सूरज तू रुकना नहीं
सूरज तू रुकना नहीं
कट जाये अंग तो बादल के फाहे रखना
साँझ ढले जीवन की
पानी में उतारना
भीगना पर बुझना नहीं
सूरज तू रुकना नहीं
कोहरे का दानव
करे तुझको अँधा
साँस लेने का
हवा भी मांगे चंदा
तबभी तू झुकना नहीं
सूरज तू रुकना नहीं
धरती का लंहगा
किरणों का बूटा
मौसम के आँगन
मटका टूटा
ओस पर फिसलना नहीं
सूरज तू रुकना नहीं
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