Tuesday, 17 September 2013

चम्पे की छटा ने
मौसम का घर लूटा

पेड़ की फुनगी पे बैठी
मंद मंद मुस्काए   
आती जाती घटाओं  का
दिल ये लुभाए   
दादी की धोती पर
ज्यों हल्दी का छीटा 
चम्पे की छटा ने
मौसम का घर लूटा

हरे पात का बिछौना
जिस पर चम्पा सोये
पलकों के खेतों में
सपनो के बीज  बोये
सफ़ेद मखमल पर कढ़ा
पीले रंग का बूटा
चम्पे की छटा ने
मौसम का घर लूटा

हवा की डोली चढ़
सुगन्ध इसकी डोले
जो बीजे प्यार से
ये उसी की हो ले
 आँसू आये  आँख में
साथ जो  छूटा
चम्पे की छटा ने
मौसम का घर लूटा

चंपा के छाँव तले
बाबा डाले खटिया
फ़्रोक  में फूल बटोरे
मालिन की बिटिया
दूध - कटोरे में
केसर का रंग फूटा
चम्पे की छटा ने
मौसम का घर लूटा

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