Monday 24 November 2014

आज कुछ माहिया .शायद आपको पसंद आये


हर ओर दिवाली है
घर तो सूना है
 और जेब  खाली है

चौखट पर दीप जले
मन अँधियारा है
नीले गगन के तले

तुम आज चले आना
मन के चौखट  पर
 दीप जला  जाना

बापू उदास लेटे
पटाखे मत मांग
चुप हो जा तू बेटे

दो दिन से काम नहीं
आज  दिवाली है
देने को दाम नहीं

हमको  आराम नहीं
दुआ  गरीबों की
सुनते क्यों राम नहीं
मन अँधेरा
दिए जलने से क्या
मिट जायेगा

दब गयी थी
पटाखों के शोर में
चीख उसकी

दीप जलाओ
पडोसी के चौखट
बाँटो खुशियाँ

ज्ञान का डीप
हर आँगन चले
इस दीवाली

मन हो साफ
घर के साथ साथ
इस दिवाली

हवा न रोये
धुंए के जहर से
इस दिवाली

धरा लजाये
दुल्हन सी सजे के
घूँघट ओढ़े

बम का शोर
बंद कर के कान
धरती बैठी

जला आनर
अम्बर  खिड़की से
झांके है चाँद
१०
सभी बुलाएँ
लक्ष्मी जाएँ किधर
सोच में पड़ी


Wednesday 21 May 2014





मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा : आलोक श्रीवास्तव

अपनी ग़ज़लों में मानवीय रिश्तों के चित्र उकेरने वाले भारत के प्रसिद्ध ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव पेशे से टीवी पत्रकार हैं. आलोक जी की पुस्तक 'आमीन' हिंदी कविता की सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तकों में शुमार की गई है जिसे साहित्य के अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। आलोक, हिंदी पट्टी के ऐसे इकलौते युवा ग़ज़लकार हैं जिनकी गीतों-ग़ज़लों को ग़ज़ल-सम्राट जगजीत सिंह, पंकज उधास, तलत अज़ीज़, शुभा मुद्गल से लेकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन तक ने अपनी आवाज़ दी है. पिछले दिनों प्रसिद्ध सितार वादिका अनुष्का शंकर के एलबम ट्रैवलर में भी उनका गीत शामिल किया गया जिसे ग्रैमी अवॉर्ड में नॉमिनेशन मिला. इन दिनों आलोक श्रीवास्तव अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की ओर से अमेरिका की साहित्यिक-यात्रा पर हैं. इसी दौरान मुझे इस सहृदय और विनम्र कवि से बात करने का मौका मिला. गौरतलब है की अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की स्थापना सन् १९८० में डॉ. कुँवर चन्द्र प्रकाश सिंह ने की थी; तब से आजतक लोग आते गए और कारवाँ बनता चला गया। कवि सम्मेलनों की मशाल डॉ. सुधा ओम ढींगरा, डॉ. नन्दलाल सिंह और श्री अलोक मिश्रा जी के हाथों में है। १९८० से ये समिति अमेरिका में हिन्दी के प्रचार- प्रसार का कार्य कर रही है। प्रस्तुत है आलोक श्रीवास्तव जी से की गई बातचीत के कुछ अंश -

अपने बारे में कुछ बताइये. शब्दों को ग़ज़लों में ढालने का सिलसिला कब और कैसे शुरू हुआ ?

आंखें खुलीं तो ख़ुद को साहित्यिक-परिवार में पाया. बड़े भाई लिखते-पढ़ते थेl मां साहित्यसुधी थींl माहौल मिला तो मैंने भी लिखना-पढ़ना शुरू कर दियाl कोई बीस बरस की उम्र में पहली ग़ज़ल कही थी - 

जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा,/आसमां पर कहीं मेरा भी सितारा होगा.
दुश्मनी नींद से करके मैं बहुत डरता हूं,/अब कहां पर मेरे ख़्वाबों का गुज़ारा होगा.

ग़ज़ल लिखने के इतने नियम होते हैं बहर होती है। नियमों में बांध कर भावों के साथ न्याय कैसे कर लेते हैं आप। 
(रदीफ़ और काफ़िया मिलाना तो आसान है पर बहर का निर्वाह बहुत ही कठिन है ऐसा मुझे लगता है )

साध लीजिए तो सब सध जाता है. वैसे मैं आज भी ख़ुद को ग़ज़ल की क्लास का सबसे कमज़ोर विद्यार्थी ही पाता हूं. 
मेरे लिए भाव ज़्यादा मायने रखता हैं. उसमें ग़ज़ल का तमीज़ और आ जाए तो क्या कहने.

आमीन आपका ग़ज़ल संग्रह है। इसकी शुरुआत कैसे हुयी ? इसके बारे में बताइये प्लीज। 
इस संग्रह को इतनी लोकप्रियता मिली, इतने पुरस्कार मिले। आपको कैसा लगा ? क्या आपको लगा था की आमीन को इतनी सफलता मिलेगी ?

सच पूछिए तो मुझे यही भरोसा नहीं था कि मेरा यह संग्रह कभी छप भी पाएगा. तीन प्रकाशकों ने महीनों घुमायाl  दो बड़े प्रकाशकों ने अप्रत्यक्ष रूप से मना कियाl बहुत निराश हुआl आख़िरकार तीन साल की लंबी प्रतीक्षा के बाद जब 'राजकमल प्रकाशन' से संग्रह छप कर आया तो इंतज़ार की सारी थकान उतर गईl 

हर लेखक और शायर का कोई न कोई प्रेरणा श्रोत होता है l आपका प्रेरणा श्रोत कौन है ? आप अपनी सफलता का श्रेय किसको देना चाहेंगे। 

मां. मेरी मां मुझे कवि रूप में देखना चाहती थीं. उनका बड़ा मन था कि स्थापित कवियों में मेरा शुमार हो. मैं आज जो कुछ हूं उन्हीं की सदा और दुआ से हूं. मेरे शेर हैं - 

न जाने कौन है जो ख़्वाब में आवाज़ देता है/ख़ुद अपने आपको नींदों में चलते मैंने देखा है. 
मुझे मालूम है उसकी दुआएँ साथ चलती हैं,/सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है.


आपकी ग़ज़लों और गीतों में मानवीय रिश्तों को बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति होती है। रिश्तों पर लिखने का कोई खास कारण। 

रिश्ते सदा से मुझे लुभाते रहे हैं. प्रेरित करते रहे हैं. संयुक्त परिवार में परवरिश के कारण मैंने रिश्तों के खट्टे-मीठे अनुभव बहुत क़रीब से जीए. वही ग़ज़लों और गीतों में आते गए. परिवार में खटपट होती थी, नज़र आती थी. लेकिन मां कब उस खटपट को प्यार में बदल देती थीं, पता ही नहीं चलता था. मैंने शेर कहे थे - 

घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे,/चुपके-चुपके कर देती है, जाने कब तुरपाई अम्मा.
बाबूजी गुज़रे आपस में सब चीज़ें तक़्सीम हुईं तब/मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से आई अम्मा.

आफरीन आपका कहानी संग्रह है। इसके बारे में कुछ बताइये। क्या चीज आपको कहानी लिखने की प्रेरणा देती है?
कहानियां ज़िंदगी की दास्तानें भर हैं. वही जो देखा. महसूस किया, लिख दिया. आफ़रीन के प्रकाशन के का श्रेय हिंदी आलोचना के प्रतिमान, आदरणीय बाबूजी नामवर सिंह जी को जाता है, उन्होंने और वरिष्ठ पत्रकार, मेरे अग्रज हेमंत शर्मा जी ने हौसला बढ़ाया तभी आफ़रीन आप सबके सामने आ सकी. ये कहानियां दरअस्ल मेरी ग़ज़लों का ही विस्तार हैं.  

आप बहुत से लोगों के पसंदीदा शायर है पर आपको कौन से शायर पसंद हैं ?

अपने क्लासिक्स में ख़ुसरो, कबीर, ग़ालिब को ख़ूब पढ़ा और उनके बाद फ़ैज़, फ़िराक़, कैफ़ी, साहिर, सरदार जाफ़री, गुलज़ार, निदा फ़ाज़ली, दुष्यंत कुमार और बशीर बद्र साहब की शायरी ख़ूब पढ़ी. आज भी जब मौक़ा लगता है. पढ़ता हूंl

आपके लेखन की तारीफ बहुत बड़े बड़े लेखकों और शायरों ने की है। पर तारीफ के ऐसे कौन से शब्द हैं जो आपको हमेशा प्रेरणा देते हैं ?

डॉ. नामवर सिंह जी का कथन - 'दुष्यंत की परंपरा का आलोक.' कभी नहीं भूलता. गुलज़ार साहब की दुआ याद रहती है - 'आलोक एक रोशन उफ़क़ पर खड़ा है, नए उफ़क़ खोलने के लिएl आमीन.' कमलेश्वर जी की लिखी आमीन की भूमिका का एक-एक शब्द किसी दुआ से कम नहींl
आपने संपादन कार्य भी किया है। नई दुनिया को सलाम : अली सरदार जाफ़री ,अफ़ेक्शन : डॉ. बशीर बद्र ,हमक़दम : निदा फ़ाज़ली लॉस्ट लगेज : डॉ. बशीर बद्र। इस कार्य को करने के बारे में आपने कैसे सोचा ?

ग़ज़ल शुरू से ज़िंदगी का हिस्सा रही. ये तमाम मेरे पसंदीदा शायर हैं. मौक़ा मिलता गया और इनकी शायरी पर किताब बनती गईं. यूं भी उर्दू के मशहूर शायरों की ग़ज़लों का इंतख़ाब कर, उन्हें किताबों की शक्ल देने का अनुभव, अपने तआरुफ़ में किसी सम्मान की तरह दर्ज करता हूं. मुझे लगता है कि इससे मैंने थोड़ा ही सही, उर्दू के ज़रिए हिंदी के ख़ज़ाने को थोड़ा-बहुत तो सम्पन्न किया ही है. 

आपने मंच पर कविता पाठ कब शुरू किया ?

कोई बीस बरस पहले, पहली बार मंच पर कविता-पाठ किया था. लेकिन फिर बीच में डोर टूट गई. मगर अब क़रीब पंद्रह बरस से लगातार मंचों पर जा रहा हूं.
हिंदी शायरी और उर्दू शायरी कितनी सामान है और कितनी भिन्न। 

मौसेरी बहनें हैंl

अभी यहाँ आपको सम्मानित किया गया है आप क्या कहेंगे ?

हिंदी ग़ज़ल सरहदों की देहरी लांघ कर ख़ुद को मनवा रही हैl अच्छा लग रहा हैl

टीवी पत्रकारिता और साहित्य दोनों के साथ आप कैसे इतना न्याय कर पाते हैं ?

नटनी-सा चलना पड़ता है रस्सी पर, चलता रहता हूंl जब नहीं चल पाऊंगा तो छपाक से साहित्य की तरफ़ कूद जाऊंगाl


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मै कभी क़िसी को दुखी नही देख सकता हूँ:-सर्वेश अस्थाना


            सर्वेश अस्थाना जी अच्छे हास्य कवि, संचालक, गीतकार,और शायर तो हैं ही साथ ही इनकी निराश्रित बच्चों की मदद का एकमात्र लक्ष्य इनको बहुत बहुत अच्छा इंसान बना देता है। पन्द्रह वर्ष पूर्व 'सर्च फाउण्डेशन' की स्थापना  कर आप निराश्रित एवं जरूररतमंद बच्चों के उत्थान एवं विकास के लिए तथा अवधी के विकास के लिये समर्पित हैं।अभी सर्वेश जी  किलकारी नाम से एक अभियान चला रहे हैं जिसमे एक व्यक्ति एक बच्चे के स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी लेगा और इस तरह अनेक बच्चों को स्वास्थ्य की सुरक्षा मिल सकती  हैं। श्री सर्वेश अस्थाना जी पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की ओरसे अमेरिका की साहित्यिक-यात्रा पर थे l इसी दौरान मुझे इस सहृदय और विनम्र कवि से बात करने का मौका मिला. गौरतलब है की अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति की स्थापना सन् १९८० में डॉ. कुँवर चन्द्र प्रकाश सिंह ने की थी; तब से आजतक लोग आते गए और कारवाँ बनता चला गया। कवि सम्मेलनों की मशाल डॉ. सुधा ओम ढींगरा, डॉ. नन्दलाल सिंह और श्री अलोक मिश्रा जी के हाथों में है। १९८० से ये समिति अमेरिका में हिन्दी के प्रचार- प्रसार का कार्य कर रही है।
आपका रुझान कविता की तरफ कैसे हुआ ?
मेरे घर में साहित्य का मौहौल था। मेरे पिता जी अवधी के बड़े कवि थे मै चार भाई हूँ lबड़े दोनों भाई बहुत अच्छे कवि हैं तीसरे भाई जीवन बीमा निगम की पत्रिका के संपादक है। तो कहने का मतलब की कविता परंपरा में मिली है।

आपके पास बहुत सी डिग्रियां है क्या कारण  है ?
मुझे पढ़ना बहुत पसंद ही है। मै आज भी सोने से पहले पढता हूँ। बस पढ़ने के शौक ने डिग्रियां दिला दीं l

आपने १९८७ से मच पर कविता पाठ  करना प्रारम्भ किया। पत्रिकाओं में छपी कविता और मंच की कविता में क्या कोई अंतर है ?
कविता लिखना ह्रदय की आवाज है और प्रसिद्धि पाना व्यक्ति की लालसा है l ह्रदय की आवाज कविता लिखवाती है और पसिद्धि पाने की लालसा हमको मंच पर लाती  है। मंच पर आने से सम्मान मिलता है और सम्मान के साथ पैसा भी मिलता है। जब प्रसिद्धि पैसा पहचान प्रचार प्रसार  यानी की ५  पा एक साथ मिल जाते हैं तो मंच  हमारे लिए बहुत आकर्षक हो जाता है। मंच पर जो हम सुनते हैं यदि वही हम लिखेंगे तो हम अच्छे कवि नहीं बन पाएंगे। हमारा लिखना अलग होता है और मंच पर सुनना अलग होता है। क्यों की मंच पर सुनने वाले व्यक्ति से आपके भाव मेल खाएं ये जरुरी नहीं है अतः उनके अनुरूप कविता सुनानी होती है।

आपने टीवी, रेडियो  और मंच  तीनो जगह पर कविता पाठ किया है आपकी नजर में लोगों तक पहुचने का अच्छा माध्यम क्या है ?
तीनो माध्यम ही बहुत अच्छे हैं पर जब आप सामने दिखते हैं तो लोगों पर अधिक प्रभाव पड़ता है प्रभाव ऊपरी सतह पर होता है भीतर परिवर्तन होता है। और इसी के कारण लोग हम कवियों को सम्मान देते हैं। और ये ही हमारी पूंजी है। यहाँ ही हमको लगता है की ये शब्दों का सम्मान है।

आपने टी वी  सीरियल लिखे हैं और बृतचित्र भी बनाये है उसके बारे में कुछ बताइये
जी हाँ मेने बुद्धा सीरियल के लिए संवाद लिखे हैं और मैने रामकली ,हीरो कौन नमक हास्य सीरियल लिखे हैंजो दूरदर्शन पर आये । मैने  कैफ़ी आज़मी जी पर कैफ़ी की कैफियत और नीरज जी पर कारवां गीतों का नमक बृतचित्र बनाये हैं इस समय मै अवधी भाषा के कवियों पर बृतचित्र बना रहा हूँ।

आपने बहुत से अख़बारों के लिए कॉलम भी लिखे हैं आपके अनुसार सबसे ज्यादा प्रचलित कौन सा कॉलम रहा है।
मेरा जनसत्ता का नक्कार खाना बहुत ही प्रचलित रहा है। हिदुस्तान हिंदिस्तान वालों ने नक्कार खाना लिखवाना शुरू किया। स्वतंत्र भारत का कांव कांव भी बहुत पसंद किया गया।  अनकही स्वतन्त्र भारत में लिखता था।

आपका बाल गीत संग्रह है ग़ज़ल है गीत है और हास्य व्यंग भी है। काव्य की ये अलग अलग विधा है तो इन सभी विधाओं में अच्छा लिखना कैसे संभव हुआ ?
रचना जी ये बहुत ही अच्छा प्रश्न है अभी तक मेरे पूरे जीवन में ये दूसरी बार किसी ने पूछा है। व्यक्ति एक साथ कई जीवन जी रहा होता है उसके अंदर एक बच्चा  होता है ,एक संवेदनशील व्यक्ति  होता है. दयालु भी होता है तो व्यक्ति के ये सभी पहलू कभी न कभी जोर मारते  हैं। मै बच्चों के लिए बहुत काम करता हूँ अतः बाल कवितायेँ लिखता हूँ .कवि के अंदर जो संवेदनाएं है उसके  कारण वो गीत लिखता है। संसार में को विसंगतियां हैं उनके कारन व्यंग निकलता है और जो विकृतियां दिखाई देती हैं उस पर हास्य लिखा जाता है अतःमै सभी कुछ लिखता हूँ एक बात और ह्रदय गीतकार है मस्तिष्क व्यंगकार है ,अभिलाषाएं बाल कवि बना देती हैं और संवेदनाएं शायर बना देती हैं।

आपने बहुत सी संस्थाएं खोली हैl
मै जीवन को पूरा जीना चाहता हूँ जिसमे की प्राप्ति है ,नाम है ,दूसरों को देना भी है ,सेवा भी है। सर्च फाउंडेशन नाम की संस्था बनायीं जिसमे बच्चों के लिए काम करना शुरू किया और अभी तक बहुत से बच्चों को पढ़ा लिखा कर बड़ा कर दिया। और भिखारी बच्चों को गोद ले कर उनको पढ़ाया। मैने किलकारी नाम से एक अभियान  भी चलाया  है।  जिसमे एक व्यक्ति एक बच्चे के स्वास्थ्यकी ज़िम्मेदारी लेगा और हम इस तरह अनेक बच्चों को स्वास्थ्य की सुरक्षा दे सकते हैं जब में छोटा था तो मुझे ंलगता था की जो वयस्क कवि है वो मुझे मौका नहीं देते हैं जब की ऐसा था नहीं ये मुझे लगता था। क्योंकी  जो जाना माना नाम है उसी को लोग बुलाते हैं और उसी को सुनना भी चाहते हैं पर मुझे ऐसा लगता था तो मुझे लगा की नए लोगो को आगे आने का मौका देना चाहिए अतः  नवोन्मेष नाम की संस्था बना ली बच्चों के साहित्य के लिए। हर साल सृजन नाम का कार्यक्रम करवाते हैं। इस तरह से बहुत सी संस्थायें हमनें खोली हैँ। अभी हमने बच्चों  लिए एक अख़बार शुरु किया  है। इस अख़बार में हिंदी और अंग्रेजी दोनो भाषाओँ की  होँगी। बच्चों को अपनी बात कहने के लिये कोई मंच नही है अतः उनको अपनी बात कहने का  मौका  नही मिलता है। www.thechildrentimes.com वेबसाइट है।  इसमें सभी बच्चे अपनी बात कह सकेँगे। अवधी  विकास संस्थान नाम की संस्था बनायीं है और अवधी .इन नाम से वेवसाइट भी बनायीं है अभी उस पर काम चल रहा है।

आपको इस्माईल मैन  (मुस्कुराता आदमी )भी  कहा जाता है। इसका क्या कारण  है ?
जी मुझे कहते  हैं इस्माईल मैन l
मै कभी क़िसी को दुखी नही देख सकता हूँ। ये मेरी आदत है कि यदि मै  किसी से गुस्सा भी  होता  हूँ  तो थोडी देर बाद खुद ही उससे बात करने लगता हूँ। मै चाहता हूँ की सभी लोग खुश  रहें। मेरी कभी किसी से लड़ाई नही होती। वैचारिक मतभेद होते हैं। पर लड़ाई नहीं होती।

आपको अंतर्राष्टीय व्यंग सम्मान गया है आपको कैसा  लग रहा  है ?
मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकी  देश से इतनी दूर यदि लोग आपको जानतें  हैँ अपका सम्मान करतें  हैँ तो  लगता है कि हाँ हमने कुछ किया है। जब हमने ये खबर लखनऊ भेजी तो लोगों ने उसको अख़बारों मे छापा।

आपकी मानक कविता आपके अनुसार कौन सी  है ?
 जी हाँ मेरी मानक कविता  है "मेरी शादी का विज्ञापन "ये सच घटना पर आधारित है क्या हुआ की मेरी शादी का विज्ञापन छपा उसमेँ मेरी उम्र २८ साल छपनी चाहिये थी पर गलती से ८२ साल छप गयी। उसको पढ़ कर जो रिश्ते आये उनमे एक ७५ साल की महिला ,एक ७८ साल की महिला थी। बस इसी घटना को ले कर कविता लिखी।  इस कविता ने पूरी दुनिया मेँ मेरी पहचान बनायी।

कविता की इस यात्रा का श्रेय आप किसको देना चाहेंगे?
इस का सारा श्रेय मेरी माँ को जाता है। जब मैने अपनी पहली कविता लिखी थी  तो सबसे पहले अपनी माँ को सुनाई थी, तो माँ ने मेरी सराहना की  थीं।  फिर उन्होंने पिता जी  को सुनायीं  थी। फिर करीब महीने भर के बाद घर में  मेहमान आये थे तो पिता जी ने मुझे बुलाया और कविता सुनाने को कहा। यहीं से साहित्य की ये यात्रा शुरु हुई। मेरा परिवार मुझे बहुत  स्नेह का करता है उन सब का  सहयोग है की  आज मै यहाँ तक पहुँचा हूँ।

क्या आपकी कोई नयी पुस्तक आने वाली है ?
जी हाँ मेरी पुस्तक आने वाली है इस पुस्तक मे मेरे बहुत ही मजेदार संस्मरण हैं।  इस पुस्तक का नाम अभी नहीं रखा है। पर जून तक ये पुस्तक बाजार मे होगी। इसके आलावा मै एक अवधी फ़िल्म हूँ। ये पहली अवधी फिल्म होगी। इसकी शूटिंग हम अवध के सारे जिले में करेंगे। ये एक छोटे बजट की फिल्म है। इस फिल्म का नाम है "भैया राम राम ". मै अवधी भाषा के विकास के लिये जी जान से जुड़ा हूँ।
 




Saturday 22 February 2014

शगुन  का संगीत
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मंडप के नीचे खड़ा
शगुन  का संगीत

उबटन की 
कटोरी चहके
निखरे बन्नी का रूप
जैसे फूलों के माथे पर
हल्की हल्की धूप 
चंचल हुए नैन मिला जो उनको मीत
मंडप के नीचे खड़ा शगुन का संगीत

पंडित के
कांधे चढ़
मन्त्रों की डोली आयी
फेरों का हाथ पकड़
सात वचन संग  लाई
ढोलक - मंजीरे ले कर आये मंगल गीत
मंडप के नीचे खड़ा शगुन का संगीत

मांग की
गलियों में
सिन्दूर ठुमक डोले
मन की कोरी गागर में
  प्रेम रस घोले
बने नये रिश्ते गिरी पुरानी भीत
मंडप के नीचे खड़ा शगुन  का संगीत


कोहबर में
देवता बैठे
करते  इंतजार
दरवाजे भाभी खड़ी
 मांगे नेग हज़ार
मौर -मौरी आपस में करते बात चीत
मंडप के नीचे खड़ा शगुन का संगीत
छूटे है  बचपन सखी री


फेरे आये मंडप में
सात वचनो के साथ
मेंहन्दी पीसी पत्थर पे
सजे  बन्नी के हाथ
भीगा है सपन  सखी री
छूटे है  बचपन सखी री

खेल खिलौने रूठे
करें न मुझसे बात
गुड़िया रोये घूँघट में
आँगन सारी रात
भोला था छुटपन सखी री
छूटे है बचपन सखी री

समधी बैठे आँगन
खाने भात
गारी की संग में
मिली सौगात
कैसा अनोखापन सखी री
छूटे है बचपन सखी री