहीं भूलते थे .एलेन के साथ घूमते लोगों से मिलते देर हो गई थी .यहाँ की यूनिवर्सिटी  का माहौल कितना स्वतंत्र था॥एक अजीब तरह की स्वतंत्रता थी ,यहाँ के माहौल में ।कपड़ों की स्वतंत्रता ,विचारों की स्वतंत्रता ....हर तरह की आज़ादी .एलेन ने ही उसको घर छोड़ा और बाहर से ही चली गई
  कपडे बदल कर उसने जर्नल  निकाला जो उसको एडवाइज़र मिस्टर एडम ने  दिया था .    आज वह इतने लोगो से मिली है ,पर  सिर्फ एक नाम है ;जो उसको अभी याद है- मिस्टर एडम ।इनका व्यक्तिव इतना  चुम्बकीय था कि वह न चाह  कर भी उन्ही के बारे में सोच रही थी .सफ़ेद बालों और हल्की झुर्रियों वाला उनका चेहरा अनुभव की कहानी कहता लगता था  । पहले ही दिन ,सर कहने पर एडम ने उसको मना कर दिया था -"केवल एडम कहो "-बहुत गंभीर आवाज में कहा  था  .सुगन्धा  को कुछ जर्नल और रिसर्च पेपर दे कर हफ्ते बाद मीटिंग  का कहकर विदा ली थी एडम ने .जर्नल के पन्ने  पलटते हुए सुगन्धा बस एडम की ही बातें सोच  रही थी
हफ्ते भर के बाद एडम से मीटिंग में  बहुत सी बातें हुई ।महिलाओं की स्थिति उनके विचार उनकी  अभिलाषाएँ  संवेदनाएँ  सब कुछ डिस्कस किया हमने ..मीटिंग  खत्म होने के  बाद एडम ने कहा में वैसे तो तुमको बहुत  सी महिलाओं से मिलवाऊँगा  जिनसे मिलकर हो सकता है तुम्हारी बहुत सी धारणाएँ   टूटे और कुछ नई बनें । उनकी मनः स्थिति तुमको समझनी होगी और फिर  लिखना होगा  । आज  हम एक देसी महिला से मिलने जा रहे हैं .बहुत कड़ी सुरक्षा के बाद वह  उस महिला के पास पहुँचे .एडम ने मुझसे कहा "तुम इस से बात करो । मै ऑफ़िसर के पास हूँ इस लेडी का नाम लिंच  है ".भाषा की परेशानी न हो इस वजह से सुगन्धा  को  एक इन्टरप्रेटर दे दिया गया था .सुगंधा ने जैसे ही उसके सेल में कदम रखा ,उसने सुगन्धा के  पूछने से पहले ही कहना शुरू कर दिया ."हाँ मेरे लिए पैसा सब कुछ है। मैने उसको मारा .मुझे कोई  अफ़सोस नही है  ।वह मेरे पैसे  उस चुडैल को देना  चाहता था   .मैने मना  किया तो नहीं माना ।मैने इनको सर पर जोर से हिट किया वह वहीँ मर गया । मैने ही पुलिस को काल किया और आत्मसमर्पण  कर दिया  ."जी मै  जानती हूँ आप की गलती नहीं थी आप आराम से मुझको बताइए ""सुगन्धा ने उसके हाथों को पकड़ते हुए कहा  कहा "मेरा जीवन बहुत अच्छा चल रहा था यहंग और मेरे बीच कोई तकरार नहीं थी पर वह मेरे जीवन में  ग्रहण बन कर आई  ।मै चुपचाप सब सहती रही .यहंग ने बाजार से बहुत क़र्ज़ उठाया उस चुडैल के लिए ,मै चुप रही .पर वह मेरे पैसे भी उसको देना चाहता था .सभी को लगता है कि मै सिर्फ पैसा चाहती पर यह सच नहीं है ।मै उसको बर्बादी से बचाना चाहती थी॥कई बार तो मैने उसको समझाया भी पर जानती हो उसने क्या किया ;उस चुडैल को घर ले आया और और  मेरे ही सामने ...........................मैने बहुत कुछ सहा है  उस दिन जब वह मेरा ए टी ऍम कार्ड लेकर जाने लगा । मैने उसको रोकने की बहुत कोशिश की  पर उसने मुझे धक्का दे दिया ॥मेरे सर में  चोट  लगा । खून बहने लगा .और वह औरत बेहयाई से हँसती  रही ..मुझे गुस्सा आया मैने एक फूलदान यहंग पर फेंका । मै उसको मारना नहीं  चाहती थी पर ............"'वह  हिचकियों से रोने  लगी । सुगन्धा ने लिंच के कन्धे पर हाथ रखा- तुमने सच में बहुत सहा है  ।
इन्टरप्रेटर को धन्यवाद देकर सुगन्धा ऑफिस में  आगई.
मन उदास और ऑंखें नम ..एडम ने कहा कि ख घर  तक  छोड़ देगा, पर सुगन्धा अकेले रहना चाहती थी . उसने बस से जाने का निश्चय  किया .उस ने देखा बस रुक गई थी  ।यह उसका ही स्टॉप था .रास्ता कब बीत गया ,पता ही ना चला .    'एक महिला ही दूसरी की दुश्मन होती है'- माँ ये अक्सर कहा करती थी आज उसने देख भी लिया था  ।अगले २४ घटे सुगन्धा को किसी से मिलने का मन नहीं हुआ .वह लिंच के दर्द को शब्दों का मरहम लगा लिखती रही .
समय बीतता रहा और वह  बहुत सी महिलाओं से मिलती रही .रिश्तों के कई चित्र बनते बिगड़ते रहे .ये देख जो उसको कभी बहुत शांत और सुंदर लग रह था .आज वह  इसकी शांति में  शोर को सुन रही थी .महिलाओं की स्थिति अच्छी थी तो बुरी भी कम नहीं थी .मेहमा ने अपनी बेटी को बचाने के किये उस दरिन्दे का खून किया .अकेली महिला का यहाँ रहना शायद उतना कठिन न हो जितना अपने देश में हैं  पर आसान भी न था ,.
आज उसकी  रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करते हुए एडम ने कहा था बहुत खूब सुगन्धा तुमने इन महिलाओं की  मनः स्थिति का बहुत सटीक विश्लेषण किया है .सभी उसके काम से बहुत खुश थे ।
एलेन ने कहा -सुगन्धा मै आऊँगी  कल तुमको एरपोर्ट छोड़ने
थैंक्स एलेन, तो कल मिलते हैं  ।अपनी रिपोर्ट दोनों हाथों से पकडे सुगन्धा सभी से विदा लेकर घर आने के लिए बस में बैठी .अपनी रिर्पोट को गोद में रख सुगन्धा सोच रही थी- इस शब्दों को लिखने में ,उन्हें सँजोने में उसने पूरा एक जीवन जिया है .
उस दिन  उस आखिरी महिला से मिलकर  जब वह  घर पहुँची थी  तो उसको बहुत देर हो गई थी  .उसको लग  रहा था की महा प्रलय अब होने को है .दुनिया में अच्छा कहने को कुछ बचा   ही नहीं  है .माँ.... माँ भी ऐसी हो सकती है .माँ के बारे में अपनी सारी अच्छी सोचों को आज उसने  कफ़न पहना दिया था .उसका मन कर रहा था की रात को ओढ़कर खुद को अपनी  सोचों से छुपा ले .
 .सुबह जब वह  घर से निकली थी तो उसका मन प्रसन्नता के झूले में झूल रहा था और थोडा डरा  हुआ भी था न जाने आज उसकी कौन सी धारणा टूटने वाली है और उनकी  किरचों से उसकी किस सोच का खून होने को है  ।खुश  इसलिए थी कि यह उसके अनुसन्धान का अंतिम चरण था .कुछ ही दिनों में वह  घर के लिए उडान भरने वाली थी .
दो घंटे की यात्रा करके जब सुगंधा और एडम   जेल तक पहुँचे तो वहाँ का अधिकारी उनका  इंतजार कर रहा था  .आज वह   ज़ेबा से मिलने वाले थे । ऑफिसर ने अटेंडेंट मार्गेट को उन्हें  ज़ेबा तक पहुँचाने को कहा .
आप ज़ेबा से मिलने आईं है .पर आपको एक बात कहना चाहती हूँ - ज़ेबा बात करने की स्थिति में नहीं है  ।वह  अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है- मार्गेट ने उनसे  कहा .
आखिर ऐसा क्या हुआ इसके साथ .
शादी के पाँच साल बाद इसके बेटी हुई  ये पति- पत्नी बहुत खुश थे .पर जब वह  ३ साल की हुई तो इनको पता चला कि वह  मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है .बच्ची का शरीर बढ़ता रहा था,पर न वह  चल सकतीं थी ,न बोल सकती थी और न वह  अपने आप  खा सकती थी .इस वेदना से वह  गुजर ही रहे थे कि ज़ेबा पुनः गर्भवती हुई .इस बार इन्होने सभी सावधानियाँ बरतीं सभी जाँच कराई .इस बार बेटा हुआ जो समय से पहले हो गया पर कुछ ही महीनो में पता चला कि वह  भी मानसिक विकलांग है .ज़ेबा एकदम मुरझा गई .बेटी अब ९ साल की हो चुकी थी और बेटा ४ साल का .इतने सालों में वह  साये की तरह अपने बच्चों के पास रहती न कहीं जाती न कोई इसके घर आता .समाज और दुनिया से ज़ेबा ने खुद को अलग कर लिया था .आप सोच रही होंगी -मैं इतना कैसे जानती हूँ ? मेरा घर ज़ेबा के घर के पास है .ज़ेबा और हामिद के साथ हमारे  अच्छे सम्बन्ध थे .उस दिन में ऑफिस में बैठी कुछ रिकॉर्ड ठीक कर रही थी ।फ़ोन बजा॥मेरे साथी जॉर्ज ने फ़ोन उठाया .दूसरी तरफ से आवाज आई -मैने उनको मार दिया .मैने उनको मार दिया 
किसको मार दिया
बच्चों को
क्यों ?
 आई वान्ट  नॉर्मल चाइल्ड आई वान्ट  नॉर्मल चाइल्ड
कैसे मार दिया
मैने उनको   ब्लीच पिलाने की कोशिश की पर वह  पी ही नहीं रहे थे मैने बहुत कोशिश की .उनको बाँधकर  भी पिलाना चाहा पर वे  नहीं पी रहे थे  । मैने तार से उनका गला घोंट दिया .बड़ी मुश्किल से मरे दोनों .
दोनों कितने बड़े थे
लड़की ९ साल की और लड़का ४ साल का  आई वान्ट  नॉर्मल चाइल्ड .
अपना पता बताइए .
ज़ेबा
३४ अल्वा रोड
सनसेट टाउन
मै एकदम घबरा गई ।उफ़ ....ज़ेबा ने ये क्या कर दिया  !हम भागकर  उसके घर पहुँचे .दोनों बच्चे बेड पर लेटे थे और ज़ेबा बस यही कह रही थी आई वान्ट  नॉर्मल चाइल्ड
तब से बस यही कहती है .देखिये ये हैं ज़ेबा .एडम और सुगन्धा अवाक् रह गए ज़ेबा के हाथ में उसके बच्चों  के कपडे थे  ।एक कोने में बैठी वह   बस यही कह रही थी आई वान्ट  नॉर्मल चाइल्ड .इसके बच्चो को इसके न रहने के बाद कौन देखेगा । शायद यही सोचा होगा .काश ! इससे बात हो पाती .
इस बार विशिष्ठ कार्य के लिए स्वर्ण पदक दिया जाता है   सुगन्धा पाण्डेय  ..को .....अपना नाम सुनकर वह  खयालो के बादलों से बाहर निकली तालियों की  ध्वनि से पूरा ऑडिटोरियम  गूँज  रहा था.डिग्री और स्वर्ण पदक ग्रहण करते हुए उसने ऊपर देखा ज़ेबा,लिंच ,मेहमा के चेहरे साफ दिख रहे थे और उनके आसपास बहुत से चेहरे गडमड  होरहे थे .वेदना के एक किनारे पर वह  सब खड़ी थी और दूसरे  पर .............

-0-

No comments:

Post a Comment