Sunday 17 April 2011

मेरा वो मतलब नहीं था- अनुपम खेर

             

"जितना अधिक हम दूसरों के लिए दयालु (सहानुभूतिशील) होते है उतनी ही अधिक ख़ुशी हम स्वयं को प्रदान करते हैं ". ऐसे महान विचार रखने वाले प्रथम संस्था के गुडविल एम्बेसडर पद्मश्री अनुपम खेर अच्छे कलाकार,सहृदय और विनम्र इन्सान है. ऊँचाइयों को छूने के बाद भी इनके पावं धरातल से जुदा नहीं हुए हैं. अपनी हर फिल्म में  उन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है और लोगो का मनोरंजन किया, फिर चाहे सारांश का बूढा पिता हो, डैडी का शराबी, सम्वेदनशील पिता या फिर खोसला का घोसला का चरित्र हो.
भारत में अंडर प्रिविलेज  बच्चो की सहायता के लिए धन एकत्र करने के वास्ते अनुपन जी प्रथम की तरफ से अमेरिका की यात्रा पर है इसी दौरान इनसे बात करने का मौका मिला- 

 
आप बहुत संघर्ष और मेहनत कर के यहाँ तक पहुचे है. संधर्ष के समय की क्या कोई ऐसी बात है जो आज तक आप के साथ है? 
मुझे अपना पूरा जीवन याद है, मै जीवन के हर पल को जीता हूँ. इसलिए किसी खास घटना को हमेशा याद नहीं करता मै सब कुछ अपने साथ अपनी यादों में रखता हूँ.

आपने एक बार कहा था कि पिता जी ने मेरे अंदर से असफलता का डर निकल दिया-
जी हां हुआ यूँ, कि उस समय हम शिमला में रहते थे. हमारे स्कूल में ये होता था कि १० वीं का इम्तिहान देकर हम को क्लास ११ मै प्रमोट कर दिया जाता था, फिर जब २ महीने बाद क्लास १० का नतीजा आता था तो यदि आप फेल हो गए हों तो आप को वापस १० वी में भेज दिया जाता था. तो एक दिन पिता जी आये उन्होंने कहा कि आज स्कूल की छुट्टी करो फिर वो मुझे ले कर अल्फ़ा रेस्टोरेंट गए. इस रेस्टोरेंट में हम ५ महीने में एक बार जाया करते थे और अभी कुछ दिन पहले ही हम सभी यहाँ आये थे. मै सोचने लगा पिताजी आज यहाँ क्यों लाये है, बस चाय ही पिलायेंगे पर पिता जी ने कहा कुछ खाना है मैने कहा हाँ फिर मैने पिता जी से पूछा की क्या बात है आप मुझको यहाँ क्यों लायें है, मेरी खातिर क्यों कर रहे हैं. फिर पिता जी ने बताया कि तुम फेल हो गए हो तो मैने कहा कि तब आप इतनी ख़ुशी क्यों मना रहें हैं तो बोले की मै तुम्हारी असफलता को सलिब्रेट कर रहा हूँ ताकि जीवन में  कभी भी तुम को असफलता से डर न लगे.

आप को जब अपनी  पहली फिल्म का  पारिश्रमिक मिला था तो वो अनुभव कैसा था ?
सारांश के लिए तो कुल १०,००० हजार रुपये मिले थे पर मेरी दूसरी फिल्म जिसका नाम  जवानी था के लिए मुझे १०,००० साइनिंग अमाउंट मिला था. रोमेश बहल जी ने दिए थे और वो ख़त्म  ही नहीं हो रहे थे. मुझे नहीं लगता जितना मैने उन १०,००० रुपयों से जितना आनंद उठाया किसी और पैसे से किया होगा.

"मैने गाँधी को नहीं मारा " ये फ़िल्मी दुनिया मे एक मील  का पत्थर है, इस फिल्म को बनाने का विचार कैसे आया ?

 ये कहानी मुझे
जाहनू बरुआ  सुनाने आये थे, मुझे कहानी में बहुत दम लगा. मुझे लगा कि ये फिल्म बनानी चाहिए. इस फिल्म को पहले एन ऍफ़ डी सी बना रही थी पर उसने अन्तिम समय पर मना कर दिया. फिर मैने यश राज जी को अपना प्रोजेक्ट दिया तो वो सहमत हो गए. मैने पहले कभी अल्ज़िमर्स, टेमंशिया पर कोई फिल्म नहीं की थी. मुझे ख़ुशी है की ये अवसर मुझे मिला. इसके अलावा गाँधी जी के विचार उनकी  दार्शनिकता को एक अलग ढंग से दिखाया गया है. मै ऐसा चाहता था कि उनके विचारो को अच्छे तरीके से दिखाया जाये.

आप ट्वीटर पर बहुत दार्शनिक बातें करते हैं ?
मै जो कुछ भी लिखता हूँ वो जीवन का निचोड़ है, सच है और हकीकत के बहुत करीब है.

आपने  लिखा है " दिमाग एक पेराशूट की तरह है ये तभी काम करता है जब खुलता है"

हाँ ठीक है, यदि दिमाग बंद होगा तो वो कुछ सोच नहीं पायेगा न काम कर पायेगा. अपने विकल्प खुले रखने चाहिए तभी आप तरक्की कर सकते हैं .

आपने ५ सितम्बर को कहा था कि आप एक्टर  से ज्यादा अच्छे टीचर है ऐसा क्यों ?

पढाना अपने आप में एक बहुत ही अच्छा अनुभव है, जब आप पढ़ाते है तो बहुत ध्यान देते हैं. अपने जीवन में जो कुछ अनुभव होता है उस को  सिखाते हैं. जब आप पढ़ाते है तो बहुत कुछ सीखते भी हैं,पढ़ाने से आप को क्या मालूम है, क्या नहीं उसका अहसास भी हो जाता है. अभिनय एक आयामी है पर इस के रूप अलग-अलग है,  जबकि टीचिग बहु-आयामी होती है.
 
आपने  हॉलीवुड की फिल्मो में काम किया और  बॉलीवुड की फिल्मो में भी काम किया है. क्या ऐसी चीज है जो आप चाहते हैं की हॉलीवुड से बॉलीवुड में आ जाये और हिदी फिल्मों से हॉलीवुड में आ जाये?
हिन्दी फिल्मों में जो गर्मजोशी है, आपस में लगाव है और हॉलीवुड में जो व्यावसायिकता और अनुशासन है, यदि इन चीजों का आदान प्रदान हो जाये तो बहुत अच्छा होगा.

आप का एक नाटक "कुछ भी हो सकता है" बहुत सफल रहा है-

जी हाँ, इस प्ले से सभी अपने आप को जोड़ सकते हैं. उनको ये भी लगता है कि जीवन में कुछ भी किया जा सकता है. इस नाटक का दर्शन यही है कि "कुछ भी हो सकता है".  इस प्ले को देख कर लोगों को प्रोत्साहन मिलता है और सम्भावना भी नजर आती है कि कुछ भी हो सकता है.

इस प्ले पर आधारित पेंटिग की एक प्रदर्शनी भी हुई है, ये एक नया विचार था?

क्या हुआ कि गीता दास ने मेरा प्ले करीब १०-१२ बार देखा फिर उन्होंने मुझसे कहा कि यदि आप की अनुमति हो तो मै इस नाटक  पर पेंटिग  बनाना चाहती हूँ, मैने उनसे  कहा की आप पहले मुझे एक दो  सेम्पल दिखा दीजिये. जब  मैने उनकी  पेंटिग को देखा तो मुझे लगा की इन्होने प्ले की आत्मा को समझा है. उन्होंने करीब १६-१७ पेंटिंग बनायीं, फिर हमने प्रदर्शनी लगाई जो बहुत अच्छी रही. बहुत से लोग आये थे और सभी ने बहुत पसंद किया. 

                                        

आप क्या अभी कोई नया प्ले ले कर आने वाले हैं ?

जी है मै अभी किरन जी के साथ एक नया  प्ले कर रहा हूँ. स्टार प्रमोशन के बैनर तले इस प्ले का प्रारंभ हियुस्टन, अमेरिका से होगा. स्टार प्रमोशन के अध्यक्ष राजेंद्र जी मेरे अच्छे मित्र हैं. मेरे पहले दो प्ले "सालगिरह" और "कुछ भी हो सकता है" भी इन्होने ही किये थे. इस प्ले का नाम है "मेरा वो मतलब नहीं था". इस प्ले में  मै, किरन और राकेश बेदी अभिनय करेंगे. इस प्ले को राकेश बेदी जी ने लिखा है और वही इस को निर्देशित भी कर रहे है. मै इस नाटक को लेके बहुत उत्साहित हूँ .

इस नाटक के बारे में  कुछ और बताइए-

ये नाटक ऐसे दो लोगों की कहानी है जो बहुत सालो बाद मिलते हैं. अपनी प्रेम कहानी, अपने जीवन के उतार चढाव और यात्रा को हास्य और इमोशन के द्वारा एक दूसरे से बांटते हैं. ये  बहुत ही मनोरंजक प्ले है

आप ये प्ले कहाँ कहाँ करने वाले हैं ?
मै ये प्ले अमेरिका और कनाडा में करने वाला हूँ.

आपकी  आने वाली फिल्म कौन कौन सी हैं ?
"जीन" फरहान अख्तर के  कम्पनी की  फिल्म है जिसको अभित्य देओल  निर्देशित कर रहे हैं ,"यमला पगला दीवाना "जिसमे धरम जी, जेकी, सनी और बौबी देओल है, "हवाई दादा" इस फिल्म को मैने प्रोडूस किया है.
 

"हवाई दादा" की स्टोरी क्या है ?
"हवाई दादा" एक छोटे शहर के आदमी की कहानी है जो कभी हवाई जहाज पर नहीं बैठा है पर कहता है कि मैने जहाज से यात्रा की है. फिर कैसे उसकी ९ साल की पोती उनको जहाज का अनुभव देती है, क्या है  कि हिंदुस्तान में  बहुत सारे लोग हैं जो ऐसा करते है. जो नहीं किया वो भी कहते हैं.

इस फिल्म में आप के साथ और कौन कौन से कलाकार हैं
?
मै हूँ, और तनूजा जी है जिन्होंने मेरी पत्नी का रोल किया है और गार्गी ने मेरी पोती का रोल किया है.

आपने हर तरह की भूमिकाये की हैं, क्या कोई ऐसी भूमिका है जो अभी भी आप करना चाहते हैं ?

मै एक कलाकार हूँ, मै हर तरह की भूमिकाएं करना चाहता हूँ. ये सवाल आप यदि ४० साल बाद भी पूछेंगी तो मै कहूँगा कि अभी भी बहुत तरह की  भूमिकाएं है, जो मै करना चाहता हूँ.

3 comments:

  1. बहुत सार्थक और सही मायनों मे साक्षात्कार विधा का उत्कृष्ट नमूना है रचना जी । बहुत बधाई !

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  2. रोचक साक्षात्कार...

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