Friday 23 January 2015

 मुस्काए सूरज



बादलों की धुंध में मुस्काए सूरज
खोल गगन के द्वार
धरा पर आए

गुनगुनाए धूप
आए स्वेटर सा आराम
अब तो भैया मस्ती में हों
अपने सारे काम
बाँध गठरिया आलस भागे
ट्रेन-टिकट कटाए
देखो
बादलों की धुंध में
शरमाए

अधमुंदे नयनों को खोले
सोया सोया गाँव
किरणें द्वार द्वार पर डोलें
नंगे नंगे पाँव
मधुर मधुर मुस्काती अम्मा
गुड़ का पाग पकाए
हौले
बादलों की धुंध में
कुछ गाए
कदंब  का पेड़ था
यमुना के तीरे
आती थी एक डाल उसकी
अंगना धीरे धीरे
बिटिया ता पर झुला झूले
मन में कुसुम फूले
बाबा खटिया पर बैठे
गुड गुड हुका पीले
बाहर कदंब  की छाँव तले
पन्च  घाव सभी के सीले
चली कुछ एसी शहरी  हवा
ख़ुशी का हर पल खो गया  
बाबा का राज गया
बेटों ने बागडोर संभाली
निवाला बटा खेत बटा
अलग होगई थाली
कदंब  में गुण हैं कितने
जब जान गई दुनिया सारी
फूल निचोड़े,पत्ती तोडी
छाल छील डाली
उड़ गए पंछी जीवन रोया
घोसला होगया खाली
हुक्का ठंडा होगया
खटिया सूनी सारी
बाहर कदंब  सूखता गया
आँगन में घर का माली  
पल्लवित कदंब  की छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में
देख कदंब  के भाग्य सखी
होए जलन हर हाल सखी
काश मै कदम बन जाऊँ
प्रति पल उनका सानिध्य पाऊँ
हो इच्छा पूर्ति कदंब  की छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में 

ग्वालों संग कान्हा खेले
डाली डाली हर्षित डोले
बचपन की मासूम बातें
माखन चोरी की घातें
रचे रचयिता खेल कदंब की छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में

मुरली मधुर मनोहर बाजे
राधा के मन मंदिर साजे
छोड़ कामकाज गोपिया भागे
सुध बुध खोएं कृष्ण के आगे
बैठी रहीं कदंब  की छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में

हरित पात लल्ला छुप जावे
माता  यशोदा को खिझावे
ग्वाल बाल सबसे पूछे कोऊ नहीं बतावे
ठाढी क्रोधित मैया कदंब को छाँव में
बोली कोयलिया उस गाँव में


चहुँ  ओर छाया कुछ कोहरा सा है
हथेलियों पर थिरकता है
पलकों  से लिपटता है
ओस  में भीग के
 स्वयं में सिमटता है
ह्रदय दर्पण में सोया एक चेहरा सा है
चहुँ  ओर छाया कुछ कोहरा सा है

शब्द ताखे से  उतरते नहीं
गेसू हवा में बिखरते नहीं
आँखों की ढिबरी में जलता है
पर काजल बन उन में सजता नहीं
क्यों छलकता नहीं लब पर जो ठहरा सा है
मेरे चहुँ  ओर छाया कुछ कोहरा सा है

चांदनी जब  उतरती है
चाँद की हसीं तभी बिखरती है
देख सुन्दरता लजाती है धरती
सकुचा के ड़ाल से लिपटती है
चमक जाता है मौसम जो हरा हरा सा है
चहुँ  ओर छाया कुछ कोहरा सा है
धरती का डोले मन
के बसंत ऋतू आई

सूरज जो छुप के बैठा था
खिड़की खोल ले मुस्काया
उसकी सुनहरी धूप ने
धरती का कण कण चमकाया
हर्ष हर्ष बोले सुमन
के बसंत ऋतू आई
धरती का डोले मन
के बसंत ऋतू आई

ओढ़ बसंती चूनर
धरा सुन्दरी  इतराए
बादल जो राही बन भटके 
उस का मन भी भरमाये
बहे बसंती बयार होके मगन
के बसंत ऋतू आई
धरती का डोले मन
के बसंत ऋतू आई 

फूलों ने घूँघट खोले
तो भवरे ने ली अंगड़ाई
पी का संग पाने को
प्रकृति सुन्दरी बौराई
प्रेम राग से गूंजे गगन
के बसंत ऋतू आई
धरती का डोले मन
के बसंत ऋतू आई

बसंत ऋतू आई
ठण्ड ने जो समेटी चादर
रस से भर गई
घरती की गागर
फूलों ने  शौल हटाया
सु गन्ध  का
झोका आया
मौसम ने ली झूम के अंगड़ाई
बसंत ऋतू आई

सूरज ने लिहाफ से झाँका 
अम्बर बोला
बाहर आजा
डरती राहों को उजाला मिला
झोले में धर  कोहरा
शीत घर की राह चला
सुनके गुनगुनी धूप मुस्काई
बसंत ऋतू आई

धरा करने लगी श्रृंगार
गले डाल
बसन्ती हार
मुख पर गुलाबी फूल खिले
नभ साजन से
 कजरारे नैन मिले
पीली चूनर जो हवा ने सरकाई
बसंत ऋतू आई


-
 आशा किरण घर घर फैले
आँगन आँगन खुशियाँ डोलें
ज्योतिर्मय हो मन लहराए
आओ एक दीप जलाएं

निशा दिवस बन जाए
घटा हँसी की चहुँ और छाये
बरसे प्रेम रस सभी नहायें
आओ एक दीप जलाएं

ज्ञान का अलोक हो
निर्भय जन मन प्राण हो
आस गंगा धरती पे बहायें
आओ एक दीप जलाएं


गणेश लक्ष्मी हर घर आसन धरें  
कष्ट मिटायें लक्ष  दोष हरें  
लक्ष्मी विष्णु प्रिया 
गणेश विघ्न विनाशक  कहलायें  
आओ एक दीप जलाएं

हरगोविंद जी का मुक्त दिवस हो
या स्वामी महावीर को निर्वाण  मिला हो 
राम जी अयोध्या आ पहुंचे हों
या पांडव ने पूरा बनवास किया हो
हो कारण कोई भी
प्रेम का तोरण हर द्वार सजाएँ
खुशियों  की सौगात लुटाएं
आओ एक दीप जलाएं


भारत की खुशबू
यहाँ भी आती है
जब बेटी घर में आरती गाती है

हरी चूड़ियों के
गीत वहाँ  बजते हैं
सावन आते ही
पेड़ों पर झूले पड़ते हैं
सजनी जो
'ऐ जी' कह कर बुलाती है
भारत की खुशबू
यहाँ भी आती है

तिरंगे से उगे सूरज
जग सबेरा हो
यादों के पंछी का
गली बसेरा हो
"जन गण"  की धुन
रूह सहलाती है
भारत की खुशबू
यहाँ भी आती है

पावन धरती दे
नदियों   को सहारा
रंगबिरंगी बोली से
रंगा देश सारा
स्नेह  घूप
मन- आँगन महकाती  है
भारत की खुशबू
यहाँ भी आती है
 सूरज देने गर्मी  उत्तर दिशा  में आगया


 
ठण्ड ने फैलाये पंख तो मन घबरा गया
सूरज देने गर्मी  उत्तर दिशा  में आगया

ठण्ड में कांपते पंक्षी बगुले सो गए
पक गयीं फसलें और खेत सुनहरे होगये
ढेर आनाज का आँगन में लगा गया
सूरज देने गर्मी  उत्तर दिशा  में आगया

बिहू ,लोहड़ी ,माघी ,पोंगल या कहो संक्राति
पूरे देश में फैली त्योहारों की क्रांति
खानो की खुशबु से मन मेरा हर्षा गया
सूरज देने गर्मी  उत्तर दिशा  में आगया

पतंग उड़े आकाश में बलखाती इठलाती
भैया उड़ाए पाटा चरखी मुझको पकड़ा दी
रंग गया अम्बर देखो इंद्रा धनुष छा गया
सूरज देने गर्मी  उत्तर दिशा  में आगया

शुभ हो ये दिन सब को कहती हूँ बस इतना
भारत वासी हो तो तुम  मान  इसका रखना
याद किया देस को तो तिरंगा दिलों में लहरा गया
सूरज देने गर्मी  उत्तर दिशा  में आगया



टांके फूल कनेर


आँगन की चूनर पे
टांके फूल कनेर

हरे पात की
झालर पर
पीले मोती सा सोहे
तोड़े इसको कोई तो
सफ़ेद आँसू से रोये
झुक के चूमे माथ जो
शरमाये मुंडेर 
आँगन की चूनर पे
टांके फूल कनेर

स्वर्ण पुष्प
की आभा
बिखरी  चहुँ ओर
हवा करे रखवाली
लेजाये न चोर
भरे ऋतुओं की हांड़ी
मुस्काये कुबेर 
 आँगन की चूनर पे
टांके फूल कनेर
 जला के टोर्च सूरज निकला

कोहरे की चादर
 रंग  पीला
जला के टोर्च
सूरज निकला
किरणों की गंगा
घरती उतरे कैसे
सोई बालियां
नींद से जगे कैसे
कलियों का घूँघट
  है अध खुला
जला के टोर्च सूरज निकला

दही कहे पापड़ से
संग मेरे होले
घी चले हौले
खिचड़ी से मिल ले
खुशबु से इनकी
अम्बर पिघला
जला के टोर्च सूरज निकला
सूरज तू रुकना  नहीं
 
 
 
सूरज तू रुकना  नहीं
कट जाये अंग तो
बादल के फाहे रखना
साँझ ढले जीवन की
पानी में उतारना
भीगना पर  बुझना नहीं
सूरज तू रुकना  नहीं

कोहरे का दानव
करे तुझको अँधा
साँस लेने का
हवा भी मांगे चंदा
तबभी तू झुकना नहीं
सूरज तू रुकना  नहीं

धरती का लंहगा
किरणों का बूटा
मौसम के आँगन
मटका टूटा
ओस पर फिसलना नहीं
सूरज तू रुकना नहीं
 
किरणों का टीका





धरती के माथे
किरणों का टीका


सूरज उतरे आँगन लीपे
हवा भर लायी
खाली पीपे
दूब हथेली ओस का छीटा
 रोया  बादल
ठण्ड ने पीटा
रंग मौसम का हो गया फीका
धरती के माथे
किरणों का टीका


पहन के स्वेटर
ठण्ड निकली
माथे उसके सरकी टिकली
सूरज मध्यम
कोहरा लौटा
घुंघ ने फिर आज दूध औटा
कांपती हांड़ी जा बैठी छीका
धरती के माथे
किरणों का टीका


टिकली (या टिकुली जिसको बिंदी भी कहते हैं )




सूरज नीचे आ रे



 धरती लिख भेजे पाती
सूरज नीचे आ रे
काँपती  फसलों को
गर्मी पहुंचा रे

आँगन के
घुटनो में दर्द है
मौसम ये  बहुत ही सर्द है
बूढा  पीपल
मांगे रजाई
तू क्यों हुआ हरजाई
अंजुरी भर धूप के दाने
हर घर में बिखरा रे
धरती लिख भेजे पाती
सूरज नीचे आ रे

कोहरे का अब मान   घटा
मुख से तनिक बादल हटा
ये मरी\ठण्ड क्यों आई
सोचती रहती बुढ़िया माई
विधवा  धरा पर
शुभ  रंग बिखरा रे
धरती लिख भेजे पाती
सूरज नीचे आ रे

शॉल ओढ़े
धूप जो निकली
नर्म किरणों से ओस पिघली
पत्तों की चादर
पानी की बून्द टपके
ठण्ड है बोल रहीं दीवारे सिमट के
सर्द पड़े हवा के पैर
 गर्म मोज़े पहना रे
धरती लिख भेजे पाती
सूरज नीचे आ रे

Friday 9 January 2015


वो अपने घर जा रही थी
 
ठेले पर जब वो रखी गई तो उसने अपने हाथ पांव पसारे  और अंगड़ाई ली.उसक पोर पोर टूट रहा था   सूरज की रौशनी में  उसकी आँखें खुल नही रही थी .बहुत कोशिश कर के वो अपनी आँख थोडा सा खोलती और फिर बंद कर लेती .फिर खोलती और पुनः बंद कर लेती थी .आज बहुत दिनों बाद उसने इतनी रौशनी देखी थी .धूप की कुछ नर्म किरणे उसके आस पास खेल रही थी एक -दो तो उसके ऊपर भी चढ़ आईं थी l  उनकी मखमली गर्माहट उसको बहुत अच्छी लग रही थीl  मिच मिचाती आँखों से उसने देखा की उसके आसपास बहुत भीड़ थी l  लोग आ - जा रहे हैं कोई बोरा बिछा कर उसपर अपना सामान रख रहा था  तो कोई अपनी भट्ठी सुलगा रहा था .एक दुकानदार अपनी दुकान के आगे चंचल धूल को चुप करने  की कोशिश में उसपर पानी का छिडकाव कर रहा था  ,कोई अपनी दुकान में झाड़ू लगा कर सारा कूड़ा सड़क पर डाल रहा था ये देख उसको अच्छा नहीं लगा .बहुत सी बसे खड़ी थीं कुछ छोटी बस जैसी भी खड़ीं थी  (ऑटो )  जो उसने पहले नहीं देखा था  .उसको सब कुछ बहुत नया नया सा लग रहा था .पूरा वातावरण ही नए रंग में रंगा था जहाँ तक भी उसकी नजर जाती उसको केवल लोग ही दिखाई दे रहे थे जब आखिरी बार उसने देखा था तो इतनी भीड़ नही थी .लोगों का पहनावा भी दूसरा था कुछ लोग तो कान पर हाथ रख कर बोले जा रहे थे वो भोली ये समझ नहीं पा  रही थी की आखिर  ये व्यक्ति अकेले ही क्यों बोले जा रहा है ? इतना शोर भी नही था .आज तो इस शोर  से बचने के लिए  वो बार  बार अपने कानो पर हाथ रख लेती थी .पर दूसरी तरफ उसको ये सब बहुत अच्छा भी लग रहा था .हवा की ये खुशबु उसके अंदर एक अजीब सी ताजगी भर रही थी .वो इस कुरकुरी  हवा को अपने अंदर भर लेना चाहती थी अतः गहरी गहरी सी साँस ले रही थी ..न जाने कितने दिनों के बाद उसको इन मतवाली हवाओं  ने छुआ था .अभी वो अपनी आज़ादी का जश्न मना ही रही थी कि "ऐ सुन ,ऐ सुन न " इस आवाज ने उसको चौंका दिया .ठेले पर इधर उधर उसने आँखें घुमायीं देखा की  एक 'अश्लील से नाम ' वाली उसको बुला रही थी .वो सोचने लगती है की कितने मान सम्मान और  कितने प्यार से उसको बनाया गया था कितनी मेहनत से उसमे एक एक शब्द भरे गए थे  और  आज वो किनके बीच पड़ी है  अपनी भूरी पड़ी काया को उसने थोडा समेटने की कोशिश की तो उसको महसूस हुआ की उसके सीने पर एक बिल्ला लगा है और उस पर लिखा था एक दाम...उफ़ आज मेरी ये कीमत लगाई गई है..........  .
"क्या हुआ रे" फिर वही आवाज आई .
"कुछ नही कहो क्यों पुकारा है "?उसने कहा
"" बहुत देर से देख रही हूँ कि तू  जब से आई है  अंगड़ाई ले रही हो घूप को पी रही है  सब कुछ बहुत अजीब निगाहों  से देख रही .काहे को "?अश्लील नाम वाली ने कहा
कितनी भ्रष्ट भाषा है इसकी कैसे रे रे कह कर बात कर रही .पर देखा जाये तो गलती इसकी नही है इसका नाम ही ऐसा है .....वो सोचने लगी
"फिर खो गई तू "
वो बात नहीं करना चाहती पर सोचने लगी की शायद ज़माना बदल गया है ,शायद लोगों को इस जैसी की ही आदद्त है .हमारा समय बीत सा गया है  अब जब इनके बीच  हूँ तो बात तो करनी ही होगी वो बोली
"क्या कहूँ आपसे! मै बहुत दिनों से उस सीलन भरी अलमारी में रह  रही  हूँ जहाँ  चार के रहने की जगह में आठ को ठूंस ठूंस कर भरा गया था पूरा बदन अकड गया था और दीमक जहाँ तहां गुदगुदी करते रहते पर मै हिल भी न सकती थी  महीनो हो जाते थे कोई भुला भटका ही उधर आता था .न जाने कितने दशकों से मैने  उस घर के बाहर कदम नही रखा था  अब तो आलम ये है की मुझ में क्या क्या है मै खुद भी  भूल चुकी हूँ .धूल मेरे फेफड़ों में कुछ इस तरह भर गई है की आज  खुली हवा में साँस लेना अजीब लग रहा है.कल कुछ लालची हाथों ने मुझे और मुझ जैसी  कई और को  उठाया और ठेले के इस मालिक को बेच दिया .मै आज उस लालची व्यक्ति का धन्यवाद करती हूँ जिसके कारण मुझे बाहर की दुनिया देखने को मिली है .अब मुझे वही खरीदेगा जो सच में  मुझे चाहता होगा .मुझे प्रेम से अपने हाथों में ले कर मेरा अक्षर अक्षर पढ़ेगा .मेरी आत्मा पुनः जीवित हो जाएगी . जानती हो ,यहाँ आज मै बिक जाउँगी  और वहां कल हमारे घर की नीलामी होगी जिसपर लिखा है "सरकारी पुस्तकालय ".उस किताब ने  देखा उस अश्लील नाम वाली के आँखों में आँसूं थे  ..........उस अश्लील नाम वाली ने कहा जानती हो मुझमे लिखे शब्दों से मुझे घिन आती थी  और इन चित्रों देख कर मेरी आँखें शर्म से झुक जाती थी  पर  आज तुम्हारी कहानी सुनने के बाद लग रहा ही की मेरी हालत इतनी बुरी नहीं है .कम लागत में छप जाती हूँ हाथों हाथ बिक जाती हूँ छुप के पढ़ी जाती हूँ ,खुले आम बेचीं जाती हूँ  हमारी मांग बहुत ज्यादा रहती है  .मै मानती हूँ की मेरे अन्दर भ्रष्ट भाषा भरी है जो समाज के मानसिक स्तर  को गिरती है और उसको पथभर्ष्ट करती है पर क्या  करूँ जो बिकता है वही बनता है  अभी वो बाते कर ही रही थी कोई आया और उस अश्लील नाम वाली को खरीद के ले गया .देखते ही देखते उस जैसी अश्लील नामों वाली बहुत सी किताबें बिक गई .
                शाम होने को थी सूरज अपनी दुकान  बढ़ने की तैयारी  कर रहा था .और उधर तारे और चाँद तैयारी हो रहे थे  क्योंकी  सूरज के जाते ही उनको अपनी अपनी गद्दी संभालनी थी पर उस किताब किसीने छुआ तक नही .वो किताब थोडा उदास और मायूस होने लगी थी क्या मुझको पढने वाला कोई नहीं ?क्या मै इस  समय  के लिए उपयुक्त नही हूँ वो अपने होने पर विचार कर ही रही थी  के , तभी दो पवित्र से हाथों  ने  उसको उठाया .और अपने साथ ले चले .वो खुश थी उसे  एक नया घर जो  मिल गया .आज वो अपने घर जा रही थी l

निरुत्तर

इस बार गर्मी की छुट्टी कुछ खास थीं ।हम बहने माँ के घर तीन साल  बाद इकट्ठे हुए थे मै प्रिया,और अचिता । अचिता हमारी  बहन नहीं है हमारी  बहन की बेटी है  ।वो बहन जो हमारे देखते देखते हमसे दूर चली गई । अचिता में  हमको स्मिता ही दिखती है एकदम उसी की तरह बोलती है उसी की तरह आंख मटकती है।  सारे बच्चे घर में खूब उधम मचाते माँ बच्चो को खेलता देख बहुत खुश होती अचिता को देख माँ स्मिता का गम भूल सी जातीं । उस दिन मै अचिता और सोम के साथ खेल रही थी । सोम बहुत देर से खेल रहा था । तो वो रोने लगा । 
प्रिया  सोम तो ऐसे रो रहा है कि जैसे मार पड़ी है । मै सोम को लेकर प्रिया  के पास गई । 
"
दीदी सोम  को मुझको दे दो इस को भूख लगी है शायद । ये इसकी भूख वाली रुलाई है"  प्रिया ने कहा
बड़ी मौसी बड़ी मौसी ।  ये कैसे पता चला  कि ये भूख वाली रुलाई है "अचिता ने बड़े भोलेपन से पूछा
"
बेटा ,माँ को पता चल जाता है के भूख वाली रुलाई कौन सी है और नींद  वाली कौन सी है, "मैने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा
"
पर मौसी जिसकी माँ नहीं होती हैं उनका ??"" कुछ कहते कहते  अचिता रुक गई॥
मै अन्दर तक भीग गई । मैने आगे बढ़ उसको गले लगा लिया  अचिता की बात का कोई जवाब नहीं था मेरे पास ।
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तोहफा
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अर्डमोर (अमेरिका का एक शहर )आने के बाद बस एक बात मोहिना को अच्छी  लगती थी वो थी उसके घर के पास पुस्तकालय का होना .बेटी कुहू और बेटे आदिव के स्कूल जाने के बाद मोहिना पुस्तकालय में आजाती कभी कुछ पढ़ती और कभी बच्चों के स्टोरी टाइम के लिए शॉन की मदद करती l शॉन पुस्तकालय में बच्चों और बड़े बच्चों (किशोरों )का विभाग देखती थी l यहाँ  आते आते मोहिना की शॉन से अच्छी दोस्ती हो गई थी l एक दिन शॉन ने कहा की उसकी बौस लिन उसको हायर करना चाहती है l मोहिना ये सुन कर बहुत खुश हो गई और उसने  हाँ कर दी l अब मोहिना इस पुस्तकालय का हिस्सा थी l  मोहिना का मुख्य काम था शॉन की मददत करना l शॉन  और मोहिना साथ में बहुत ख़ुशी  ख़ुशी काम करते lएक रोज जब मोहिना पुस्तकालय पहुंची तो उसने देखा की  शॉन के पास एक बच्चा  बैठा है lशॉन  ने कहा "मोहिना ये डेविड हैl .ये पहले आता था पर कुछ समय से इसका आना बंद था lअभी बहुत दिनों के बाद आया है "l
डेविड ने मुस्कुरा के हाय किया मोहिना ने भी मुस्कुरा के उसके हाय का जवाब दिया .शॉन ने डेविड को लिखने के लिए कुछ पेपर दिए थे जिनमे कुछ अल्फाबेट थे और कुछ नंबर भी थे .करीब एक घंटे बाद वो बच्चा अपनी माँ के साथ चला गया .डेविड रोज ही पुस्तकालय में आता शॉन उसको कुछ पेपर देती वो काम करता उसके बाद शॉन डेविड को कभी पेन्सिल कभी बुक मार्क कभी कुछ स्टीकर ईनाम के रूप में  दे  कर विदा करती .

"मोहिना कल मुझको आने में थोडा देर हो जाएगी तुम डेविड के लिखने के लिए पेपर निकाल देना और उसका इनाम भी" .अगले दिन मोहिना ने शॉन के कहे अनुसार डेविड को सब पेपर लिखने के लिए दे दिए .थोड़ी देर में शॉन भी आगई .अरे वाह तुमने नीले रंग की पेन्सिल और स्टीकर निकाले हैं डेविड के लिए
"हाँ शॉन  मैने  देखा था की जब तुम डेविड को कुछ भी देती थी तो वो  हमेशा नीले रंग की चीजें ही चुनता है  तो मुझे लगा की शायद नीला रंग उसका मनपसंद रंग है इसी लिए ".....
"अरे नहीं मोहिना नीला रंग उसका पसंदीदा रंग नहीं है ये तो उसकी माँ का पसंदीदा रंग है "l
"अरे ये माँ का इतना ख्याल रखता है माँ भी तो इसका इतना ध्यान रखती है रोज  यहाँ लाती है lउसको कितने प्यार से सब कुछ समझाती है "l
"माँ !कौन सी माँ तुम उससे कहाँ मिली "?
"जो उसके साथ आती है वो ही तो डेविड की माँ है न"l मोहिना बोली
"नहीं मोहिना वो तो उसकी केयर टेकर है ,ये विशेष घर में रहता है अपने घर में नहीं रहता है डेविड दिमागी तौर से बहुत कमजोर है न इसलिए इसके माता पिता ने इसको विशेष घर में रखा है. जब ये चार  साल का था तो इसकी माँ को पता चला की डेविड का आई क्यू स्तर   बहुत ही कमजोर है कुछ सालों तक तो डेविड अपने माँ बाप के साथ ही रहता था पर फिर सभी को परेशानी होने लगी और इसकी माँ ने इसको विशेष घर मे भरती करा दिया कई महीनो तक डेविड बहुत रोता था बहुत परेशान और  दुखी रहता पर अब देखो बहुत खुश है आराम से रहता है और वहाँ  सभी को बहुत प्यार भी करता है lइस विशेष घर में केयर टेकर होती हैं जो ऐसे बच्चों का ध्यान रखती हैं   जानती हो मोहिना पहले जो इसकी केयर टेकर थी  न उन्होंने इसको यहाँ लाने से मना कर दिया था इसी  लिए बहुत दिनों से डेविड यहाँ नहीं आया था .ये जो अभी आती है न इसका नाम जूली है ये बहुत ही अच्छी है "lशॉन बताये जा रही थी और मोहिना स्तब्ध हो कर ये सब सुन रही थी उसके मन में डेविड के लिए बहुत ही प्यार उमड़ आया था l
"शॉन डेविड जहाँ रहता है वहां का खर्चा तो बहुत आता होगा इसकी माँ सब कुछ चुकाती होगी  होगी, है न"lमोहिना के जिज्ञासू मन ने सवाल किया
" नहीं मोहिना  डेविड अपना खर्चा खुद निकालता है" .
मोहिना के चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे "पर कैसे शॉन ये तो दिमागी तौर से ................................l"
"हाँ तुम सही कह रही हो पर जहाँ ये रहता है न वहाँ के लोग इस बात का भी ध्यान रखते हैं lयहाँ अर्डमोर में कुछ जगह ऐसी है जो ऐसे लोगों को काम देती हैं lडेविड एक होटल में सफाई का काम करता है l "
मोहिना उस दिन काम से आने के बाद भी बस डेविड के बारे में सोचती रही l मै जब बड़ा हो जाउँगा तो शॉन तुमको और मोहिना को घुमाने ले जाउँगा .डेविड के हाथों में जूली के कार की चाभी थी l अच्छा और खिलाओगे कुछ नहीं शॉन ने कहा l
खिलाऊंगा न पिज्जा " यदि तुम जूली की चाभी खोज सको तो ..............बड़े शारीर में स्थित बच्चे से  दिमाग की मासूम शरारत देख कर जूली मुस्कुरा रही थी
तुम्हारे हाथ में है शॉन ने कहा
नहीं उसने अपने हाथ खोल के दिखा दिए
थोड़ी देर बाद शॉन ने कहा अच्छा मै हारी अब बताओ कहाँ है चाभी .
डेविड ने टोपी के नीचे से चाभी निकाल कर दिखाया ये रही और हसने लगा हम सभी उसके साथ हसने लगे .तभी कुकर की सीटी  बजी और मोहिना अपनी सोच के घेरे से बाहर आई
एक दिन सोमवार की सुबह जब डेविड आया तो शॉन  ने पूछा "डेविड इस वीकएंड में क्या किया "?
"मै माँ के पास गया था .अपने भाई बहनों के साथ खेलाl माँ ने मेरे लिए पिज्जा बनाया था  .lजानती हो शॉन कल मेरा जन्मदिन था "l
"अरे वाह! हैप्पी बर्थ डे .मोहिना  और शॉन ने एक साथ  कहा "l
"तुमको अपने जन्मदिन पर क्या तोहफा चाहिए "मोहिना ने पूछा l
डेविड चुप रहा l
"अरे ! बताओ न तुम को अपने जन्मदिन पर क्या चाहिए हम लाकर देंगे तुम्हे ""अबकी शॉन ने कहा
"मै अपनी माँ के मनपसंद  रंग की चीजे लेता हूँ ,जो उसको अच्छा लगे वही करता हूँ फिर भी माँ .............."डेविड थोड़ी देर ले किये चुप हो गया फिर कहने लगा "  मै हमेशा अपनी माँ के साथ रहना चाहता हूँ , उस विशेष घर में नहीं क्या ये तोहफा मुझे मिल सकता है ?"इतना कह कर डेविड अपने पेपर पर  काम करने लगा उसको जैसे इस प्रश्न का जवाब मालूम थाl