Monday 18 April 2011

सरोद तो गाते हैं- अमजद अली खान

  
धर्मगुरु दलाई लामा जी ने कभी कहा था कि जब "उस्ताद अमजद अली खान साहब" अपने सरोद के अमृत को हमारी आत्मा में घोल रहे होते हैं, दरअसल अपनी मानवता, सच्चाई, और दयालुता को भी वे उसी संगीत में उड़ेल रहे होते हैं और उनकी इस सच्चाई, और सादगी को मैंने भी महसूस किया जिन दिनों खान साहब अमेरिका के दौरे पर थे. उनसे सरोद, राग और पिता जी के बारे में एक अन्तरंग बातचीत-

आप सरोद के "पर्याय" है. लोग तो आप को सरोद का  राजा (प्रिंस ऑफ़ सरोद ) भी कहते हैं.
मै संगीत का छोटा सा सेवक हूँ. मै  मनोरंजन करने वाला नही हूँ. शास्त्रीय संगीत का छोटा सा प्रतिनिधि हूँ, सिपाही हूँ. मै तो सरोद का गुलाम हूँ. बस यही कोशिश है इज्जत के साथ समर्पण के साथ काम करता रहूँ और सरोद को लोग समझने लगें, पसंद करने लगें; क्योंकि मैं मानता हूँ, सरोद कहीं न कहीं पीछे रह गया है. जैसे गिटार है, सितार है- एक दौर आया कि सितार अमेरिका में बहुत प्रसिद्ध हो गया. इस में सभी महान सितार वादकों का हाथ है. सोचता हूँ कि बीटल यदि सितार नहीं पकड़ते तो शायद इतना पापुलर नहीं होता पर अभी तो लोग सरोद को भी जानने लगे हैं.

कहते हैं कि सरोद आप के पूर्वजों का आविष्कार है. आप कुछ कहेंगे?
जी सही है. ये अफगानी  साज़ होता था जिसको रबाद कहते थे. हमारे पूर्वजों ने उस में परिवर्तन कर के नया साज़ बनाया. उस को नाम दिया सरोद. सरोद एक पर्शियन अल्फाज़ है जिसका मतलब मौसिकी है. पुराने लोग कहते थे कि सरोद बहुत मुश्किल साज़ है, ये बेपर्दा साज़ है यदि बजने वाला ठीक से न बजाये तो ये बजाने वाले को बेपर्दा कर देता है क्योंकि ये एक सिल्प्री प्लेट है जिस पर कोई निशान नहीं है तो बहुत ध्यान  से बजाना होता है.

सरोद बजाने के तरीके के बारे में  कुछ बताइए-
सरोद बजाने के मुख्यतः दो तरीके हैं, एक जिसमे तारों को उंगलियों के टिप से रोका जाता है और दूसरा वो जिसमे तारो को बाएँ हाथ की उँगलियों के नाख़ून से रोका जाता है.

आप इनमे से कौन  सा तरीका इस्तेमाल करते है और क्यों ?
मै बाएं हाथ की उंगलियों  के नाख़ून से रोके वाले तरीके का प्रयोग करता हूँ क्यूँकि मुझे लगता है कि इस से तारो को शार्प आवाज के साथ रोका जा सकता है.

आपने सरोद वादन में बहुत से प्रयोग  किये हैं-
सरोद तो हमेशा से बज रहा है. बहुत बड़े बड़े लोगों ने बजाया है, मेरे पिता और गुरु ने भी बजाया है ;लेकिन मै बचपन से सरोद के जरिये गाना चाहता था. सरोद ऐसा साज़ है जो इन्सान की हर फ़ीलिंग  को कह सकता है. कठोर शास्त्रीय संगीत की परंपरा को तो सभी निभाते और बजाते हैं ;पर हम लोक -संगीत, तराना और रवीन्द्र संगीत सब बजाना चाहते थे और मैने बजाया भी. मै पहला सरोदिया हूँ जिसने १०० गानों को बजाया है. हम जब बजाते हैं तो मुख्यतः हम अन्दर से हम गा रहे होते हैं और बाहर से बजा रहे होते हैं. हमने एक रिकॉर्ड भी बनाया "ट्रिब्यूट टू टैगोर". बंगाल की एक बहुत अच्छी गायिका है चित्रा मित्रा वो  जो गा रहीं है और मै वही बजा रहा हूँ. दूसरे अल्बम में  देवी जी ठुमरी गा रही है और मै बजा रहा हूँ. गाने का मुझे हमेशा से शौक रहा है और मेरी ये भी कोशिश रही है कि खुदा करे कि मेरा सरोद सुन कर लोग भी गाने लगें.

आप किसी भी व्यक्ति या अवसर राग बनाते हैं -जैसे आप ने गाँधी जी पर, और शुभलक्ष्मी जी पर राग बनाये. इन रागों को बनाते समय आप मुख्यत:  किन बातों को ध्यान में  रखते हैं?
ऐसा कुछ नहीं है अपने आप ही कोई धुन दिमाग में आ जाती है. अभी मैने राग "गणेश-कल्याण" बनाया है. ऐसा राग पहले कभी था ही नहीं. एक धुन मै हमेशा गुनगुनाता रहता था ।अचानक मुझे एक दिन लगा कि ये मैं क्या गा रहा हूँ तो बस वो ही धुन "गणेश-कल्याण" राग बन गई. ये ऊपर से भगवान की कृपा होती है बनी बनाई चीज आती है और हम कहते हैं कि हमने बनाई है. हम को तो ये ईश्वर से आशीर्वाद मिलता है और दुनिया को दिखाने के लिए कहना पड़ता है कि मैने कम्पोज़ किया है लेकिन हम केवल संदेशवाहक है, खुदा के सन्देश को लोगों तक पहुँचा देते हैं.

आप ने संगीत अपने अब्बा जी से सीखा है. कौन सी  ऐसी तालीम थी जो आज भी आप के साथ है?
संगीत तो हर पिता अपने बेटे को सिखाता है पर पिता जी से हमको इंसानियत और रहमदिली का सबक मिला है. मेरे अब्बा खुद भी बहुत रहमदिल इंसान थे, बड़ों को इज्जत देना और छोटो को प्रोत्साहित करना भी हम ने उन्ही से सीखा है ,अतः आज तक हमने बहुत से नए तबला वादकों को मौका दिया है और आगे लाये है. पिता जी ने कहा कि इन्सान में उसकी खूबियाँ देखो ,न कि कमियाँ. हमारा होमवर्क होता था कि  पिताजी के सभी सहयोगी कलाकारों में खूबियाँ ढूँढें और पिता जी से डिस्कस करे कि विलायत अली खान और इनके पिता जी, अब्दुल करीम खान साहब और केसर बाई की गायिकी में  क्या-क्या खूबियाँ है. इस तरह से हम को दिशा मिलती गई और सभी से सीखते गए.
फ़िल्मी संगीत भी बहुत अच्छा है हम इसकी इज्जत करते हैं. पिता जी का सबसे बड़ा आशीर्वाद यही है कि हमें दूसरों में खूबियाँ नज़र आती हैं। वो सदा कहते थे कि यदि आप किसी का आदर नहीं कर सकते तो अनादर भी नहीं करना चाहिए, प्यार नहीं कर सकते तो नफरत भी नहीं करनी चाहिए. मै तो सभी से कहना चाहूँगा कि माता पिता की सेवा करें, आज कल बच्चे बड़े होकर कहते हैं कि आप ने मेरे लिए क्या किया? सबसे बड़े गुरु तो माता पिता है, बच्चे दूसरे गुरु के पास चले जाते हैं और माता पिता को भूल जाते है.

क्या पिता जी कड़े अनुशासन  में  सिखाते थे?
जी हाँ,  वो बहुत ही अनुशासित व्यक्ति थे. क्वालिटी और परफेक्शन को बहुत  महत्त्व देते थे "राग की शुद्धता ", ये पिता जी का उसूल था। कहते थे कि राग को हम उतनी  देर ही बजायेगे जितनी देर राग की खूबसूरती बनी रहे. हमको राग  जबरदस्ती खीचना नहीं है. पिता जी को लगता था कि यदि आप राग का अपमान करेंगे तो वो आप को शाप दे देगा.

फ़िल्मी संगीत में  शास्त्रीय संगीत का समावेश कितना है और कितना शुद्ध है?
बहुत से गाने रागों पर आधारित हैं. कुछ में शुद्ध राग का प्रयोग हुआ है और कुछ  में मिश्रित राग का. हम ने करीब ४० गज़लें कम्पोज़ की है ,जिनको बड़े -बड़े लोगों ने गाया भी है. यहाँ मै ये भी कहना चाहूँगा कि सब गानों में  हम शास्त्रीय सगीत नहीं ढूँढते हैं। हम ये देखते है कि गाना दिल को छुए, कानो को अच्छा लगे, दुनिया का कोई भी संगीत सात सुरों पर ही आधारित है.

फिल्म के गानों में से  आप के पसंद के कौन- कौन से गाने हैं ?
सभी हिन्दुस्तानी फिल्म संगीत को सुनके ही बड़े होते हैं ।मुझे भी बहुत से गाने पसंद हैं जैसे सीमा फिल्म का "कहाँ जा रहा है","चौदवीं का चाँद हो ", "चिंगारी कोई भड़के ",
                                                                        
आज आप के दोनों बेटे भी सरोद बजाते हैं, आप एक खुशकिस्मत पिता है
?
जी हाँ ,ये सच है कि मै अपने बेटो से बहुत खुश हूँ. मैने जो कुछ भी अपने बुजुर्गों से सीखा है, पिता जी से सीखा है, सभी कुछ मैने इनको  सिखाया है. मेरे बेटो ने हमारी परंपरा को आगे बढाया है. ऊपर वाले की दया है कि अमान और अयान दोनों ही बहुत मेहनती है और आज्ञाकारी है. हमने चाहा था कि वो एक अच्छे इन्सान बने और आज मुझे ख़ुशी है कि वो नेक इंसान बन पायें है. हम ने उनको सरोदिया बनने के लिए दबाव नहीं डाला; उन्होंने खुद से ये राह चुनी है.

7 comments:

  1. साक्षात्कार बहुत अच्छे ढंग से लिया हैं । शालीन तो हैं ही साथ में जानकारी भी काफी मिलती है ।

    ReplyDelete
  2. ज़नाब अमज़द अली खान साहब के जीवन के विभिन्न पहलुओं से रूबरू करवाता एक सार्थक और बहुत ही अच्छा साक्षात्कार. सम्मानिया रचना जी आपको ब्लॉग जगत में देख कर बेहद ही प्रसन्नता हुई. आपसे कुछ और सीखने को मिल सकेगा और ये हमारा सौभाग्य होगा.
    हार्दिक शुभकामनाएँ ! नमन !

    ReplyDelete
  3. रचना जी,
    बहुत अच्छी जानकरी मिली आपका लिखा पढ़कर !
    बहुत-बहुत बधाई!
    हरदीप

    ReplyDelete
  4. अमजद अली खान जी से सरोद, राग और पिता जी के बारे में आपकी अन्तरंग बातचीत बहुत सार्थक एवं रोचक है। आपने सही कहा कि वे सरोद के "पर्याय" हैं। सचमुच, अमजद अली खान साहब सरोद के जादूगर है...

    इस अमूल्य साक्षात्कार के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  5. aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad .
    dhnyavad
    rachana

    ReplyDelete