Friday 23 January 2015

पल्लवित कदंब  की छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में
देख कदंब  के भाग्य सखी
होए जलन हर हाल सखी
काश मै कदम बन जाऊँ
प्रति पल उनका सानिध्य पाऊँ
हो इच्छा पूर्ति कदंब  की छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में 

ग्वालों संग कान्हा खेले
डाली डाली हर्षित डोले
बचपन की मासूम बातें
माखन चोरी की घातें
रचे रचयिता खेल कदंब की छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में

मुरली मधुर मनोहर बाजे
राधा के मन मंदिर साजे
छोड़ कामकाज गोपिया भागे
सुध बुध खोएं कृष्ण के आगे
बैठी रहीं कदंब  की छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में

हरित पात लल्ला छुप जावे
माता  यशोदा को खिझावे
ग्वाल बाल सबसे पूछे कोऊ नहीं बतावे
ठाढी क्रोधित मैया कदंब को छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में

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