भर ख़ुशियों से चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा
सूरज ने जब डाले पर्दे
धूप न जाने कहाँ चली
बाँधे गाँठ
हवाओं के सँग
मौसम महके गली-गली
बदली ऋतु तो
कण-कण में सुख
हौले-हौले चहक उठा
मन मेरा भी महक उठा
किरण खिली गदराए पेड़
वन में खग-मृग आतुर विचरे
आँचल पर
आकाशी तारे
ज़रदोज़ी से निखरे-निखरे
कुसमित पवन
सजाए दीपक
नभ में चंदा दमक उठा
मन मेरा भी महक उठा
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