Tuesday 17 September 2013

क्यों हमने घर छोड़ा था ?

सुख चादर
में छेद मिले
लहरों लहरों भेद मिले
जेब भरी
मन खाली था
जीवन बना रुदाली था
फिर भी नाता जोड़ा था
क्यों हमने घर छोड़ा था ?

घर में
खुशिया चलती थी
ताख उम्मीदें पलती थी
माथे
अगर पसीना हो
अम्मा पंखा झलती थी
जो था क्या वो थोडा था ?
क्यों हमने घर छोड़ा था ?

सावन
आँगन उतरे
वसंत किवाड़ सजाये
शाम ,
सिंदूरी धूप से
आकर घर रंग जाये
इस दृश्य से मुँह मोड़ा था
क्यों हमने घर छोड़ा था ?

No comments:

Post a Comment