Monday 24 November 2014

मन अँधेरा
दिए जलने से क्या
मिट जायेगा

दब गयी थी
पटाखों के शोर में
चीख उसकी

दीप जलाओ
पडोसी के चौखट
बाँटो खुशियाँ

ज्ञान का डीप
हर आँगन चले
इस दीवाली

मन हो साफ
घर के साथ साथ
इस दिवाली

हवा न रोये
धुंए के जहर से
इस दिवाली

धरा लजाये
दुल्हन सी सजे के
घूँघट ओढ़े

बम का शोर
बंद कर के कान
धरती बैठी

जला आनर
अम्बर  खिड़की से
झांके है चाँद
१०
सभी बुलाएँ
लक्ष्मी जाएँ किधर
सोच में पड़ी


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