Friday 27 January 2012

बादलों की धुंध में

बादलों की धुंध में
सूरज मुस्काये
खोल किवाड़ हौले  से
वो   धरा पर आये
गुनगुनी धूप दे
स्वेटर सा आराम
अब तो भैया मस्ती में  हो
अपने सारे काम
बांध  गठरिया आलस भागे
ट्रेन -टिकट कटाए
 बादलों की धुंध में
सूरज मुस्काये 

 पतंगों  के पेंच लड़े
और लड़े नैन
दिन में जोश भरा रहा
खामोश रही रैन
सुनहरी धूप  में
मन- चिड़िया  नहाये
 बादलों की धुंध में
सूरज मुस्काये

अधमुंदी आँखें खोले
सोया सोया गाँव  
किरणें द्वार द्वार पर डोले
देखो नंगे पाँव
मधुर मधुर मुस्काती अम्मा
गुड का पाग पकाए
बादलों की धुंध में
सूरज मुस्काये