Wednesday 21 May 2014





मै कभी क़िसी को दुखी नही देख सकता हूँ:-सर्वेश अस्थाना


            सर्वेश अस्थाना जी अच्छे हास्य कवि, संचालक, गीतकार,और शायर तो हैं ही साथ ही इनकी निराश्रित बच्चों की मदद का एकमात्र लक्ष्य इनको बहुत बहुत अच्छा इंसान बना देता है। पन्द्रह वर्ष पूर्व 'सर्च फाउण्डेशन' की स्थापना  कर आप निराश्रित एवं जरूररतमंद बच्चों के उत्थान एवं विकास के लिए तथा अवधी के विकास के लिये समर्पित हैं।अभी सर्वेश जी  किलकारी नाम से एक अभियान चला रहे हैं जिसमे एक व्यक्ति एक बच्चे के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी लेगा और इस तरह अनेक बच्चों को स्वास्थ्य की सुरक्षा मिल सकती  हैं। श्री सर्वेश अस्थाना जी पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की ओरसे अमेरिका की साहित्यिक-यात्रा पर थे l इसी दौरान मुझे इस सहृदय और विनम्र कवि से बात करने का मौका मिला. गौरतलब है की अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की स्थापना सन् १९८० में डॉ. कुँवर चन्द्र प्रकाश सिंह ने की थी; तब से आजतक लोग आते गए और कारवाँ बनता चला गया। कवि सम्मेलनों की मशाल डॉ. सुधा ओम ढींगरा, डॉ. नन्दलाल सिंह और श्री अलोक मिश्रा जी के हाथों में है। १९८० से ये समिति अमेरिका में हिन्दी के प्रचार- प्रसार का कार्य कर रही है।
आपका रुझान कविता की तरफ कैसे हुआ ?
मेरे घर में साहित्य का मौहौल था। मेरे पिता जी अवधी के बड़े कवि थे मै चार भाई हूँ lबड़े दोनों भाई बहुत अच्छे कवि हैं तीसरे भाई जीवन बीमा निगम की पत्रिका के संपादक है। तो कहने का मतलब की कविता परंपरा में मिली है।

आपके पास बहुत सी डिग्रियां है क्या कारण  है ?
मुझे पढ़ना बहुत पसंद ही है। मै आज भी सोने से पहले पढता हूँ। बस पढ़ने के शौक ने डिग्रियां दिला दीं l

आपने १९८७ से मच पर कविता पाठ  करना प्रारम्भ किया। पत्रिकाओं में छपी कविता और मंच की कविता में क्या कोई अंतर है ?
कविता लिखना ह्रदय की आवाज है और प्रसिद्धि पाना व्यक्ति की लालसा है l ह्रदय की आवाज कविता लिखवाती है और पसिद्धि पाने की लालसा हमको मंच पर लाती  है। मंच पर आने से सम्मान मिलता है और सम्मान के साथ पैसा भी मिलता है। जब प्रसिद्धि पैसा पहचान प्रचार प्रसार  यानी की ५  पा एक साथ मिल जाते हैं तो मंच  हमारे लिए बहुत आकर्षक हो जाता है। मंच पर जो हम सुनते हैं यदि वही हम लिखेंगे तो हम अच्छे कवि नहीं बन पाएंगे। हमारा लिखना अलग होता है और मंच पर सुनना अलग होता है। क्यों की मंच पर सुनने वाले व्यक्ति से आपके भाव मेल खाएं ये जरुरी नहीं है अतः उनके अनुरूप कविता सुनानी होती है।

आपने टीवी, रेडियो  और मंच  तीनो जगह पर कविता पाठ किया है आपकी नजर में लोगों तक पहुचने का अच्छा माध्यम क्या है ?
तीनो माध्यम ही बहुत अच्छे हैं पर जब आप सामने दिखते हैं तो लोगों पर अधिक प्रभाव पड़ता है प्रभाव ऊपरी सतह पर होता है भीतर परिवर्तन होता है। और इसी के कारण लोग हम कवियों को सम्मान देते हैं। और ये ही हमारी पूंजी है। यहाँ ही हमको लगता है की ये शब्दों का सम्मान है।

आपने टी वी  सीरियल लिखे हैं और बृतचित्र भी बनाये है उसके बारे में कुछ बताइये
जी हाँ मेने बुद्धा सीरियल के लिए संवाद लिखे हैं और मैने रामकली ,हीरो कौन नमक हास्य सीरियल लिखे हैंजो दूरदर्शन पर आये । मैने  कैफ़ी आज़मी जी पर कैफ़ी की कैफियत और नीरज जी पर कारवां गीतों का नमक बृतचित्र बनाये हैं इस समय मै अवधी भाषा के कवियों पर बृतचित्र बना रहा हूँ।

आपने बहुत से अख़बारों के लिए कॉलम भी लिखे हैं आपके अनुसार सबसे ज्यादा प्रचलित कौन सा कॉलम रहा है।
मेरा जनसत्ता का नक्कार खाना बहुत ही प्रचलित रहा है। हिदुस्तान हिंदिस्तान वालों ने नक्कार खाना लिखवाना शुरू किया। स्वतंत्र भारत का कांव कांव भी बहुत पसंद किया गया।  अनकही स्वतन्त्र भारत में लिखता था।

आपका बाल गीत संग्रह है ग़ज़ल है गीत है और हास्य व्यंग भी है। काव्य की ये अलग अलग विधा है तो इन सभी विधाओं में अच्छा लिखना कैसे संभव हुआ ?
रचना जी ये बहुत ही अच्छा प्रश्न है अभी तक मेरे पूरे जीवन में ये दूसरी बार किसी ने पूछा है। व्यक्ति एक साथ कई जीवन जी रहा होता है उसके अंदर एक बच्चा  होता है ,एक संवेदनशील व्यक्ति  होता है. दयालु भी होता है तो व्यक्ति के ये सभी पहलू कभी न कभी जोर मारते  हैं। मै बच्चों के लिए बहुत काम करता हूँ अतः बाल कवितायेँ लिखता हूँ .कवि के अंदर जो संवेदनाएं है उसके  कारण वो गीत लिखता है। संसार में को विसंगतियां हैं उनके कारन व्यंग निकलता है और जो विकृतियां दिखाई देती हैं उस पर हास्य लिखा जाता है अतःमै सभी कुछ लिखता हूँ एक बात और ह्रदय गीतकार है मस्तिष्क व्यंगकार है ,अभिलाषाएं बाल कवि बना देती हैं और संवेदनाएं शायर बना देती हैं।

आपने बहुत सी संस्थाएं खोली हैl
मै जीवन को पूरा जीना चाहता हूँ जिसमे की प्राप्ति है ,नाम है ,दूसरों को देना भी है ,सेवा भी है। सर्च फाउंडेशन नाम की संस्था बनायीं जिसमे बच्चों के लिए काम करना शुरू किया और अभी तक बहुत से बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा कर दिया। और भिखारी बच्चों को गोद ले कर उनको पढ़ाया। मैने किलकारी नाम से एक अभियान  भी चलाया  है।  जिसमे एक व्यक्ति एक बच्चे के स्वास्थ्यकी ज़िम्मेदारी लेगा और हम इस तरह अनेक बच्चों को स्वास्थ्य की सुरक्षा दे सकते हैं जब में छोटा था तो मुझे ंलगता था की जो वयस्क कवि है वो मुझे मौका नहीं देते हैं जब की ऐसा था नहीं ये मुझे लगता था। क्योंकी  जो जाना माना नाम है उसी को लोग बुलाते हैं और उसी को सुनना भी चाहते हैं पर मुझे ऐसा लगता था तो मुझे लगा की नए लोगो को आगे आने का मौका देना चाहिए अतः  नवोन्मेष नाम की संस्था बना ली बच्चों के साहित्य के लिए। हर साल सृजन नाम का कार्यक्रम करवाते हैं। इस तरह से बहुत सी संस्थायें हमनें खोली हैँ। अभी हमने बच्चों  लिए एक अख़बार शुरु किया  है। इस अख़बार में हिंदी और अंग्रेजी दोनो भाषाओँ की  होँगी। बच्चों को अपनी बात कहने के लिये कोई मंच नही है अतः उनको अपनी बात कहने का  मौका  नही मिलता है। www.thechildrentimes.com वेबसाइट है।  इसमें सभी बच्चे अपनी बात कह सकेँगे। अवधी  विकास संस्थान नाम की संस्था बनायीं है और अवधी .इन नाम से वेवसाइट भी बनायीं है अभी उस पर काम चल रहा है।

आपको इस्माईल मैन  (मुस्कुराता आदमी )भी  कहा जाता है। इसका क्या कारण  है ?
जी मुझे कहते  हैं इस्माईल मैन l
मै कभी क़िसी को दुखी नही देख सकता हूँ। ये मेरी आदत है कि यदि मै  किसी से गुस्सा भी  होता  हूँ  तो थोडी देर बाद खुद ही उससे बात करने लगता हूँ। मै चाहता हूँ की सभी लोग खुश  रहें। मेरी कभी किसी से लड़ाई नही होती। वैचारिक मतभेद होते हैं। पर लड़ाई नहीं होती।

आपको अंतर्राष्टीय व्यंग सम्मान गया है आपको कैसा  लग रहा  है ?
मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकी  देश से इतनी दूर यदि लोग आपको जानतें  हैँ अपका सम्मान करतें  हैँ तो  लगता है कि हाँ हमने कुछ किया है। जब हमने ये खबर लखनऊ भेजी तो लोगों ने उसको अख़बारों मे छापा।

आपकी मानक कविता आपके अनुसार कौन सी  है ?
 जी हाँ मेरी मानक कविता  है "मेरी शादी का विज्ञापन "ये सच घटना पर आधारित है क्या हुआ की मेरी शादी का विज्ञापन छपा उसमेँ मेरी उम्र २८ साल छपनी चाहिये थी पर गलती से ८२ साल छप गयी। उसको पढ़ कर जो रिश्ते आये उनमे एक ७५ साल की महिला ,एक ७८ साल की महिला थी। बस इसी घटना को ले कर कविता लिखी।  इस कविता ने पूरी दुनिया मेँ मेरी पहचान बनायी।

कविता की इस यात्रा का श्रेय आप किसको देना चाहेंगे?
इस का सारा श्रेय मेरी माँ को जाता है। जब मैने अपनी पहली कविता लिखी थी  तो सबसे पहले अपनी माँ को सुनाई थी, तो माँ ने मेरी सराहना की  थीं।  फिर उन्होंने पिता जी  को सुनायीं  थी। फिर करीब महीने भर के बाद घर में  मेहमान आये थे तो पिता जी ने मुझे बुलाया और कविता सुनाने को कहा। यहीं से साहित्य की ये यात्रा शुरु हुई। मेरा परिवार मुझे बहुत  स्नेह का करता है उन सब का  सहयोग है की  आज मै यहाँ तक पहुँचा हूँ।

क्या आपकी कोई नयी पुस्तक आने वाली है ?
जी हाँ मेरी पुस्तक आने वाली है इस पुस्तक मे मेरे बहुत ही मजेदार संस्मरण हैं।  इस पुस्तक का नाम अभी नहीं रखा है। पर जून तक ये पुस्तक बाजार मे होगी। इसके आलावा मै एक अवधी फ़िल्म हूँ। ये पहली अवधी फिल्म होगी। इसकी शूटिंग हम अवध के सारे जिले में करेंगे। ये एक छोटे बजट की फिल्म है। इस फिल्म का नाम है "भैया राम राम ". मै अवधी भाषा के विकास के लिये जी जान से जुड़ा हूँ।
 




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