Friday 23 January 2015

 
किरणों का टीका





धरती के माथे
किरणों का टीका


सूरज उतरे आँगन लीपे
हवा भर लायी
खाली पीपे
दूब हथेली ओस का छीटा
 रोया  बादल
ठण्ड ने पीटा
रंग मौसम का हो गया फीका
धरती के माथे
किरणों का टीका


पहन के स्वेटर
ठण्ड निकली
माथे उसके सरकी टिकली
सूरज मध्यम
कोहरा लौटा
घुंघ ने फिर आज दूध औटा
कांपती हांड़ी जा बैठी छीका
धरती के माथे
किरणों का टीका


टिकली (या टिकुली जिसको बिंदी भी कहते हैं )

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