Thursday 27 October 2011

खुशियों के गीत



ढोलक की थाप पर 
खुशियों के  गीत चले   

नव वसन 
धारण कर रात
दिन से छुपी -छुपी फिरे 
त्योहार को 
थाम  के मौसम 
चौखट चौखट  दीप धरे 
सजनी से मिलन को  
परदेसी मीत चले 

हवाएँ बाँधे 
बन्दनवार 
गुलाबी धूप  टाँकें 
खुशबू की 
सीढ़ी चढ़के 
पकवान रसोई से झाँके 
चूल्हे चढ़ें  बटुले 
सदियों की  रीत चले 

अँजुरी भर 
दुआएं है 
चंदा की गठरी में 
आशा के 
 जुगनू  चमकें 
झोपड़ी की  कथरी में 
उत्सव के द्वार  पर,
दीपक की प्रीत चले

18 comments:

  1. नवगीत क्या है , माटी की खुशबू से भरा , जीवन की सहजता और अपनेपन का मधुर स्पर्श लिये है । रचना श्रीवास्तव का उर -संगीत से सजा यह नवगीत मन को छू गया।

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  2. अंजुरी भर
    दुआएं है
    चंदा की गठरी में
    आशा के
    जुगनू चमकें
    झोपडी की कथरी में
    उत्सव के द्वार पर,
    दीपक की प्रीत चले

    bahut sunder bhav liye hai...bahut bahut badhai.

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  3. reet, Preet aur meet ke sangam ne banaye khushiyon ke geet.. Very nice written.. Ragards..

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  4. Uttam prayas! It is very diffical( asahaj) to manage even single blog due to the chains of liabalities for everyone, but its natable that you are very successfully managing more than enough blogs. Brabo!

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  5. आपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  6. बहुत सुन्दर!!

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  7. aap sabhi se sneh shbdon ka bahut bahut dhnyavad
    rachana

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  8. एक अच्छी कविता पढ़ने को मिली।
    आभार आपका।

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  9. कुछ भुले-बिछुड़े शब्दों से संवरी यह कविता सचमुच खुशियां बिखेर गई। आभार आपका।

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  10. बहुत सुंदर ! मर्मस्पर्शी भावों को शब्दों में पिरोती सुंदर अभिव्यक्ति |

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  11. चंदा की गठरी में
    आशा के
    जुगनू चमकें
    झोपड़ी की कथरी में
    उत्सव के द्वार पर,
    दीपक की प्रीत चले
    ...bahut sundar nek bhav..
    sundar sakaratmal prastuti..

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  12. अँजुरी भर
    दुआएं है
    चंदा की गठरी में
    आशा के
    जुगनू चमकें
    झोपड़ी की कथरी में
    नव-पल्लवित और ललित कोंपलें.अछूती उपमाओं ने रस- विभोर कर दिया.

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  13. ढोलक की थाप पर
    खुशियों के गीत चले
    सुंदर रचना

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  14. अँजुरी भर
    दुआएं है
    चंदा की गठरी में
    आशा के
    जुगनू चमकें
    झोपड़ी की कथरी में
    उत्सव के द्वार पर,
    दीपक की प्रीत चले

    वाह! बहुत सुन्दर.पढकर मन प्रसन्न हो गया है.
    आपकी अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा जी.

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  15. बड़ी र से दर पर आंखे लगी थी ,
    हुजूर आते -आते बड़ी देर कर दी ।
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । मेरे पोस्ट पर सप्रेम आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  16. Vah pandey ji

    अँजुरी भर
    दुआएं है
    चंदा की गठरी में
    आशा के
    जुगनू चमकें
    झोपड़ी की कथरी में

    bahut sundar rachna... abhar.

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