Friday 23 January 2015

कदंब  का पेड़ था
यमुना के तीरे
आती थी एक डाल उसकी
अंगना धीरे धीरे
बिटिया ता पर झुला झूले
मन में कुसुम फूले
बाबा खटिया पर बैठे
गुड गुड हुका पीले
बाहर कदंब  की छाँव तले
पन्च  घाव सभी के सीले
चली कुछ एसी शहरी  हवा
ख़ुशी का हर पल खो गया  
बाबा का राज गया
बेटों ने बागडोर संभाली
निवाला बटा खेत बटा
अलग होगई थाली
कदंब  में गुण हैं कितने
जब जान गई दुनिया सारी
फूल निचोड़े,पत्ती तोडी
छाल छील डाली
उड़ गए पंछी जीवन रोया
घोसला होगया खाली
हुक्का ठंडा होगया
खटिया सूनी सारी
बाहर कदंब  सूखता गया
आँगन में घर का माली  

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