Friday 23 January 2015


बसंत ऋतू आई
ठण्ड ने जो समेटी चादर
रस से भर गई
घरती की गागर
फूलों ने  शौल हटाया
सु गन्ध  का
झोका आया
मौसम ने ली झूम के अंगड़ाई
बसंत ऋतू आई

सूरज ने लिहाफ से झाँका 
अम्बर बोला
बाहर आजा
डरती राहों को उजाला मिला
झोले में धर  कोहरा
शीत घर की राह चला
सुनके गुनगुनी धूप मुस्काई
बसंत ऋतू आई

धरा करने लगी श्रृंगार
गले डाल
बसन्ती हार
मुख पर गुलाबी फूल खिले
नभ साजन से
 कजरारे नैन मिले
पीली चूनर जो हवा ने सरकाई
बसंत ऋतू आई

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